शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन।
पीड़ा की कज्जल बदरी ने
ढाँप दिए खुशियों के तारे,
इक तारा कसकर मुठ्ठी में,
बाँध लिया था, वह थे तुम !
सजा के तौर पर
मेंढक के पैरों में कील ठोंककर
उसका कलेजा निकाला जाना था
यह सब सुनकर
बिलों में छुपे साँप
बाहर निकल आए और..
तट किनारे खड़े
बरगदी वृक्ष की शाखों पर चढ़कर
कानों में
राजा का फैसला सुनाने लगे
हे महावीर औ बुद्ध तुम्हारे दिन बीते
प्रियदर्शी धम्माशोक रहे तुम भी रीते
पतिव्रता नारियों की सूची में नाम न पा
लज्जित निराश धरती में समा गईं सीते
नालन्दा वैशाली का गौरव म्लान हुआ
अब चन्द्रगुप्त के वैभव का अवसान हुआ
सदियों से कुचली नारी की क्षमता का पहला भान हुआ
....
कल मिलिए विभा दीदी से
उनकी विशेष प्रस्तुति के साथ
-श्वेता
मेंढक के पैरों में कील ठोंककर
उसका कलेजा निकाला जाना था
यह सब सुनकर
बिलों में छुपे साँप
बाहर निकल आए और..
तट किनारे खड़े
बरगदी वृक्ष की शाखों पर चढ़कर
कानों में
राजा का फैसला सुनाने लगे
हे महावीर औ बुद्ध तुम्हारे दिन बीते
प्रियदर्शी धम्माशोक रहे तुम भी रीते
पतिव्रता नारियों की सूची में नाम न पा
लज्जित निराश धरती में समा गईं सीते
नालन्दा वैशाली का गौरव म्लान हुआ
अब चन्द्रगुप्त के वैभव का अवसान हुआ
सदियों से कुचली नारी की क्षमता का पहला भान हुआ
....
कल मिलिए विभा दीदी से
उनकी विशेष प्रस्तुति के साथ
-श्वेता
बेहतरीन प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंसाधुवाद..
सादर..
सराहनीय प्रस्तुतीकरण... हार्दिक बधाई...
जवाब देंहटाएंव्वाहहहहहह..
जवाब देंहटाएंलाज़वाब...
स्वस्थ रहिए-मस्त रहिए
सादर..
बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंgood day sir.
जवाब देंहटाएंअपनी रचना की पंक्ति को शीर्षक पंक्ति में देखकर बहुत खुशी हुई। रचना का पाँच लिंकों में आना गौरवान्वित कर जाता है। बहुत बहुत आभार और स्नेह प्रिय श्वेता मुझे याद रखने के लिए।
जवाब देंहटाएंजोड़-जोड़कर जिनको मैंने
जवाब देंहटाएंजाने कितने गीत बुने,
मेरे गीतों के शब्दों के
पावन अक्षर - अक्षर तुम !!!
जैसी अभिनव पंक्तियों के साथ सुंदर प्रस्तुति प्रिय श्वेता👌👌, भूमिका का चिंतन बहुत सार्थक है. सुंदर संयोजन के लिए बहुत बहुत शुभकामनाएं और बधाई. सभी रचनाकार सराहना के पात्र है.