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शनिवार, 17 अक्तूबर 2020

1917.. पैबंद

तुम्हें पता है अरुण अनन्त आज से नवरात्र शुरू है.. नवरात्र पर प्रस्तुति बनाने की हिम्मत नहीीं हुई..

बिटिया संग तो खुश थे.. कितनी बड़ी वाली गलतफहमी पाल लेने वाली मैं मूर्ख हूँ...

शब्द व सन्तान.. इससे ज्यादा क्या चाहिए जीने के लिए..

श्रद्धांजलि लेने की इतनी हड़बड़ी क्यों हुई..

 अरुन अनन्त ना आकलन करना चाह रही हूँ और ना कुछ पता कर पाने का साधन दिख रहा है।

कभी मुझे लगता रचनाकार अपनी बात लिखता है तो कई बार मुझे डांट सुनने को मिला कि समाज से मिली अनुभति और यथार्थ बनाने के लिए कल्पना मिलाकर सृजन होता है... लेखन पर मैसेज करना बंद कर दी.. आज ग्लानि में हूँ कि उसे फोन क्यों नहीं की.. समझ से परे है क्या करूँ इस बेटे के इस कार्य पर... माँ कहता था.. बस कहने के लिए हम रिश्ते बना लेते हैं.. निभाने में हार जाते हैं.. असफल हूँ लगाने में..

पैबंद

मूढ़-गूढ़ दुनिया में

गंतव्य से भटके हुए

लोगों के पते पर 

क्यों डाक दे रही हैं

मेरी बौखलाहटें

 दर्द के पैबंद

– तोड़ औरों के घरौंदे घर बसा बैठे हैं लोग

फिर शिकायत कर रहे क्यों टूटते सम्बन्ध हैं।

-दूसरों पर पाँव रखकर चढ़ रहे हैं सीढ़ियां

और कहते हैं उसूलों के बहुत पाबन्द हैं।

नया पैबंद

सुई-धागे के पुराने डिब्बे से

निकाल लेती हूँ, एक पेन्सिल और कागज़

जिसमे पिरो देती हूँ कुछ शब्द…

और शब्दों में बाँध देती हूँ भाव

इन भावों के एक-एक टांकों से,

हौले-हौले सिल देती हूँ

अपना ताज़ा तरीन जख़्म!

शिकायत

जो तुम मिल गए 

प्रेम भरे दिन न जाने कब के फिर गए। 

तुम कहते हो मै लड़ती हूँ 

अपने हक़ की ही कहती हूँ 

सुनो न सुनो मर्जी तेरी 

जब तक ध्यान नहीं दोगे तुम 

मै तो कहूंगी 

तुमसे नहीं तो किससे लड़ूंगी ??

मोची राम

मेरी ऑंखें बूढ़ी हो चलीं 

सब कुछ धुंधला धुंधला सा दिखता है 

पर इतना भर तो दिखता ही है 

कि वह खिड़की के आरपार अभी तक डेरा जमाए है 

वर्तमान के जूतों पर 

अपनी ऐतिहासिक समझ की पैबंद लगाता 

उसे दुरुस्त करने की पुरजोर कोशिश करता ..

><><><><><

पुनः भेंट होगी...

><><><><><


6 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन
    अपनी ऐतिहासिक समझ की पैबंद लगाता
    उसे दुरुस्त करने की पुरजोर कोशिश करता ..
    सदाबहार प्रस्तुति..
    सादर नमन..

    जवाब देंहटाएं
  2. हर सप्ताह आकर
    कयामन ढाकर मन लुभा जाती हो
    सादर नमन

    जवाब देंहटाएं
  3. भावपूर्ण प्रस्तुति जो अरुण जी के कारण बहुत मार्मिक हो गई है आदरणीय दीदी. मुझे खेद है अरुण जी को नहीं जानती, पर फेसबुक पर उनके विषय में मनहूस खबर के साथ उनका तेजस्वी चित्र देखकर मन बहुत उदास हुआ. एक युवा प्रतिभा का यूँ जाना बहुत दुखद लग रहा है. विनम्र श्रद्धांजलि 🙏🙏🙏.
    एक दुर्लभ और जटिल विषय पर सार्थक प्रस्तुति. सभी रचनाकारों को बधाई और शुभकामनाएं. आपको भी आभार और शुभकामनाएं.🙏🙏💐💐🌹🌹💐💐

    जवाब देंहटाएं
  4. The show must go on
    आप सभी को नवरात्र की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई आदरणीय दीदी🙏🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
  5. कभी कभी शब्द नहीं मिलते भाव प्रकट करने के लिए।
    जी दी आपके द्वारा सजाया अंक सदैव विशेष होता है।
    सावर।

    जवाब देंहटाएं

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