यूँ तो आज कर्मी दिवस है लेकिन समझ में नहीं आया कि क्या कहूँ....
ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्
कभी भी कैसी भी परिस्थितियों में कमजोर नहीं पड़ने वाली को भी चाहिए ....
‘‘आप इस वृद्धा को मेरे साथ भेज दीजिए. मैं भी उधर का ही रहने वाला हूं. आज शाम 4 बजे टे्रन से जाऊंगा. इन्हें ट्रेन से उतार बस में बिठा दूंगा. यह आराम से अपने गांव पीपला पहुंच जाएंगी.’’ सिपाहियों ने गोमती को उस अनजान व्यक्ति के साथ कर दिया. उस का पता और फोन नंबर अपनी डायरी में लिख लिया.
'अज्ञान खत्म हुआ तो मोक्ष हथेली पर है'
आकाश में चक्कर लगाते हुए वह दिखाई पड़ी
परिधि इतनी बड़ी थी उसके चक्कर लगाने की
जैसे वह समूचे आकाश को किसी अदृश्य धागे से
बाँध रही हो…
यह एक बढ़िया छंद था
जो मेरी आँखों के आगे रचा जा रहा था
'कड़वा फल मीठा है और मीठा फल कड़वा है'
अर्जुन ने पाया सारथि रुपी कृष्ण का संग ,
और ...,
मीरा के श्रद्धा-समर्पण भरे गीतों का सारंग ...,
ये ही परमेश्वर ........,
ये ही परमानन्द।
प्रेम है....
मानवीय -संवेदनाओ की की सौंधी- सुगंध...।
'गठबंधन की पृष्ठभूमि को आकार देने वाला निराकार'
लोगों की हिम्मत?
जवाब देंहटाएंइतना बड़ा झूठ बोला श्रवण ने मुझ से? मुझ से मुक्त होने के लिए ही मुझे इलाहाबाद ले कर गया था. मैं इतना भार बन गई हूं कि मेरे अपने ही मुझे जीतेजी मारना चाहते हैं. वह खुद को संभाल पातीं कि धड़ाम से वहीं गिर पड़ीं. सब झेल गईं पर यह सदमा न झेल सकीं. उन्हें दिल का दौरा पड़ा और वह सचमुच मोक्ष…
सादर..
बहुत सुंदर विषय पर सज्जित आज के संकलन के लिए बहुत बधाई आदरणीय विभा दीदी,आपको मेरा सादर नमन एवम वंदन ।
जवाब देंहटाएंवाह।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआदरणीय दीदी ,मोक्ष के बहाने इस भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद। मोक्ष आध्यात्मिक जीवन की सबसे बड़ी लालसा मानी जाती है। पर जप- तप संयम, ध्यान, सात्विक आचरण के लिए आज किसी के पास समय नहीं! फिर भी साहित्य में मोक्ष एक चहेता विषय रहा है और इस पर खूब लिखा गया है। आजके अंक के लेख, कविता, पुस्तक समीक्षा सब बेहतरीन थे पर कहानी मोक्ष पढ़कर अनायास आँखें बरस पड़ी। श्रवण कुमार की भूमि पर गोमती माँ के कुटिल श्रवण की कारगुजारी से अपार क्षोभ की अनुभूति हुई। जब माता-पिता बड़ी उम्र के हो जाते हैं तो उनके साथ बहुत उलझनें स्वाभविक हैं पर कुटिलता से गंगा में डुबोकर अथवा कुंभ में सदा के लिए छोड़कर आने के बहाने उनसे छुटकारा पाने की लालसा कहाँ तक उचित है? एक स्नेही बेटे का स्वांग रच ममतामयी ,निश्चल माँ को धोखा देने वाले बेटे -बहु की हकीकत जान कर आखिर माँ को सही मोक्ष की प्राप्ति हो गयी। छद्म संसार से प्रयाण कर जाना ही उनका सबसे बड़ा मोक्ष था!
जवाब देंहटाएंअंक पर विलम्बित प्रतिक्रिया के प्रतिक्रिया के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ। आपको सादर आभार और शुभकामनाएँ इस सुंदर प्रस्तुति के लिए🙏🙏🌹❤
ये कहानी आज के युग की देन है। मर्मस्परसी
जवाब देंहटाएंकहानी।