।।उषा स्वस्ति।।
"माघ का सुंदर सवेरा...
खिल रहा बटियों के ऊपर
तरल जलधारा लरजती, ठिठक चलती,
और तुहिनों से सजी पूरब की धरती,
शांत निर्मल सुखद किरणें उतरतीं
निःशब्द
पग धर
मंदिरों की घंटियाँ बजतीं मधुर-सी
गूँजती फिरतीं
दिशाओं में भँवर सी !"
पूर्णिमा वर्मन
प्रस्तुतिकरण में आज लाई हूँ चुनिंदा लिंक जिसे आप सभी पढ़ें और चंद शब्दों से अलंकृत करें.✍️
कोलीन जे. मैकलेरॉय
पिछले हफ्ते मैं गया था मुंबई
वहां का मौसम था सुरमई
दिल्ली की सर्दी थी कंपकंपाती..
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अरमाँ की तरह जो संग चले
बाहों में वो कुछ यूँ भर ले
जैसे कोई अपना होता है
जैसे कोई सपना होता है .
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सुनो वत्स
मुझे मर्यादा पुरुषोत्तम
जानते है सब
मुझे मर्यादा में ही रहने दो..
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अति उन्माद अराजकता को जन्म देता है
समय रख रहा है आधारशिला
कल की, परसों की
बरसों की
इस दौर में
सत्य का घूँट
हलक से उतरा नहीं करता
तुम बोलोगे
मारे जाओगे..
।।इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️
बेहतरीर व स्तरीय रचनाओं से पगा अंक
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
सुंदर अंक
जवाब देंहटाएंमुझे भी शामिल करने का शुक्रिया
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