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शुक्रवार, 24 जनवरी 2025

4378....नसीब निर्धारित करता है

शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन।

शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन।
गुरूदेव रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा रचित गीत 'जन गण मन..' को संविधान सभा ने 24 जनवरी 1950 को राष्ट्रगान के रूप में स्वीकार किया। यह गीत सबसे पहले 27 दिसंबर 1911 को कलकत्ता में हुए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में गाया गया था। गुरुदेव द्वारा रचित गीत में पांच अंतरे हैं। इसका पहला अंतरा राष्ट्रगान है।
राष्ट्रीय गान का गायन समय 52 सेकेंड है।
महत्वपूर्ण अवसरों में राष्ट्रीय गान की ऊपर और नीचे की कुछ पंक्तियाँ गाई जाती है जिसका गायन समय 20 सेकेंड है।
टैगोर की कलम से लिखे राष्ट्रगान जनगणमन को यूनेस्को की 
ओर से विश्व का सर्वश्रेष्ठ राष्ट्रगान करार दिया गया है
पहली बार राष्ट्रीय गान की संगीतबद्ध प्रस्तुति जर्मनी के 
हैम्बर्ग शहर में हुई।

हमारे देश का राष्ट्रीय गान हमारी स्वतंत्रता को परिभाषित करता है।
राष्ट्रीय गान महज चंद पंक्तियों की साधारण कविता नहीं है
हमारे राष्ट्र का सम्मान है, हमारी शान है, इसे गाते समय 
देशभक्ति का ज़ज़्बा 
मन को उद्वेलित करता है।
हमें स्वतः पूर्ण हृदय से बिना किसी वैचारिकी मतभेद से 
इसका सम्मान करना चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ी 
के मन में हमारे द्वारा किये जा रहे व्यवहार का
 सकारात्मक संदेश प्रेषित हो और 
उनके मन में अपने देश के प्रति प्रेम के बीज
अंकुरित हो।
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आज की रचनाएँ-


नसीब निर्धारित करता है
किसको, किसका साथ मिलेगा ।
कभी-कभी, किसी और से कर्ज
चुकवाने के लिए
किसी का किसी से साथ छूटता है !
या रास्ते ही अलग हो जाते हैं
या खो जाते हैं राही,
फिर कोई और हो जाता है हमराह !




सुना है गंध या स्वाद भी 
नहीं होता है पानी का 
लेकिन वह किसी भी गंध और स्वाद को 
बना लेता है अपना 
हमारे बीच कई बार पाये जाते हैं 
ऐसे लोग भी जो किसी भी गंध और स्वाद को 
अपना लेते हैं छोड़ कर अहंकार 


स्वीकार कर लेता है जब 

न होने को अपने 

तब झलक जाता है वह, जो है 

और तब जो नहीं है 

बन जाता है वह जो है 

कुछ नहीं से 

सब कुछ बन जाना ही 

साधना है  




 वहां से वो सहसा उठी और घर के भीतर गई घड़ा और रस्सी जो दयानंद ने जाते हुए ये कहते हुए रस्सी भीतर रखने के लिए कहां था , कल को अगर मैं मर गया तो मेरी लाश को नहलाने के लिए कुएँ में से पानी निकालने के लिए रस्सी चाहिए ना ? तारा रस्सी और घड़ा लेकर कुएँ पर गई और एक घड़ा पानी लेकर भीतर आई और गुसलखाने में जाकर उसने  सर पर से कुएँ का ठंडा पानी डाल दिया और वही छपाक से बैठकर रोने लगी मानो गमी मना रही हो पिछले घर की वासती ने रोने की आवाज सुनी और वह आंगन में आगयी । कुछ देर बाद तारा गिले बालों के साथ जब बाहर आए तो वांसती से लिपटकर खूब रोइ । वैसे भी बस्ती में नीरवता सांये की तरह हमेशा पसरी ही रहती और ऐसे में रोने की आवाज सब के कानों में पहुंच गई । कुछ ही देर में दयानंद के जाने से तारा के कपाल पर से हटे सिंदूर का शोक सबने जिया ।





और चलते-चलते
आदरणीय जयकृष्ण राय तुषार सर की
सराहनीय उपलब्धि पर
आप सभी बधाई देना न भूले-

स्वतंत्रता, साहित्य यहीं से
अलख, जगाते हैं
लौकिक प्राणी यही
अलौकिक दर्शन पाते हैं
कल्पवास में यहां
ब्रह्म की छाया मिलती है।


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आप सभी का आभार
आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में ।
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1 टिप्पणी:

  1. टैगोर की कलम से लिखे राष्ट्रगान जनगणमन को यूनेस्को की
    ओर से विश्व का सर्वश्रेष्ठ राष्ट्रगान करार दिया गया है
    सुंदर अंक
    आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं

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