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मंगलवार, 9 जनवरी 2024

4000....रोज नये अनुभव से मिलना...

मंगलवारीय अंक में आप
सभी का स्नेहिल अभिवादन।
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आज के इस अंक के साथ आपके
पाँच लिंक परिवार ने चार हज़ार क़दम पूरा
कर लिया। 
आप सभी पाठकों, लेखकों के
साथ और सहयोग के लिए हृदय से आभार।
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बिछड़ा कुछ इस अदा से कि रुत ही बदल गई 

इक शख़्स  सारे शहर को वीरान कर गया...

भोपाल, मध्य प्रदेश के प्रसिद्ध ब्लॉगर

टैक्नोक्रेट, सॉफ़्टवेयर स्थानीयकरण विशेषज्ञ, संपादक, लेखक।  हिंदी कंप्यूटिंग को लोकप्रिय बनाने में जीवटता से संलग्न, 20+ वर्ष का प्रशासकीय/प्रबंधन/तकनीकी अनुभव, हिंदी में तकनीकी/साहित्य लेखन व संपादन तथा कंप्यूटरों, आईटी के हिंदी व छत्तीसगढ़ी भाषा में स्थानीयकरण / शिक्षण- प्रशिक्षण में सक्रिय भूमिका. हिंदी लिनक्स आपरेटिंग सिस्टम के प्रारंभिक रिलीज में महत्वपूर्ण भूमिका. 1000+ कंप्यूटिंग अनुप्रयोगों का हिंदी में स्थानीयकरण. अधिकतर कार्य मुक्त स्रोत के तहत, निःशुल्क, मानसेवी आधार पर. छत्तीसगढ़ी लिनक्स तथा छत्तीसगढ़ी विंडोज एप्लीकेशन सूट निर्माण में एकल-प्रमुख भूमिका. पिछले कई वर्षों से नियमित रूप से हिंदी में तकनीकी/हास्य-व्यंग्य ब्लॉग लेखन, आनलाइन पत्रिका रचनाकार.आर्ग का संपादन तथा हिंदी की सर्वाधिक समृद्ध आनलाइन वर्गपहेली का सृजन.

करने वाले लोकप्रिय ब्लॉगर

जाने माने हिंदी ब्लॉगर श्री रवि रतलामी जी हमारे बीच नहीं रहे। ईश्वर चरणों में प्रार्थना है कि वो पुण्य आत्मा को शान्ति प्रदान करें।

सन 2011 में हिंदी ब्लॉगिंग पर राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित कर रहा था। विषय नया था अतः उत्साह और भय का एक अलग  रोमांच हो रहा था। उस समय इस संगोष्ठी को सफल बनाने में श्री रवि रतलामी जी ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। आप स्वयं भी इस संगोष्ठी में उपस्थित रहे।

रवि रतलामी जी की पावन स्मृतियों को प्रणाम ।

आज की रचनाएँ


अनजाने ही रह जाते वह 

अपने दिल की गहराई से, 

जीवन की संध्या आ जाती 

कान भरे हैं शहनाई से !


सागर से मिल सकती थी जो 

मरुथल में दम तोड़ रही है, 

बूँद एक घर से निकली थी 

जाने क्या वह जोड़ रही है ! 




तुम्हारे जाने में 
वो जो फिर से आने की
आहट होती है न, 
जैसे कोमल गंधर्व लगा हो मालकोश का

जाकर जोऔर क़रीब आ जाते हो तुम,
वो जो लगता है इंतज़ार का मद्धम सुर,
जो ख़्वाहिशों की पाज़ेब
छनकती रहती है हरदम, 
वो जो जूही की डाल सी 
महकती रहती है मुस्कुराहट
वही जीवन है
वही प्रेम है


तुम्हारा दुःख मुझसे 

सहा नहीं जाता,

तुम्हारी ज़रा-सी तकलीफ़ 

मुझे बेचैन कर देती है,

न जाने क्यों मुझे हर वक़्त 

तुम्हारा ही ख़्याल रहता है. 



दूर किनारे जा रूकती है 
फिर भी नाविक लेकर उसको 
पुनः लौट है जाता 
बार-बार गिरकर भी उठना 
ठोकर खा-खा कर भी चलना 
नए-नए आयाम को गढ़ना 
रोज़ नए अनुभव से मिलना 
रोज़ नयी मुश्किल से लड़ना 
यही है मंज़िल यही राह है 

संस्मरण : मिलना जीत सिंह से


मैं उत्साहित होकर किताबें मँगवा तो लेता हूँ लेकिन उसे पढ़ता आने के कई दिनों (कई बार तो वर्षों) बाद ही हूँ। इसका मुख्य कारण ये है कि तब तक किताब के प्रति सारी उत्सुकता और अपेक्षाएँ खत्म हो जाती हैं और मेरा अनुभव रहा है कि बिना किसी अपेक्षा से आप किसी किताब को पढ़ो तो आप उसका लुत्फ अधिक उठा पाते हो। जबकि खरीदते वक्त क्योंकि आप उसके ब्लर्ब या किसी रिव्यू या किसी के सजेशन के कारण ही किताब खरीदी होती है हो तो तुरंत पढ़ें पर एक  तरह की अपेक्षा आपकी किताब से बँध जाती है। फिर अपेक्षा से अलग किताब निकले तो आप उसका लुत्फ नहीं उठा पाते हो। 

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आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में।
 सकारात्मक रहिए।
खुश रहिए।





6 टिप्‍पणियां:

  1. अप्रतिम अंक क्रमांक 4000..
    शुभकामनाएं
    कल विश्व हिंदी दिवस है
    कल और उत्कृष्ट रचनाएं
    पढ़ी और पढ़ाई जाएगी
    आभार....

    जवाब देंहटाएं
  2. अनुपम अंक
    4000 सोपान तक का सफर अद्भुत है और इसके सहभागी होने का गौरव भी। हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं आप सभी को यह यात्रा ऐसे ही अनवरत चलती रहे। सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. हिंदी ब्लॉगर श्री रवि रतलामी जी को विनम्र श्रद्धांजलि ! चार हज़ार अंकों के सफ़र तक पहुँचने के लिए पाँच लिंकों के आनंद को बधाई ! आज के अंक में 'मन पाये विश्राम जहां' को शामिल करने हेतु बहुत बहुत आभार श्वेता जी।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुंदर अंक. बहुत बहुत आभार

    जवाब देंहटाएं
  5. श्री रवि रतलामी जी को नमन और श्रद्धांजलि | ४००० वें अंक पर बधाई |

    जवाब देंहटाएं

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