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गुरुवार, 15 अक्टूबर 2020

1915...जब दर्पण उन्हें दिखाया जाता है



सादर अभिवादन। 

गुरुवारीय प्रस्तुति लेकर हाज़िर हूँ आपकी सेवा में-

 

उँगली उठानेवाले हैरान होते हैं 

जब दर्पण उन्हें दिखाया जाता है,

दिल पर लगे ज़ख़्म हरे हो जाते हैं 

जब कभी माज़ी से गुज़ारा जाता है। 

 #रवीन्द्र_सिंह_यादव 

 

आइए पढ़ते हैं आज की कुछ पसंदीदा रचनाएँ-

कुण्डलिया.... सरोज दहिया 



बनता ऐसा भूत , बात अपनी मनवाता,

दो कौड़ी का पूत, मात को आंख दिखाता;

कैसे बनते भाव, पूत बैरी बन जाता,

तो भी मांगे खैर, बनी माता तो माता

"साथी"...मीना भारद्वाज 




सुख-दुख  दोनों जीवन पहलू

अब तक का इतिहास साथी ।।

 छम-छम बरसें बूंदें घन से

मन में फिर भी प्यास साथी ।।


एक ग़ज़ल.... आनन्द पाठक 


 


रुख़ से पर्दा ज़रा हटा उनका,

होश हम तो गँवा के बैठे हैं। 

राह--दिल से कभी वो गुज़रेंगे,

हम इधर सर झुका के बैठे हैं। 

 

 गीली मिट्टी...विभा ठाकुर 

पर जब मैंने गढ़ा तुम्हें तब 

मटका का तुम्हें नाम मिला 

पानी पीकर तृप्त हो गए 

चलते प्यासे राही 

घर-घर ने अपनाया तुमको 

प्रेम-प्यार से लाया तुमको 

 

ब्रीफकेस.... हर्ष वर्धन जोग 

 

एक बार हमारे मित्र ने किसी मैनेजर को कथित अपशब्द बोल दिए. हमारी जानकारी में ये मित्र अच्छी भाषा का ही इस्तेमाल करता था गलत शब्द नहीं बोला करता था. क्या जाने क्या हुआ होगा? हो सकता है की किसी बात पर मैनेजर साब की पूँछ पर पैर गया हो. बहरहाल जब गोयल साब को जज बनाया गया तो जाहिर था सजा सख्त होगी

 

 आज बस यहीं तक 

फिर मिलेंगे आगामी प्रस्तुति में। 

#रवीन्द्र_सिंह_यादव

 

7 टिप्‍पणियां:

  1. जानदार प्रस्तुति
    आभार..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. उम्दा लिंक्स चयन
    सराहनीय प्रस्तुतीकरण

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही सुंदर प्रस्तुति। पढ़ कर आनंद आ गया। बहुत दिनों बाद आई सो क्षमा चाहती हूँ, परीक्षाएं थीं।
    बहुत ही पररणादायक और सशक्त प्रस्तुति। आप सबों को सादर प्रणाम।

    जवाब देंहटाएं
  4. बेहतरीन संकलन । सभी सूत्र अत्यंत सुन्दर । मेरे सृजन को साझा करने हेतु सादर आभार ।

    जवाब देंहटाएं

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