शीर्षक पंक्ति: आदरणीय डॉ.सुशील कुमार जोशी सर की रचना से।
सादर अभिवादन।
शुक्रवारीय अंक में पढ़िए आज की पसंदीदा रचनाएँ-
1.
कितना बहकेगा तू खुद उल्लू थोड़ा कभी
बहकाना सीख
कदम दिल दिमाग और जुबां लडखडाती हैं कई बिना पिए
थोड़ा कुछ कभी महकना सीख
दिल का चोर आदत उठाईगीर की जैसी बताना मत कभी
साफ़ पानी के अक्स की तरह चमकना सीख
आखें बंद रख जुबां सिल दे
उधड़ते पल्लुओं की ओर से मुंह फेर कर
फट पलटना सीख
2.
3.
मुझे पता था
घूम फिर कर
मुझ पर ही आएगा
रिश्तें के
टूटने का दोष
4.
इस सर्दी में कंबल ज़रा-सा सरका
तो सुन्न पड़ गया अंगूठा
हवा के साथ सुर्र से घुस आई
तुम्हारी याद दुख बनकर
कोई सुख ओढ़ाने नहीं आया।
5.
कतेक बेर ई सुनल दुबारा, छथि सभहक भगवान सहारा।
घर - घर मे पूजन भगवन के, तैयो दुख मे लोक बेचारा।
परमपिता ई कोना देखय छी, पिता-धर्म के नित अपमान??
आन लोक केँ-----
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फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं सादर
व्वाहहहहह
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अंक
आभार
सादर
आभार
जवाब देंहटाएंआभार रवीन्द्र जी
जवाब देंहटाएंलिंक ३ ,४,५, में कुछ समस्या है ?
हटाएंठीक कर दी
हटाएंसादर नमन