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शुक्रवार, 3 जनवरी 2025

4357....आ अब लौट चलें

२०२५ कलैंडर वर्ष की प्रथम 
शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन।

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नवतिथि का स्वागत सहर्ष
नव आस ले आया है वर्ष
सबक लेकर विगत से फिर
पग की हर बाधा से लड़कर 
जीवन में सुख संचार कर लो
हर क्षण से खुलकर प्यार कर लो।
सभी के हृदय सकारात्मक ऊर्जा से लबालब रहे
यही कामना करती हूँ।
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आज की रचनाएँ-
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एक बेहद सकारात्मक आह्वान आइये
 हम सभी सहयोग करें,कोशिश करें,चिट्ठा जगत
के पुराने दिन वापस लौट आए।
 नया साल, नया संकल्प, एक सकारात्मक क़दम । शुभकामनाओं के साथ लाई हूं वही पुराना अनुरोध - चलो, फिर से पूरे जोश के साथ ब्लॉगिंग शुरू करते हैं । कुछ ब्लॉगर अभी भी नियमित हैं, कुछ को अपने ही ब्लॉग पर असुविधाओं का सामना करना पड़ता है, मैं नियमित नहीं, पर हूं ।




है जीवंत मन में खूबसूरत पल
बंद पलकों में है साकार सकल

है जीत भी मिली संग मिली हार
मिला जो भी उसे किया स्वीकार 




कुछ विरहगान
गुनगुनाती
पहाड़ी लड़कियाँ
गीत में...है 
समाया हुआ
दुःख पहाड़ का


जो बनाता है सड़कें
निकालता है कोयला 
चलाता है मशीनें
सबके हाथ होते हैं खुरदुरे । 
नरम नरम रेशमी कपड़ों के बुनकरों के हाथ 
कभी नरम और मुयलयम नहीं होते 
होते हैं खुरदुरे ही । 

करीब करीब सच...


झूठा साबित करने मे लगे हैं हर रिश्ते की तस्वीर को
मोहब्बत से भी ऊपर रखते हैं लोग जागीर को
पागल हुए फिरते हैं देखने को ताजमहल 'मगर'
कौन समझ पाया है यहाँ मुमताज की तकदीर को


शंकर ने सोचा चलो घाट पर लगा लूँगा अग्नि तो मैं ही दूंगा आखिर बेटा जो हूँ । सारी तैयारी होने पर शंकर सामने आया तो बड़े नाती ने रोक दिया - "मामा आपने नानी को इसी वचन के साथ माँ के साथ भेजा था कि नानी का आप मुँह नहीं देखेंगे और  दो सालों में न कोई खबर ही ली न ही आप मिलने आये। अब यह हक आप खो चुके हैं।" 
   


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आप सभी का आभार
आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में ।
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3 टिप्‍पणियां:

  1. शुभकामनाएँ
    चिंतन परक अंक
    बंद ब्लॉगों की एक कड़ी आज
    और देखने को मिला
    आभार
    वंदन

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह! श्वेता ,खूबसूरत अंक ।

    जवाब देंहटाएं
  3. पांचों लिंक बढ़िया । खास तौर पर मौन का पहाड़ कविता बेहद अच्छी ली । सभी सचनकारों को हार्दिक शुभकामनायें ।

    जवाब देंहटाएं

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