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शुक्रवार, 10 जनवरी 2025

4364....पाँव ज़मीन पर हों न हों...

 शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन।

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विश्व हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं! 

हिंदी भाषा नहीं भाव है,

संस्कृति हमारी चाव है।

सबको एक सूत्र में जोड़े

कश्मीरी हो या हो सिंधी,

हिंदी भाषा नहीं अभिव्यक्ति है

मान है हम भारतीयों की शक्ति है।


हिंदी सिर्फ भाषा नहीं, हमारी संस्कृति, आत्मा और अभिव्यक्ति का आधार है। यह हमें जोड़ती है, सशक्त बनाती है। आइए, हिंदी को अपनाएं, सम्मान बढ़ाएं और इसका प्रचार करें। हिंदी मात्र भाषा ही नहीं बल्कि भारतीय संस्कृति, सभ्यता और परंपरा की विरासत को अपने में संजोए रखने एवं हमारे सांस्कृतिक गौरव, एकता व अखंडता की पहचान है, जो संपूर्ण राष्ट्र को एक सूत्र में बांधती है।



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आज की रचनाएँ-



बेटियाँ कई सारी बातें 
वे बांटती केवल पिता से 
जब वे लौटती हैं स्कूल से 
कॉलेज से या दफ्तर से 
या फिर मायके से 
और जब पिता नहीं होते 
या जिन बेटियों के पिता नहीं होते
वे अक्सर ओढ़ लेती हैं 
चुप्पी का लिहाफ
कुछ बेटियाँ अपने अकेलेपन से भागकर 
हंसने लगती हैं, बातूनी हो जाती हैं 
और कुछ इस तरह भीतर ही भीतर छुपाती हैं
 अपना दर्द !


कुछ दिन जियेंगे लोग गलतफहमियों के संग 
फिर आ गया है गाँव में कोई रमल के साथ 

दरिया के पानियों पे नज़ारे हसीन हैं 
कैसे परिंदे चोंच लड़ाते हैं जल के साथ 



बचपन में रहते थे अक्सर नंगे पाँव
चिन्ता नहीं थी काँटों कंकड़ों की ।
काँटा लग भी जाता तो
मुश्किल नहीं था उसे निकाल फेंकना
और खेलने लग जाना फिर से ।  
रेत पर चलना जुड़ना है ज़मीन से
रूबरू होना है पैरों का ,ज़मीनी हकीक़त से कि
सबको हमेशा नहीं मिलता
राह में बिछा हुआ मखमली गलीचा ।  
मिलते भी हैं काँटे ,कंकड़ , चुभन , गति में अवरोध  
अभ्यस्त होने के लिये चलना ज़रूरी है कभी कभी
नंगे पाँव सूखी कंकरीली रेत पर भी ।
और इसलिये भी कि पाँव ज़मीन पर हों न हों ,
ज़रूरी है पाँवों के नीचे ज़मीन होना ।



फरिश्ते हर ज़माने में मिला करते थे। आज भी मिला करते हैं। लेकिन फ़रिश्तों की संख्या हर ज़माने में दूज के चाँद-सी ही होती है।" रत्ना की सहेली ने कहा।
      "अगर शादी के बाद फ़रिश्ता ना निकला तो ताड़ से गिरकर खजूर में अटक जाने वाली बात हो जाएगी।...और कहीं की नहीं रहेगी मेरी बेटी…!" रत्ना का स्वर बेहद मर्माहत था।



गाँव ले जाना 
शहर में मत जलाना 
खेत की मेंड पर रख देना 
मेरी चिता 
जहाँ कलेवा करते थे 
तुम्हारे पिता 




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आप सभी का आभार
आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में ।
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