।।भोर वंदन।।
ठिठुरी रातें, पतला कम्बल, दीवारों की सीलन..उफ़
और दिसम्बर ज़ालिम उस पर फुफकारे है सन-सन..उफ़
इक तो वैसे ही रग-रग में जमी हुई है मानो बर्फ़
ऊपर से कमबख्त़ सितमगर शबनम का भी जोबन..उफ़
बूढ़े सूरज की बरछी में ज़ंग लगा है अरसे से
कुहरे की मुस्तैद जवानी जैसे सैनिक रोमन..उफ़
गौतम राजॠषि
धूप के सुनहरे गर्माहट संग आज की प्रस्तुतियाँ का आंनद लें...✍️
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महबूब ना फेरे बालों में उगलियां
जब प्रियतम ना पढ सकें वो आंखें,
जिनमें बसा हुआ है वह ..
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1 जनवरी को क्या नया हो रहा है ?
न ऋतु बदली.. न मौसम
न कक्षा बदली... न सत्र
न फसल बदली...न खेती
न पेड़ पौधों की रंगत
न सूर्य चाँद सितारों की दिशा
ना ही नक्षत्र..
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।। इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह ' तृप्ति '...✍️
नव वर्ष शुभ हो
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अंक
आभार
सादर
मार्मिक भूमिका के साथ अति सराहनीय रचनाओं का संकलन है दी।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए अत्यंत आभारी हूँ।
सादर।