शीर्षक पंक्ति: आदरणीया साधना वैद जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक के साथ हाज़िर हूँ। पढ़िए आज की पसंदीदा रचनाएँ-
लिख कुछ भी लिख लिखे पर ही लगायेंगे
मोहर लोग कुछ कह कर जरूर लिख कुछ भी लिख
दिमाग में भरे गोबर को साफ़ कर
थोड़ा कभी जुलाब कुछ लिख
लिखते हैं लोग मौसम लिखते हैं लोग बारिश
लिखते हैं पानी भी गुलाब भी और शराब भी
लाजवाब लिखते हैं और बेहिसाब लिखते हैं
दिए संस्कार
सुलझाया जीवन
माँ जैसी हिंदी
सिखाई मुझे
साहित्य की विधाएं
विद्वान् हिंदी
मंदिर-मस्जिद के बाहर बसती है ज़िन्दगी की असल दुनिया, नफ़रतों के घने झुरमुट में इंसानियत का तन्हा चिराग़ जला रहे,
याद घेर लेती है जिसकी
बनकर अनंत शुभ नील गगन,
कभी गूंजने लगता उर में
अनहद गुंजन आलाप सघन!
संग्रहणीय अंक
जवाब देंहटाएंयाद घेर लेती है जिसकी
बनकर अनंत शुभ नील गगन,
कभी गूंजने लगता उर में
अनहद गुंजन आलाप सघन!
आज याद नहीं आया..
आज स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री जी की पुण्यतिथी है,
वे आज ही ताशकंद में हृदयाघात में चल बसे थे...
जय जवान- जय किसान का नारा दिया था उन्होंनें..
सादर नमन उनको..
आभार रवीन्द्र जी
जवाब देंहटाएंसुप्रभात, एक से बढ़कर एक रचनाओं से संजोया सुंदर अंक, आभार रवींद्र जी !
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