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सोमवार, 19 अक्तूबर 2020

1919 ...जो खटकता है वही ला कर लिख पटकता है

सादर अभिवादन
मात्र एक सोच..
कवि सम्मेलन कवि
कोई कवि वाहवाही पाने के लिए लिखता है 
वह श्रोता के अनुसार अपनी पुरानी कविताएँ सुनाता है
वास्तविक कवि....
तो कोई अपने मन के उद्गार को उड़ेल देता है
सही पाठक सराहना करते हैं

कुछ एक्स्ट्रा स्पेशियल होते हैं जो
सिर्फ अपने लिए ही लिखते है ...
उनको प्रतिक्रियाओं की दरकार ही नही रहती
और अधिकतर लोग अपने ब्लॉग में
प्रतिक्रियाओंं का डब्बा भी नही रखते

अब रचनाएँ देखें....


न जाने क्यूँ ज़िन्दगी घूम फिर के
सारी दुनिया, आख़िर लौट ही
आती है, उसी जगह
जहाँ उसे आने
की इच्छा
कभी
नहीं होती, चाँद के हाथों रहता है -


बाट निहारूँ 
कब तक अपना 
जीवन वारूँ 

आ जाओ प्रिय 
तुम पर अपना 
सर्वस हारूँ



रूह से लिपटी जाय-
तनिक विलग ना होती,
रखूं   इसे संभाल -
जैसे सीप में मोती ;
सिमटी  इसके  बीच -
दर्द  हर चली भूल सी !!


इश्क़ के सभी हर्फ़ पढ़ डाले
इश्क़ मेहरबान हुआ मुझ पर
दुआएं कबूल हुईं मेरी
हर्फे- मोहब्बत में
तेरा नाम लिखा पाया...!!


एक पुरानी कतरन


जगह जगह
हो रही लूट खसोट पर
आँख बंद कर
‘उलूक’ के
कुछ कह देते ही 
मौका पाकर
उसे नोचने खसोटने को 
समझदार होशियर
एक
तुरंत झपटता है ।

इति शुभम्
सादर




7 टिप्‍पणियां:

  1. सस्नेहाशीष संग शुभकामनाएँ छोटी बहना
    सराहनीय प्रस्तुतीकरण

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह ! बहुत ही सुन्दर सूत्रों से सुसज्जित आज की हलचल ! मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार यशोदा जी ! सप्रेम वन्दे !

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर और भावपूर्ण संकलन आदरणीय दीदी | मेरी रचना को ढूंढकर शामिल करने के लिए बहुत बहुत आभार | ब्लॉग जगत की ओर से रीडिंग लिस्ट में आजकल रचनाओं की गिरती संख्या को देख कर हैरान हूँ | मैं व्यस्त हूँ तो लगता है सभी व्यस्त हैं | लगता है सबको फेसबुक ज्यादा भाने लगी और लोग अपना घर यानी ब्लॉग छोड़कर वहीँ डेरा जमाये हैं | आशा है सब अपने घर जल्द वापिसी करेंगे |आजके स्टार रचनाकारों को सस्नेह शुभकामनाएं और आपको हार्दिक आभार मेरी रचनाको मंच पर सजाने के लिए |

    जवाब देंहटाएं

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