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मंगलवार, 30 जनवरी 2024

4021....चलो फिर बापू को याद कर लें

 मंगलवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
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आज महात्मा गाँधी जी की

पुण्यतिथि है।

वैचारिक मतभेदों को

किनारे रखकर,

फालतू के तर्क-वितर्क में

पड़े बिना

आइये सच्चे मन से कुछ

श्रद्धा सुमन अर्पित करें।



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दुख से दूर पहुँचकर गाँधी।

सुख से मौन खड़े हो

मरते-खपते इंसानों के

इस भारत में तुम्हीं बड़े हो


- केदारनाथ अग्रवाल 


एक दिन इतिहास पूछेगा

कि तुमने जन्म गाँधी को दिया था,

जिस समय अधिकार, शोषण, स्वार्थ

हो निर्लज्ज, हो नि:शंक, हो निर्द्वन्द्व

सद्य: जगे, संभले राष्ट्र में घुन-से लगे

जर्जर उसे करते रहे थे,

तुम कहाँ थे? और तुमने क्या किया था?


- हरिवंशराय बच्चन


गाँधी तूफ़ान के पिता

और बाजों के भी बाज थे ।

क्योंकि वे नीरवताकी आवाज थे।


-रामधारी सिंह "दिनकर"


तुम मांस-हीन, तुम रक्तहीन,

हे अस्थि-शेष! तुम अस्थिहीन,

तुम शुद्ध-बुद्ध आत्मा केवल,

हे चिर पुराण, हे चिर नवीन!

तुम पूर्ण इकाई जीवन की,

जिसमें असार भव-शून्य लीन;

आधार अमर, होगी जिस पर

भावी की संस्कृति समासीन!


- सुमित्रानंदन पंत


युग बढ़ा तुम्हारी हँसी देख

युग हटा तुम्हारी भृकुटि देख,

तुम अचल मेखला बन भू की

खींचते काल पर अमिट रेख


-सोहनलाल द्विवेदी

 

कुछ रचनाएँ आपकी लेखनी से-

प्यादे
नये 
जमाने की हवा खाये खिलखिलाये होते हैं
समझदारी से अपनी टाँगों का बीमा भी कराये होते हैं
टाँग अढ़ाने वाले को मुँह बिल्कुल नहीं लगाते हैं
पूरा फसाने वाले पर दिलो जान से कुर्बान बातों बातों में हो जाते हैं
मौज में आते हैं
तो कम्बल 
डाल कर फोटो भी खिंचवाने में जरा भी नहींं शर्माते हैं


'हे राम'की करुण कराह,
में राम-राज्य चीत्कारे।
बजरंगी के जंगी बेटे,
अपना घर ही जारे।
और अल्लाह की बात,
न पूछ,दर दर फिरे मारे।
बलवाई कसाई क़ाफ़िर,
मस्ज़िद में डेरा डारे।


बापू तेरे सपनों वाली...

राजा जितना गूंगा -बहरा 
उतने ही हरकारे हैं ,
बंजर धरती ,कर्ज किसानी 
हम कितने बेचारे हैं ,
रामराज के सपनों वाली 
वह शहजादी कहाँ गयी |




समय की कीमत को पहचानें, स्वच्छता से प्रेम बहुत था
मेजबानी में थे पारंगत, अनुशासन जीवन में था !

पशुओं से भी प्रेम अति था, कथा-कहानी कहते सुनते
मितव्ययता हर क्षेत्र में, उत्तरदायित्व सदा निभाते !

मैत्री भाव बड़ा गहरा था, पक्के वैरागी भी बापू
थी आस्था एक अडिग भी, बा को बहुत मानते बापू !




कहाँ पड़ा है वो खद्दर का चोला 
जाने कहाँ रख दी है वो उजली टोपी
सत्य के प्रयोग रखें हैं धूल  में दबे 
चलो पुरानी  अल्मारी  साफ़ कर लें
चलो आज आँखे कुछ नम कर लें 
चलो फिर बापू को याद कर लें 


बापू,

तुम्हारे तीनों बन्दर 

सही सलामत हैं,

न बुरा देखते हैं,

न बुरा बोलते हैं,

न बुरा सुनते हैं, 

पर समझ में नहीं आता 

कि तुमसे अलग होकर

वे इतने ख़ुश क्यों हैं? 


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आज के लिए बस इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में।
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7 टिप्‍पणियां:

  1. स्मरणीय
    संग्रहणीय
    आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुंदर प्रस्तुतीकरण

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह! बापू पर लाजवाब संग्रह! बहुत आभार आपका।

    जवाब देंहटाएं
  4. सुंदर प्रस्तुति, बापू को विनम्र श्रद्धांजलि !

    जवाब देंहटाएं
  5. दिगंबर नासवा31 जनवरी 2024 को 4:35 pm बजे

    बापू की स्मृतियों को नमन

    जवाब देंहटाएं

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