सादर अभिवादन
एक अंतराल के बाद
आज लोहड़ी
लोहड़ी उत्तर भारत का एक प्रसिद्ध त्योहार है। यह मकर संक्रांति के एक दिन पहले मनाया जाता है। मकर संक्रांति की पूर्व संध्या पर इस त्योहार का उल्लास रहता है। आम तौर पर इस पर्व की रात्रि में किसी खुले स्थान में परिवार एवं आस-पड़ोस के लोग मिलकर आग के किनारे घेरा बनाकर बैठते हैं तथा इस समय रेवड़ी, मूंगफली, लावा आदि खाकर पर्व मनाते हैं।
जिन परिवारों में लड़के का विवाह होता है अथवा जिन्हें पुत्र प्राप्ति होती है, उनसे पैसे लेकर मुहल्ले या गाँव भर में बच्चे ही बराबर बराबर रेवड़ी बाँटते हैं। लोहड़ी के दिन या उससे दो चार दिन पूर्व बालक बालिकाएँ बाजारों में दुकानदारों तथा पथिकों से 'मोहमाया' या महामाई (लोहड़ी का ही दूसरा नाम) के पैसे माँगते हैं,
आज की रचनाएं
इस दिन सुबह से ही बच्चे लोहड़ी से संबंधित गीत, जो "दुल्ला भट्टी " से जुड़े होते हैं गाते हुए घर-घर जाते हैं जिसके बदले में उन्हें हर घर से मूंगफली, तिल, गुड, रेवड़ी, गजक के साथ-साथ पैसे भी दिए जाते हैं। बच्चों को खाली हाथ लौटाना अच्छा नहीं माना जाता। फिर रात होने पर हर घर के सामने या मोहल्ले में एक जगह, होलिका दहन की तरह छोटे-बड़े अलाव जलाए जाते हैं. उसके चारों और नाचते-गाते, परिक्रमा करते हुए उसमें तिल, गुड, मूंगफली की आहुति दी जाती है. यह कार्यक्रम देर रात तक चलता रहता है. यह उन परिवारों के लिए और ख़ास हो जाता है जहां हाल ही में शादी-ब्याह हुआ हो या नवजात का आगमन, क्योंकि दोनों उर्वरता और फलप्रद स्थिति के द्योतक होते हैं और प्रकृति भी तो उसी दिन से ऊर्जा यानी सूर्य की और रुख करती है।
अभी उसने बताया तुम हो |
समझाया भी खरा खरा | होने का मतलब |
अच्छा महसूस हुआ | नहीं होने से होने तक पहुंचना |
बहुत बड़ी बात लगी |
समझ में भरा था | सभी होते हैं होते ही होंगे |
उन सभी में हम भी होते हैं |
जग से हर किसी को उठना है एक न एक दिन फ़िज़ा
यहाँ इंसान एक दूसरे की नज़रों से ही उठा जा रहा है !
रेहम! दोस्तों ऐसे भी हैं जो अंदर ही अंदर कूटते हैं
कुछ सहानुभूति के अल्फ़ाज़ नहीं तो इशारा ही दे दें !
रूचि, इच्छाएं, सपने,
स्वाभाव, व्यवहार,
स्वाद, रंग-ढंग
सोच- विचार,
रास्ते, दिशाए,
समय, आवश्यकताएं
इत्यादि... जब
बदलतें हुई दिखाई देने लगे
तब मनुष्य का बदलना भी
आरंभ हो जाता हैं
उत्तरायणी-लोहड़ी, देती है सन्देश।
थोड़े दिन के बाद में, सुधरेगा परिवेश।।
झड़बेरी पर छा गये, खट्टे-मीठे बेर।
धूप सेंकने कोकिला, बैठी है मुंडेर।।
लो आ गई लोहड़ी रे, बना लो जोड़ी रे
आज बस
वंदन
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