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शुक्रवार, 31 जनवरी 2025

4385...शांति के लिए केवल आना

शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन।
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धर्म को पुष्ट करने हेतु
आस्था की अधिकता से
सुदृढ हो जाती है कट्टरता ....
संक्रमित विचारों की बौछारों से
से सूख जाता है दर्शन 
संकुचित मन की परतों से
टकराकर निष्क्रिय हो जाते है
तर्कों के तीर
जीवन की स्वाभाविक गतिशीलता
को लीलती है जब कट्टरता
तब...
कोई भी गणितीय सूत्र या मंत्र
नहीं जोड़ पाती है
मानवता की साँस
 नैतिकताओं को वध होते देखते
प्रत्यक्षदर्शी हम 
घोंघा बने स्वयं के खोल में सिमटे
मौन रहकर
जाने-अनजाने, न चाहते हुए भी
निर्लज्ज धर्मांधों के अनुचर बने
मनुष्यता को चुन-चुनकर
मारती भीड़ का हिस्सा बनकर
स्वयं को निर्दोष बताते हैं...।
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आज की रचनाएँ-



अक्सर घबराने वाले लोग 
बेहद मासूम होते हैं दुनियाँदारी से अनिभिज्ञ 
बहुत सकुचाते हैं वे लोग 
अपनी उपस्थिती दर्ज़ कराने से । 
बचने के लिए अपने दामन पर दाग या आंच से 
कुछ लोगों की प्रतिक्रिया होती है 
घबराहट के रूप में ! 



जहाँ भावनाएं न हों, समर्पण न हो, त्याग न हो वहाँ रिश्तों के स्थाईत्व के बारे में सोचना उसी तरह बेमानी है जैसे किसी निर्मूल पौधे को पानी में डुबो कर रखने के बाद उसमें किसी कोंपल के फूट आने की आशा रखना ! जिस वस्तु को प्राप्त करने में कठिन तपस्या करनी पड़ी हो उसकी कीमत अनमोल हो जाती है और वह वस्तु प्राणों से भी प्यारी हो जाती है लेकिन जो चीज़ सहज ही मिल जाए उसका कोई मोल नहीं होता न ही उसका महत्त्व कोई आँक पाता है !



प्रकृति का तो नियम स्वंतंत्र है
जकड़े हैं सामाजिक मानदंड से 
आडम्बर और खोकली दुनिया में 
तभी तो हम इंसान कहलाये हैं !




अजय नें बड़े प्यार से उसे गोद में उठा लिया और समझाने की कोशिश करने लगा कि अगले महीने उसे वह बहुत बढ़िया गाड़ी खरीद देगा, लेकिन बाल हठ कहाँ कुछ सुनता है l वह उस कार को लेने के लिए और भी मचल उठी और ज़ोर ज़ोर से रोने लगी l वह मीनू और अजय की बात ही नहीं सुन रही थी बस रोये जा रही थीl 




वापस आना लौट कर कभी 
पास हमारे चंद लम्हों के लिए ही सही।
जब कभी फ़ुरसत भी हो और मौक़ा भी ..
पर तब .. हमारी फुरक़त को कम करने नहीं ;
वरन् .. तथाकथित अकाल मृत्यु से मृत हमारे 
उस प्यार की आत्मा की 
तथाकथित शांति के लिए केवल आना ।


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आप सभी का आभार
आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में ।
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केल

3 टिप्‍पणियां:

  1. जी ! .. सुप्रभातम् सह सादर नमन संग आभार आपका .. हमारी बतकही को अपनी प्रस्तुति के साथ इस मंच तक लाने के लिए ...
    आपकी आज की भूमिका स्वरुप उपरोक्त अतुकांत रचना अध्यात्म और कट्टर कर्मकांड के अंतर बतलाने के साथ-साथ विज्ञान सम्मत अतिप्राचीन धर्म के अपभ्रंश रूप को बख़ूबी के साथ परिभाषित ही नहीं करती वरन् .. प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सामाजिक स्वार्थ को नग्न करते हुए .. एक दिशानिर्देश भी देने में सक्षम है .. शायद ...

    जवाब देंहटाएं
  2. "" तब...
    कोई भी गणितीय सूत्र या मंत्र
    नहीं जोड़ पाती है
    मानवता की साँस
    नैतिकताओं को वध होते देखते
    प्रत्यक्षदर्शी हम
    घोंघा बने स्वयं के खोल में सिमटे
    मौन रहकर "" 👌👌👌👌👌
    एक अति कटु सत्य का .. एक अनूठा साहित्यिक स्वरूप .. शायद ...

    जवाब देंहटाएं
  3. धर्म को पुष्ट करने हेतु
    आस्था की अधिकता से
    सुदृढ हो जाती है कट्टरता ....
    संक्रमित विचारों की बौछारों से
    से सूख जाता है दर्शन
    सुंदर अंक
    साधुवाद
    सादर वंदन

    जवाब देंहटाएं

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