आज भी छत पर फूल खिला है
गुड़हल का
आज भी श्यामा-तुलसी
भीनी महक रही
आज भी छत पर गौरैया हैं
चहक रहीं
सिर्फ़ नहीं हो तुम
तो है सूनी पूरी छत
पिछले सवा महीने से अस्पताल में थे
मैं तो नहीं पढ़ पाई...हिम्मत ही नहीं हुई
"श्री रघुबीर प्रताप ते सिंधु तरे पाषान।
ते मतिमंद जे राम तजि भजहिं जाइ प्रभु आन॥"
की तुलना में ..... अब आगे की बातें " प्रिया संग मानसिक संवाद ...
( भाग-२ ). " में करते हैं। आज बहुत हो गई बतकही। उँगलियों संग तन-मन दोनों थक चुके हैं।
अब स्वतः संगरोध में तनिक बिस्तर पर विश्राम कर लें .. बस यूँ ही ...
हर तरफ है मौन मृत्यु जुलूस,
गूंगी एहसास, दूर तक रुद्ध विलाप,
फिर भी ज़िन्दगी दौड़ती है आख़री सांस तक,
गली कूचों से निकल कर,
नगर सीमान्त के उस पार,
कहीं किसी मोड़ पर
शायद मिल जाए वो अदृश्य पहरेदार।
इधर घटा है, उधर घटा है,
घटा ही घटा, चहुँ ओर घटा
नाचे मोर के संग मोरनी,
अन्तर के पट हटा-हटा
धरती का हर कण गदराया,
जित देखूँ तित हरा-हरा
ताल, तलैया, सरवर, पोखर,
सबका पनघट भरा-भरा
है ख्वाहिशें भी पतंग सी
कि हवाएं भी मलंग सी
आके महसूस करो
तुमसे बंधी है उन आसों को
बांधों मुझे इन धागों से
सांसों को मेरी , तेरी सांसों से
कोई कैसे, समेट ले ये सफर,
गुजरती है, इक याद संग, जो इक उम्र भर,
स्निग्ध सा, मैं उस क्षण का मारा,
उन्हीं ख्यालों से हारा!
समेट लूँ, उनका ख्याल कैसे....
....
फिर मिलते हैं
अगली प्रस्तुति में
सादर
दोनो उत्सव शुभ हो
जवाब देंहटाएंसादर..
बहुत अच्छे लिंक हैं यशोदा जी। विशेषकर सुबोध जी के मन की इस दौर के असंख्य लोगों के मन की है। सभी रचनाकारों को खूब बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लिंक्स।
जवाब देंहटाएंसदैव की तरह बहुत कम रचनाओं के संग बेहतरीन रचनाओं की प्रस्तुति। सभी रचनाओं से कुछ-न-कुछ सीखने को मिला।
जवाब देंहटाएंखूबसूरत रचना प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना है आपके द्वारा लिखी गई Hindi info
जवाब देंहटाएं"पांच लिंकों का आनन्द" में मेरी कविता शामिल करने के लिए हार्दिक धन्यवाद यशोदा अग्रवाल जी 🙏
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