शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन।
----
आपने महसूस किया है बदलते मौसम में प्रकृति की गुनगुनाहट....।ऋतुओं के संधिकाल में प्रकृति की असीम ऊर्जा धरती पर आच्छादित रहती है।
कास के फूलों का श्वेत मनमोहक रेशमी दुपट्टा ओढ़े धरा,बादलों की अठखेलियाँ हवाओं की मादक शीतलता ,तितलियों के मनमोहक झुंड प्रवासी पक्षियों के कलरव शरद के आगमन का संकेत है।
आइये आज की रचनाएँ पढ़ते हैं-
सच्चे मन से की गयी प्रार्थना कभी व्यर्थ नहीं होती
कितने कष्ट सहे जीवन में
तुमसे कभी न मिलने आया
कितनी बार जला अग्नि में
फिर भी मस्तक नही झुकाया
पहली बार किसी मंदिर में
मैं भी , श्रद्धा लेकर आया !
मिलिए एक नयी चिट्ठाकारा से
नींद टूटे, स्मरण जागे
फिर खिल उठे मन का कमल
जो बन्द है मधु कोष बन
हो प्रकट वह शुभता अमल !
हम बिंदु हैं तो क्या हुआ
सिंधु से नाता जोड़ लें,
इक लपट ही हों आग की
रवि की तरफ मुख मोड़ लें !
अरहर की आम पड़ी चूल्हेवाली दाल जिसमें देसी घी में लहसुन-मिर्च का करारा छौंक लगा हो ,उसके आगे म़ॉडर्न करियाँ फीकी लगती हैं.हमारे घर लौकी के बड़े-बड़े टुकड़े दाल चढ़ाने के साथ ही डाल कर घुला दिये जाते थे ,जिससे दाल में विलक्षण स्वाद का आ जाता थ. सिल पर पिसी चटनी की तो बात ही क्या !
-----
कल मिलिए विभा दीदी से
उनके एक असाधारण प्रस्तुति के साथ
-श्वेता
सराहनीय प्रस्तुतीकरण..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंसादर..
आभार पोस्ट पसंद करने को श्वेता ...
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीया श्वेता जी
जवाब देंहटाएंसभी लिंक्स बेहतरीन
सुस्वादु पञ्चामृत !
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर सराहनीय प्रस्तुति सभी लिंक्स बेहद उम्दा।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं।