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शनिवार, 3 अक्तूबर 2020

1905... मकड़जाल

यथायोग्य सभी को
प्रणामाशीष
रेत व पत्थर को तपा कर लोहा बनाते
शाबासी के अधिकारी अगरिया टोली
समुदाय को भीड़ में बदल देती
प्रवादी की बोली
अयस्कों को मात देता
घृणा की चिंगारी बढ़ाया जाता
उत्तेजित दुश्मनी का शक्ल है पाता
घूंघू , धाना, कुटासिर, हल, हसिया,
छेनी, कुदाली, तलवार, भाला, टंगिया
सब घिरे मकड़जाल
बेवसी शिकार की देखें फिर भी पर सब फंसते जाते।
सबके छाया अज्ञानी परदा और कोई सबक नही लेते।
नर कर्मों के बुनता तंतुजाल औरों को ही फँसाना चाहे।
पर कोई नहीं फंद में आये वो खुद ही फँसकर रह जाये।

मरता नहीं कोई किसी के बगैर, ये हकीकत है जिंदगी की..!
लेकिन सिर्फ साँसें लेने भर को, जीना तो नहीं कहते....!!

उजड़ी हुई दुनिया को तू आबाद न कर,
बीते हुए लम्हों को तू याद न कर,
एक कैद परिंदा का है तुमसे यही कहना-
"मैं भूल चूका हु उड़ना मुझे आज़ाद न कर"

पीड़ाओं के मकड़जाल हैं
मौत को भी इज्जत नहीं बख़्शी
पर मौत रोज
जिंदगी को कचोटती है
कि दौड़ो ,खटो,लगो काम पर
मौत खुद डरी रहती है
अपनी बदनामी पर!

मर्ज भी तो खास है
हुआ इक नदी को
हृदयाघात है !
नदी को हृदयाघात !!
ये क्या नया बवाल है?
भई ये कैसा गोलमाल है!
देह में क्या फैला हुआ
धमनियों का जाल है?

मेरे गुरु डा0 रघुवंश जी का उपन्यास ‘तन्तुजाल’।रघुवंश जी के ‘तन्तुजाल’ का
नायक भी ट्रेन की लम्बी यात्रा में है। और उसकी पूरी यात्रा के साथ घटनाओं,संवेदनाओं
और व्यक्तियों का समूह लेखक से लगभग चार सौ पृष्ठ लिखवा डालता है। पूरी यात्रा में
 ट्रेन की खटर खट्ट,----सीटी,  स्टेशन,चायवाले वेण्डर,कुली---और 
उनके बीच से निकलता नायक का चिन्तन ,
उसकी सोच,समाज,देश के प्रति उसकी चिन्ताएं—और भी बहुत कुछ।

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पुन: भेंट होगी...
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4 टिप्‍पणियां:

  1. पीड़ाओं के मकड़जाल हैं
    मौत को भी इज्जत नहीं बख़्शी
    शानदार सदाबहार प्रस्तुति
    सादर नमन..

    जवाब देंहटाएं
  2. अति उत्तम भूमिका की पंक्तियाँ दी।
    इस जात पात के कोढ़ से गलते समाज का छद्म आधुनिकता का वैचारिकी मकड़जाल हमेंं किस गर्त में ले जा रहा ये गंभीर रुप से विचारणीय है।

    ढूँढ ढूँढकर बेहतरीन रचनाएँ संजोती है दी आप ..आपके द्वारा पिरोये सूत्र सबसे अनूठे हैं।
    सादर प्रणाम दी।

    जवाब देंहटाएं

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