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मंगलवार, 23 जनवरी 2024

4014....भौतिक जीवन चलता है...

 मंगलवारीय अंक में आप
सभी का स्नेहिल अभिवादन।
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अवध में राम जी के भव्य,दिव्य,अद्भुत
स्वरूप की स्थापना के लिए
आप सभी को शुभ मंगल बधाइयाँ...।
राम-राम जी।

 आइये अब बात करें-

राष्ट्र के अनमोल रत्न
महान स्‍वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चन्‍द्र बोस की। आज उनकी जयंती के अवसर पर आज कृतज्ञ राष्‍ट्र उन्‍हें याद कर रहा है। लाखों भारतीय युवाओं के आदर्श और नेताजी  सुभाष चंद्र बोस ने तुम मुझे खून दो, मैं तुम्‍हें आजादी दूंगा....! जय हिन्द! का उत्साहित करने वाला नारा दिया 

*एक सैनिक के रूप में आपको हमेशा तीन आदर्शों को संजोना और उन पर जीना होगा : सच्चाई , कर्तव्य और बलिदान। जो सिपाही हमेशा अपने देश के प्रति वफादार रहता है, जो हमेशा अपना जीवन बलिदान करने को तैयार रहता है, वो अजेय है। अगर तुम भी अजेय बनना चाहते हो तो इन तीन आदर्शों को अपने ह्रदय में समाहित कर लो।

*राष्ट्रवाद मानव जाति के उच्चतम आदर्शों सत्यम् , शिवम्, सुन्दरम् से प्रेरित है।

*इतिहास में कभी भी विचार-विमर्श से कोई वास्तविक परिवर्तन हासिल नहीं हुआ है।

*याद रखिए सबसे बड़ा अपराध अन्याय सहना और गलत के साथ समझौता करना है।

*हमें केवल कार्य करने का अधिकार है। कर्म ही हमारा कर्तव्‍य है। कर्म के फल का स्‍वामी भगवान है, हम नहीं।

नेता जी के कुछ प्रेरक विचार जिन्हें आत्मसात कर
उन्हें हृदय से नमन करें।

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आइये आज की नियमित रचनाओं का
 आस्वादन करें-

बहुत कठिन होता है 
किसी को ख़ामोशी से सुनना 
तुम्हारी आंखो को 
मुझे समझना होगा 
क्योंकि वो दिमाग़ के
अनचाहे वाकयात को 
बंया कर देती हैं 
मेरी यादें मेरी कहानी 

चिड़िया भी उड़ नहीं पाती पर पसार कर   
अदृश्य हो जाते हैं भानु,शशि और सितारे
भौतिक जीवन चलता है तकनीक के सहारे 
एक ह्रदय है 
धड़-धड़ धड़कता रहता है जीवनभर अनवरत 
जमने नहीं देता धमनियों-शिराओं में बहता रक्त
इसके भी अपने मौसम हैं 


उसके ठहर जाने से 
विस्मय नहीं
सर्दियों में हर बार
बर्फ़ में तब्दील हो जम जाती है 
न जाने क्यों?
इस बार इसे देख! ज़िंदा होने का
भ्रम मिट गया है
दर्द की कमाई जागीर
अब संभाले नहीं संभलती 




हरिया ने दरवाजा खोला ! सामने तपन खड़ा था ! उसने अभिवादन किया ! हरिया ने उसे अंदर आने को कहा ! हरिया के चेहरे की प्रश्नवाचक मुद्रा को देख तपन ने ही कहना शुरू किया ! काका, आपके लिए खाना लाया हूँ ! आपकी बहू कह रही थी कि पारबती काकी बाहर गईं हैं काका अकेले हैं उनकी तबियत भी ठीक नहीं है, सो रात को उनके पास ही रुक जाना ! सुबह ही उसने पता कर लिया था कि दोपहर का खाना और शाम की चाय रतनी बुआ पहुंचा गईं हैं ! इसीलिए मेरा अब आना हुआ ! हरिया अभिभूत था, उसने तपन और उसकी पत्नी को आशीर्वाद दिया और उसके आराम की व्यवस्था कर सोचने लगा प्रभु किसी को भी बेसहारा नहीं छोड़ते !


कभी भेड़ों में शामिल हो कर के देख...


पलकें ही बंद नहीं होती हैं कभी
पर्दा उठा रहता हैं हमेशा आँखों से
रात के अँधेरे में से अँधेरा भी छान लेता है
क़यामत है आज का कवि 

कौन अपनी लिखे बिवाइयां
और आंखिर लिखे भी क्यों बतानी क्यों है

सारी दुनियां के फटे में टांग अड़ा कर
और फाड़ बने एक कहानी अभी

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आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में।
 सकारात्मक रहिए।
खुश रहिए।





8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत कठिन होता है
    किसी को ख़ामोशी से सुनना
    तुम्हारी आंखो को
    मुझे समझना होगा
    शानदार अंक
    आभार..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. श्वेता जी
    सम्मिलित कर मान देने हेतु अनेकानेक धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुंदर संकलन मेरी रचना को स्थान देने पर तहेदिल से शुक्रिया आपका ।

    जवाब देंहटाएं
  4. उत्कृष्ट लिंकों से सजी लाजवाब प्रस्तुति ।
    सादर नमन नेताजी सुभाषचंद्र बौस को..।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुंदर सराहनीय संकलन।
    स्थान देने हेतु हार्दिक आभार।

    जवाब देंहटाएं

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