सादर अभिवादन।
गुरुवारीय प्रस्तुति लेकर हाज़िर हूँ आपकी सेवा में-
उँगली उठानेवाले हैरान होते हैं
जब दर्पण उन्हें दिखाया जाता है,
दिल पर लगे ज़ख़्म हरे हो जाते हैं
जब कभी माज़ी से गुज़ारा जाता है।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
आइए पढ़ते हैं आज की कुछ पसंदीदा रचनाएँ-
बनता ऐसा भूत , बात अपनी मनवाता,
दो कौड़ी का पूत, मात को आंख दिखाता;
कैसे बनते भाव, पूत बैरी बन जाता,
तो भी मांगे खैर, बनी माता तो माता ।
सुख-दुख दोनों जीवन पहलू ।
अब तक का इतिहास साथी ।।
छम-छम बरसें बूंदें घन से ।
मन में फिर भी प्यास साथी ।।
रुख़ से पर्दा ज़रा हटा उनका,
होश हम तो गँवा के बैठे हैं।
राह-ए-दिल से कभी वो गुज़रेंगे,
हम इधर सर झुका के बैठे हैं।
पर जब मैंने गढ़ा तुम्हें तब
मटका का तुम्हें नाम मिला
पानी पीकर तृप्त हो गए
चलते प्यासे राही
घर-घर ने अपनाया तुमको
प्रेम-प्यार से लाया तुमको
एक बार हमारे मित्र ने किसी मैनेजर को कथित अपशब्द बोल दिए. हमारी जानकारी में ये मित्र अच्छी भाषा का ही इस्तेमाल करता था गलत शब्द नहीं बोला करता था. क्या जाने क्या हुआ होगा? हो सकता है की किसी बात पर मैनेजर साब की पूँछ पर पैर आ गया हो. बहरहाल जब गोयल साब को जज बनाया गया तो जाहिर था सजा सख्त होगी.
आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे आगामी प्रस्तुति में।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
जानदार प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार..
सादर..
उम्दा लिंक्स चयन
जवाब देंहटाएंसराहनीय प्रस्तुतीकरण
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति। पढ़ कर आनंद आ गया। बहुत दिनों बाद आई सो क्षमा चाहती हूँ, परीक्षाएं थीं।
जवाब देंहटाएंबहुत ही पररणादायक और सशक्त प्रस्तुति। आप सबों को सादर प्रणाम।
Hi there 👋
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन संकलन । सभी सूत्र अत्यंत सुन्दर । मेरे सृजन को साझा करने हेतु सादर आभार ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लिंको का संचय। सभी को बधाई।
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