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शुक्रवार, 17 जनवरी 2025

4371...मन ही तो वह पानी है जो तन नौका के छिद्रों से भीतर चला आया है...

शीर्षक पंक्ति: आदरणीया अनीता जी की रचना से। 

सादर अभिवादन।

शुक्रवारीय प्रस्तुति में आइए पढ़ते हैं पाँच चुनिंदा रचनाएँ-

मकर संक्रांति के अवसर पर उत्तर प्रदेश साहित्य सभा रामपुर इकाई की काव्य गोष्ठी संपन्न

जो   मुखौटा   कहीं   उतर  जाए,

आज का शख़्स ख़ुद से डर जाए।

उन्होंने मकर संक्रांति पर यह दोहा भी पढ़ा --

समरसता  है बांटता, खिचड़ी  का  यह  पर्व।

करें न क्यों संक्रांति पर,हम सब इतना गर्व।।

कुछ पागल लोग

इन पागल लोगों के कारण ही

कई बार महफिलों की रौनक बढ़ती है

जब ये किसी भी मौके पर  नाच लेते हैं

कर देते हैं सबका मनोरंजन

और लौट आते हैं अपने अंधेरी गुफा में

सुबकते हुये

*****

भव सागर में डोले नैया

मन ही तो वह पानी है

जो तन नौका के छिद्रों से

भीतर चला आया है

तभी तन की यह नाव

जर्जर होती जाती है

नाविक ने कहा भी था

छिद्रों को बंद करो

पानी को उलीचो बाहर

नाव हल्की हुई तो तिर जाएगी

*****

रघुपति राघव राजा राम

गाँधी के हम तीन बंदर।

छल-कपट नहीं मन अंदर।

रघुपति...........

मुंह बंद हम अपना रखते।

बुरी बात हम कभी न कहते।

रघुपति............

***** 

यादों के गलियारों से

ऐसा नहीं था कि खुद रुकना नहीं चाहते थे , पर जिद रुपी शैतान ने बचपन में हमेशा हमारे मन पर कब्जा किया जकड़ कर रखा। जैसे - जैसे बड़े  हुए अपने मन के अड़ियल घोड़े की लगाम कसी, उस पर क़ब्ज़ा किया और कई बार मन की न सुन कर जीवन में बहुत कुछ खोयाहार दोनों  तरह से हमारी  ही…!

खैर अब तो बहुत ही सयाने हो गए हैंकोई शक ????? 😂

*****

 

2 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात ! सराहनीय रचनाओं की खबर देता सुंदर अंक, 'मन पाये विश्राम जहां' को स्थान देने हेतु ह्रदय से आभार!

    जवाब देंहटाएं

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