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सोमवार, 20 जनवरी 2025

4374 ....पैदल तो छाँव-छाँव बस निकल गया

 सादर अभिवादन


वर्ष का 20 वाँ दिन है। 
साल में अभी और 
345 दिन बाकी हैं
क्या-क्या होगा सब 
अभी नेपथ्य में है

आज की रचनाएँ




तिनका तिनका काँटे तोड़े
सारी रात कटाई की
क्यूँ इतनी लम्बी होती है
चाँदनी रात जुदाई की

नींद में कोई अपने-आप से
बातें करता रहता है
काल-कुएँ में गूंजती है
आवाज़ किसी सौदाई की




सात रंग की ओढ़ चुनरिया,
सात रंग का चोला।
भारत को रंगीन बनाने,
सात रंग है घोला।
हाँ जी हाँ हमने घोला,
मिलकर घोला, सात रंग है घोला।




निश्छल मन की बनाये मंजूषा
रह न जाए कोई अभिलाषा ।
लिख लेखनी मन की भाषा
रह न जाये कोई अभिलाषा ।।






जो धूप में रहा वही तो जल गया.
पैदल तो छाँव-छाँव बस निकल गया.

क़िस्मत वो अपने आप ही बदल गया,
गिरने के बावज़ूद जो संभल गया.






पिता जी कोई देह नहीं है वैचारिक तार
दैहिक थे जो चले गए उनके रहे विचार

पिता जी परमार्थ रखे पिता है यथार्थ
वे तो मेरे प्रिय सखे मैं हूं केवल पार्थ

आज बस
वंदन

6 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात
    सुंदर साहित्यिक प्रस्तुति
    वंदन

    जवाब देंहटाएं
  2. सादर अभिवादन।
    बाकी के 345 दिन भी यूं ही गुजर जाएंगे, कुछ खट्टी मीठी यादों के साथ।

    सुंदर रचनाओं का संकलन।
    मेरी पोस्ट को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार।

    जवाब देंहटाएं
  3. सुंदर हलचल आभार मेरी ग़ज़ल को शामिल करने के लिए

    जवाब देंहटाएं

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