शुक्रवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
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जीवन की प्रतिध्वनि के लौटने की प्रतीक्षा में -
दूरियों के परकोटे पर घायल
अनुत्तरित स्पर्शों की गंध
दृश्यता के दायरे में बंद है,
शून्य में फैली
चेतना की बूँदों को
समेटने के प्रयास में
मौन के टूटते वलय से
भीगी उंगलियों की पोर
क्षणभर में सोखती है
शीतलता
यह जीवन की उष्मता है
या सहज कर्मण्यता ?
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आइये आज की रचनाएँ पढते हैं-
नीड़
बस पल थोड़ा बीत जाने दे,
खुशियों के गीत चंद गाने दे।
क्षणभंगुर ही सही, हमें बस!
बन बसंत तू छाने दे।
फिर कालग्रास बन जाएंगे,
आँगन छोड़ यह जाएंगे।
आज बसंत, फिर कल पतझड़,
यही! यहाँ का फेरा है।
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उसकी ख्वाहिशें भी भोली थीं
बिल्कुल उसी की तरह ।
धीरे धीरे दुनिया की नजर लगी,
उसकी ख्वाहिशें उसकी न रह गईं
उसकी खुशियों पर दूसरों की
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रूमानी होने का मतलब
सिर्फ वही नहीं होता
तुम भी हो सकती हो रूमानी
अपने दायरों में
इक दूजे की आँख में झाँककर
सिर्फ इश्क की रुमानियत ही रुमानियत नहीं हुआ करती
उदासियों की रुमानियतों का इश्क सरेआम नहीं हुआ करता
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भाई से भाई लड़ता है,
बेटा बाप पे अकड़ता है!
धन-दौलत की खातिर इन्सां,
अपनों के सीने चढ़ता है!
बेटी बिके बाज़ारों में,
ठगी भरी व्यापारों में!
नेता रीढ़विहीन हो गए,
जनता पिसती नारों में!
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खिले कमलिनी मंद मंद
औ बहे पवन फैले सुगंध
कोयल कुहुके पपिहा गाए
चले पवन उड़ जाय चुनरिया
छलके भरी हुई गागरिया
पथिक ठहर जब प्यास बुझाए
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एक दिन दुल्हन बोली-"माँ जी सारी क्रॉकरी बहुत ही खूबसूरत है। मुझे तो हर समय डर लगा रहता है टूट न जाए!फिर मेहमानों के लायक तो रहेगी नहीं। ऐसा करती हूँ इन सबको तो करीने से अलमारी में सजाकर रख देती हूँ। साधारण क्रॉकरी मुझे बता दीजिये। कल सुबह की चाय मैं बनाऊँगी ।''
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कल का अंक में पढ़ना न भूले
विभा दी की विशिष्ट प्रस्तुति।
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जीवन की प्रतिध्वनि के
जवाब देंहटाएंलौटने की प्रतीक्षा में
सतत आतुर
बेहतरीन अंक
सादर
एक से बढ़कर एक बेहतरीन रचनाओं का संकलन करने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंसुंदर भूमिका! सार्थक संकलन!!! साधुवाद!!!
जवाब देंहटाएंप्रिय श्वेता जी, नमस्कार !
जवाब देंहटाएंसुंदर,सारगर्भित रचनाओं का संकलन तथा शानदार प्रस्तुति के लिए आपको हार्दिक बधाई,मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार । सभी रचनाकारों के अच्छे स्वास्थ्य के लिए हार्दिक शुभकामनाएं.. जिज्ञासा सिंह ।
बहुत बधाई श्वेता जी..अच्छे लिंक और अच्छी रचनाओं का चयन...। सभी रचनाकारों को भी खूब बधाईयां
जवाब देंहटाएंअत्यन्त सुन्दर और पठनीय सूत्र। आभार
जवाब देंहटाएंरोचक एवं पठनीय सूत्र। आभार।
जवाब देंहटाएंआज की प्रस्तुति में अच्छे सूत्र पिरोए हैं । कहीं जीवन में कलात्मकता को प्रधानता मिली तो कहीं विचारों का अपहरण कर फिरौती की सोच , नीड़ पूरे जीवन चक्र को दर्शा रहा और इंसान की गलतियों पर धरती भी परेशान हो अपने कान पकड़ रही .... फिर भी कृष्ण अपनी बंशी की तान पर मधुर धुन बजा रहे । कम से कम इसे सुन तो मन हर्षित हुआ ।
जवाब देंहटाएंतुम्हारी लिखी भूमिका पर कुछ पंक्तियाँ मेरी भी ---
जीवन की उष्णता
अभी ठहरी है
उद्विग्न है मन
और आशा भी
नहीं कर पा रही
इस मौन के
वृत में प्रवेश
बस एक उच्छवास ले
ताकते हैं
निर्निमेष नज़रों से
लगता है कि
अब पाना कुछ नहीं
बस खोते ही
जा रहे हर पल।
जीवन की प्रतिध्वनि के लौटने की प्रतीक्षा में -
जवाब देंहटाएंदूरियों के परकोटे पर घायल
अनुत्तरित स्पर्शों की गंध
दृश्यता के दायरे में बंद है,
प्रभावशाली, मार्मिक पंक्तियों के साथ अंक की भूमिका वर्तमान परिस्थितियों का आकलन करती हुई। प्रिय श्वेता के चिरपरिचित अंदाज में एक बेहतरीन अंक का प्रकाशन।
पाँच लिंकों की विशेषता है कि अंक का आगाज़ पढ़ते ही अनुमान हो जाता है कि ये किसकी प्रस्तुति है। भाई कुलदीप ठाकुर की, विभा दी की, या किसी और की।
बहुत अच्छे लिंकों का चयन, जो पढ़ने के बाद समय के सदुपयोग की संतुष्टि भी देता है और चिंतन मनन की प्रस्तावना भी। मेरी रचना को शामिल करने हेतु बहुत बहुत आभार प्रिय श्वेता। हार्दिक स्नेह के साथ।
सुंदर अनुपम कृतियों का संकलन
जवाब देंहटाएंलाजवाब प्रस्तुतीकरण उम्दा लिंक संकलन...
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।