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गुरुवार, 13 अगस्त 2015

दिमाग वालों की दुनिया में दिल ढूँढना भी एक कला है..... अंक छब्बीसवाँ

सादर अभिवादन...
फिर उपस्थित हूँ...
अपनी पसंदीदा रचनाएं ले कर....


माना कि इस दुनिया में हर शख्स ठोकरों से पला है,
दिमाग वालों की दुनिया में दिल ढूँढना भी एक कला है.!!

तो चलें ....

एक अहदे वफ़ा अब हुआ चाहिए
साथ हमको सनम आपका चाहिए

अब तलक ख़ूब लू के थपेड़े सहे
चाहिए बस हमें अब सबा चाहिए


जन्मदिन तुम्हारा 
सार्थक है मेंरे लिए 
नव जीवन दिया 
मेरी जिन्दगी में आकर,.. 
तुमने मुझे अपनाकर,.. 


धीरे धीरे सरकते हुए 
पता ही नहीं चला कब 
दूरियां इतनी बढ़ गयीं 
कि हम दो किनारे हो गये


तेरे जैसे फालतू 
निर्दलीय के लिये 
बता कौन करायेगा 
डेढ़ रुप्पली के घपले 
करने की आदत 
हो जिसको उसे
देख कर स्टिंग करने 
वाले के साथ का कैमरा 
और कैमरे वाला 
भी शर्मायेगा 


पूर्णिमा वर्मन के पांच नवगीत
कितने कमल खिले जीवन में
जिनको हमने नहीं चुना

आज की मेरी पसंद
प्रस्तुत है.....
विदा दोस्तों
-दिग्विजय














2 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर प्रस्तुति । आभार 'उलूक' का दिग्विजय जी सूत्र 'छोटे चोर चकारों के स्टिंग करने से ना तेरा कुछ भला होगा ना उनका ही भला हो पायेगा' को स्थान देने के लिये ।

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