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बुधवार, 14 अक्तूबर 2020

1914..उसूलों की तामील दीजिये तो बात बने..

 


।। भोर वंदन ।।
मुझे विश्वास है
यह पृथ्वी रहेगी
यदि और कहीं नहीं तो मेरे हड्डियों में यह रहेंगी
जैसे पेड़ के तने में रहते है दीमक
जैसे दाने में रह लेता है घुन
यह रहेगी प्रलय के बाद भी मेरे अन्दर
यदि और कहीं नहीं तो मेरी ज़बान
और मेरी नश्वरता में
यह रहेगी
केदारनाथ सिंह ( आँसू का वजन)
जीवन सार को उकेरती हुई शब्दावली से आज शुरूआत करते हैं..✍️
***




पार्क, स्टेशन, सड़क हो 
या बाजार
ये जो तुम हर जगह मुझसे 
बीस कदम आगे चलते हो न
नाक की सीध में एकदम
सीना तान कर
सतर कन्धे
हथेली पर सूरज उगाए..

***
ज़मीर की ज़मीन बंजर होगई आजकल
उसूलों की तामील दीजिये तो बात बने।।

रिश्तों की क्यारी में रेत ही बाकी बची रोने को
 इसमें स्नेह के फूल खिले तो बात बने।।

रूप बदला चाँद ने भी अनेकों  गगन में...
***


पनीर चिल्ली के तर्ज पर शेखचील्ली नाम को कोई खाने का व्यंजन मत समझ लेना। शेखचील्ली साहब हमारी पुरानी दंतकथाओं में यहां वहां देखने को मिल जाते हैं। शेखचील्ली साहब को दिन में सपने देखने कि आदत थी और अपनी इस बीमारी के कारण ही...

***
- लूइस ग्लूक 

 जब उनके पक्ष में 
नहीं है कोई निर्णय 
फिर बेहतर है  उनका डूब जाना ही।  
चलिए, भीषण सर्दी में सबसे  पहले 
उन्हें बर्फ के भीतर डुबोते हैं 
***


आ० उषा यादव जी की कलम से.. आज की बातें यहीं तक..पढ़कर टिप्पणी अवश्य करें..
माना मुझे कविता लिखना नहीं 
आता ,पर मेरे अंतर्मन से निकले 
हर शब्दों का अहसास हो तुम।
मेरे प्यार की एक अलग पहचान
हो ,तुम जिसकी दर्द भरी अपनी
***
।। इति शम ।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'.✍️

5 टिप्‍पणियां:

  1. भूमिका की सराहनीय पंक्तियों के साथ पठनीय सूत्रों से सजी सुंदर प्रस्तुति दी।

    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  2. सुन्दर प्रस्तुति हमारी रचना को शामिल करने के लिए ह्र्दयतल से आभार।

    जवाब देंहटाएं
  3. मेरी रचना को शामिल करने का आभार...!

    जवाब देंहटाएं

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