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शुक्रवार, 5 जनवरी 2024

3996....अपने होने का ही आभास नहीं है....

शुक्रवार अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन।
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पक्षी दिवस

पंछी नदियाँ पवन के झोंके

कोई सरहद न इन्हें रोके...

आसमान में बेफ्रिक, पंख पसारे उड़ते पंछियों को देखकर

 एक विशेष आकर्षण महसूस होता है। 

 मेरे घर के आँगन में अमरूद के पेड़ पर  गौरेया, मैना,कबूतर, कौआ, बुलबुल सामान्यतः भोर से ही कलरव करते कच्चे-पक्के अमरूद के फल कुतर-कुतर कर आँगन में गिराते रहते थे और मैं सर्दियों की गुनगुनी धूप में लेटी गिनती रहती नीली,हरी,पीली,भूरी या काली-सफेद,नन्हीं या थोड़ी बड़ी पंखों वाली कौन सी चिड़िया आयी। छुटपन की उन सारी चिड़ियों की तस्वीरें मन से आजतक ज़रा भी धुंधली नहीं हुई।

अब शहर में कहाँ वो छाँव और कहाँ वो पक्षी...।

 

पशुओं ,पक्षियों  या सृष्टि के 

अन्य  किसी भी जीव के लिए

 ऐसी किसी विशेष शिक्षा की 

 व्यवस्था देखी नहीं...

 सब तो अपनी सीमाओं को भली-भाँति

 जानते,समझते और जीते हैं

 तो मनुष्य इतना असभ्य कैसे रह गया ?


आइये आज की रचनाएँ पढ़े- 

बहुत कुछ
उबल रहा है पर भाप नहीं है
ना कोई
हंस रहा है ना कोई रो रहा है
सबके पास
काम है कुछ महत्वपूर्ण
जो दिया गया है
उन्हें
अपने होने का ही आभास नहीं है


हवा कर रही क्यों यहाँ छेड़खानी।
लगे आ रही अब दिशाएँ बदल कर।।

बजे रागिनी ये मधुर वृक्ष डोले।
सरस गा रहा है पपीहा बहल कर।।

धरा पर नमी है उधर चा़ँद भीगा।
झटक वो गिरी चाँदनी भी सँभल कर।।


खोने पाने का हिसाब पूरे साल तो होता नहीं 
लेकिन दिसंबर के पास होता है 
इनकी सूची जिसमें कई लोगों के 
पाने की सूची होती है संक्षिप्त
खोने की इतनी लंबी कि कई बार वह
चली जाती है पृष्ठ से बाहर। 



यह सब कर लूँ,

फिर भी मोहलत मिल जाय,

तो कुछ ऐसा भी कर लूँ,

जो कभी कर नहीं पाया. 




लोहे के घर में सुबह चौंकाने वाली हुई। अलॉर्म चीखने लगा, "कोच में आग है, गलियारे से निकलें!" नींद खुली तो देखा सभी साथी हड़बड़ा कर जग रहे हैं। ट्रेन रुकी थी, अफरा तफरी का माहौल था लेकिन आग कहीं नहीं दिख रही थी। अभी हम सोच ही रहे थे कि बैग लेकर उतरें या छोड़ कर एक साथी बोले, "केहू सिगरेट पीले होई, एमे सेंसर लगल हौ, वही बजत हौ।" तब तक सुरक्षाकर्मी डंडा, टार्च लेकर दौड़ने/देखने लगे। कुछ भीतर कुछ बाहर कोच के नीचे पहियों में टार्च जलाकर देखने लगे। कुछ देर बाद चार कर्मी एक आदमी को पकड़े ले जा रहे थे और पूछ रहे थे, "किसको सिगरेट पीते देखे हो, बताओ?" यहाँ सबको देखने के बाद वे आगे बढ़ गए, अलार्म बजना बंद हुआ, लगभग 30 मिनट बाद ट्रेन चल दी। सभी ने संतोष की सांस ली और सब कुछ सामान्य हो गया।
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आज के लिए तीन ही
मिलते हैं अगले अंक में
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4 टिप्‍पणियां:

  1. तीन नहीं तीस है
    अप्रतिम
    आभार..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुंदर अंक श्वेता आपकी भूमिका हमेशा की तरह काव्यात्मक सटीक ।
    सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
    मेरी रचना को पाँच लिंकों पर प्रस्तुत करने के लिए हृदय से आभार।
    सादर सस्नेह।

    जवाब देंहटाएं

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