शीर्षक पंंक्ति: फ़िराक़ गोरखपुरी
सादर अभिवादन।
बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
तुझे ऐ ज़िन्दगी, हम दूर से पहचान लेते हैं।
मेरी नजरें भी ऐसे काफ़िरों की जान ओ ईमाँ हैं
निगाहे मिलते ही जो जान और ईमान लेते हैं।
-फ़िराक़ गोरखपुरी
हद तो जब हुई जब उसकी भाभी के कदम पड़े
मैं बेचारा यूँ ही खण्डों में बंटा
हम इस गाँव वे रहे वहीं जहां पहले रहते थे
है जिम्मेदारी मेरी दोनों घरों की किसी और की नहीं |
जाग री तू विभावरी... मालती मिश्रा
चंचल चपला नवयौवना
तू रूप श्यामल निखार री
मस्तक पर मयंक शोभता
धरती पर कर उजियार री
अंबर थाल तारक भर लाइ
कर आरती तू विभावरी
कोरोना काव्य और क्रोचे ...प्रतिभा सक्सेना
इन कोरोनाकुल दिनों में, में मुझे क्रोचे की बड़ी याद आ रही है. कितने हल्के-फुल्के लिया था हमने इस महान् आत्मवादी दार्शनिक को! पर अब पग-पग पर इसके अभिव्यंजनावाद की महिमा देख रही हूँ.यों भी इस कोरोना-काल जब व्यक्ति अपने आप में सिमट-सा गया है, उसकी आत्मानुभूति प्रखर होती जा रही है परिणामतः उसके भीतर कलात्मक विस्फोट होने लगे हैं.कविता हर आत्मा में कौंधने लगी है
जिस पौधे की सेवा
बहुत की थी,
फिर छोड़ दी थी
सारी उम्मीद ।
हिज़्र की फिक्र तब नहीं थी
जब वस्ल ने दामन थामा था,
अब जो कारवाँ उजड़ गया तो
ज़िन्दगी कहाँ रह जाती है।
आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे अगले मंगलवार।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
शानदार अंक..
जवाब देंहटाएंआभार...
सादर..
बेहतरीन अंक..
जवाब देंहटाएंआपसे गुज़ारिश..
प्रतिदिन मुखरित मौन का अंक
भी देख लिया करें..
सादर..
उम्दा लिंक आज की |मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार सहित धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंसभी लिंक्स शानदार। मेरी रचना को प्रकाशित करने के लिए धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंसीमित और सुचारु - इस आनन्द के लिए आपका आभार!
जवाब देंहटाएंशानदार अंक, सभी रचनाएँ बेहतरीन। मेरी रचना को शामिल करने के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंइस पन्ने पर जगह देने के लिए बहुत धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंसुरुचिपूर्ण संयोजन । फिराक गोरखपुरी साहब की पंक्तियों ने जगजीत सिंह और चित्रा सिंह की गाई ग़ज़ल याद दिला दी ।
नारी सम्मान पर कुछ पंक्तियाँ, उम्मीद है आपको पसंद आएगा
जवाब देंहटाएंhttps://helphindime.in/hindi-kavita-naari-sammaan/