"उठो, जागो और तब तक न रुको जब तक लक्ष्य न प्राप्त हो जाये।"
"ब्रह्मांड की सारी शक्तियाँ पहले से हमारी हैं वो हम ही है जो आँखों पर हाथ रखकर रोते है कि कितना अँधेरा है।"
"खुद को कमज़ोर समझना सबसे बड़ा पाप है।"
"शारीरिक,बौद्धिक और आध्यात्मिक रुप से जो भी कमज़ोर
बनाता है ,उसे ज़हर की तरह त्याग दो।"
उपर्युक्त ओजपूर्ण उक्तियाँ,जीवन के प्रति सकारात्मक ऊर्जा प्रवाहित करती हैं ऐसी ही अनगिनत सूक्तियाँ करोड़ो युवाओं के आदर्श
12 जनवरी 1863 - 4 जुलाई 1902
स्वामी विवेकानंद जी
इनके द्वारा कही गयी हैं। आज स्वामी विवेकानंद जी का जन्मदिन है। जिसे राष्ट्रीय युवा दिवस के रुप में मनाया जाता है। एक युवा संन्यासी के रुप में अपने देश की मिट्टी और संस्कृति की सुगंध विदेशों में बिखरेने वाले अद्भुत व्यक्तित्व स्वामी विवेकानंद इतिहास ,दर्शन और साहित्य के प्रकांड विद्वान थे। बंगला और अंग्रेज़ी में उन्होंने अनेक प्रेरक रचनाएँ सृजित की हैं। उनके द्वारा लिखी गयी अंग्रेज़ी की एक रचना के हिंदी अनुवादित अंश- न द्वि, न बहु ,केवल एक ,
मुझ में सब ,सब में हूँ मैं ;
घृणा कर सकूँ, न ही रोध,
स्व से सर्वमय, हूँ केवल प्रेम
जागृत भ्रम से, मुक्त बंध से,
भय न कर, यह रहस्य,
छाया मेरी डरा सके न,
जानो शाश्वत मैं हूँ वह
आज हम राष्ट्रीय युवा दिवस मना रहे हैं। राष्ट्र का उज्जवल भविष्य ज़िम्मेदार,होनहार कंधों पर रखना चाहते हैं जो देश का नाम विश्वपटल स्वर्णाक्षरों में लिखें ।
------
स्वामी विवेकानंद
रुको न जब तक लक्ष्य न पाओ
मन दुर्बलता को दूर भगाओ
इंसानियत का यही मर्म
जीवन पथ पर हो सत्कर्म
सोच लो तो शैतान बनो
सोच लो तो इंसान बनो
आत्म भक्ति ही शक्ति का दर्पण है
इंसानियत का धर्म सिखाया गया
वही ज्ञानी महापुरुष
तलाश
किसी पहाड़ से गिरते
झरने की हँसी के साथ
मुस्कुराये बेतरतीब घास की
ओट से कोई जंगली फूल
देखे मेरी ओर..,और
मुझे मुझी से भुला दे
मुझे उस पल की तलाश है
शह और मात का खेल
भीड़ ही भीड़ दूर तलक ।
सब और रेलम पेल है।।
अपने जी का करोगे कैसे।
दूसरों के हाथ नकेल है।
निर्मल मन
निरोग काया हो जहाँ,सुंदर शील- स्वभाव।
सभी प्राणियों के लिए,मन में हो समभाव।।
बस वाणी की मधुरता,मन को लेती जीत।
मन को दे यह सुख सदा,आपस में हो प्रीत।
मानव मानवता सदा, करना अंगीकार।
माया कभी न त्यागना, रखना उच्च विचार।।
------
एक शून्य तीन दिन तक धाराप्रवाह बोलकर
जवाब देंहटाएंपूरे अमरीका को स्तब्ध करने वाले को सादर नमन
एक बेहतरीन अंक
सादर
न द्वि, न बहु ,केवल एक ,
जवाब देंहटाएंमुझ में सब ,सब में हूँ मैं ;
घृणा कर सकूँ, न ही रोध,
स्व से सर्वमय, हूँ केवल प्रेम…,
स्वामी विवेकानन्द जी को शत शत नमन 🙏 बेहतरीन अंक में मेरे सृजन को सम्मिलित करने के लिए हृदयतल से आभार श्वेता जी !
जी .. नमन संग आभार आपका .. इस मंच पर आज अपनी प्रस्तुति में मेरी बतकही की श्रृंखला के २७वें भाग को स्थान प्रदान करने हेतु .. बस यूँ ही ...
जवाब देंहटाएंराष्ट्रीय युवा दिवस को और भी सार्थकता प्रदान करने के लिए हमें प्रत्येक रविवार को प्रातः नौ से दस बजे तक दूरदर्शन से प्रसारित होने वाले कार्यक्रम - "स्वराज" का सपरिवार अवलोकन करना चाहिए .. शायद ...
आज की आपकी भूमिका में स्वामी जी के कहे बहुमूल्य वाक्यों में से एक वाक्य - "ब्रह्मांड की सारी शक्तियाँ पहले से हमारी हैं.. " और .. वहाँ उनका अंग्रेजी में भाषण देना भी ये संदेश देता है कि हमें हमारी भाषा से प्रेम तो करनी चाहिए, परन्तु विश्व की अन्य भाषाओं से घृणा कदापि नहीं करनी चाहिए .. क्योंकि .. कोई भी भाषा इसी ब्रह्मांड की ध्वनि तरंगें हैं तो .. उन तरंग की शक्तियों से घृणा नहीं हो तो बेहतर हो .. शायद ...
खुद को कमज़ोर समझना सबसे बड़ा पाप है।"
जवाब देंहटाएं"शारीरिक,बौद्धिक और आध्यात्मिक रुप से जो भी कमज़ोर
बनाता है ,उसे ज़हर की तरह त्याग दो।"
अत्यंत ओजस्वी स्वामी विवेकानंद जी को सादर नमन🙏🙏🙏
उत्कृष्ट रचनाओं से सजी लाजवाब प्रस्तुति ।
एक से बढ़कर एक बेहतरीन रचनाओं का संकलन है आज की प्रस्तुति में,देश के गौरव स्वामी विवेकानंद को सत सत नमन 🙏
जवाब देंहटाएं