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गुरुवार, 29 अक्टूबर 2020

1929...लोकप्रिय पटकथाएँ तो अंधेरे में ही लिखी जाती है...

शीर्षक पंक्ति : आदरणीया अमृता तन्मय जी की रचना से।

सादर अभिवादन। 

आइए आपको आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर ले चलें-

हम और अस्तित्व....अनीता


जैसे शंकर की जटाओं में सिमट जाती है गंगा

बहती है वह जग की तृषा हरने

गौरी धरती है भीषण काली का रूप

सहना होगा जिसे असुरों का आक्रमण

हजार विरोध भी, पर वहाँ कोई नहीं होगा


मान लेते हैं हमारी हार है ...दिगंबर नासवा

मेरी फ़ोटो

सच परोसा चासनी के झूठ में
छप गया तो कह रहा अख़बार है
 
चैन से जीना कहाँ आसान जब
चैन से मरना यहाँ दुश्वार है


क्षणिकाएँ .....अमृता तन्मय

Amrita Tanmay

लोकप्रिय पटकथाएँ तो

अंधेरे में ही लिखी जाती है

हर झूठ को सच

मानने और मनवाने से ही

अभिनय में कुशलता आती है .

लॉकर में बंद... हर्ष वर्धन जोग


तब तक दो बज चुके थे. मेजर साब अपनी मैडम को लेने गए. मैडम नदारद. वो भांप गए की गड़बड़ हो गई है. जोर जोर से चिल्लाने लगे. शोर मचा तो ब्रांच का बचा खुचा स्टाफ तहखाने में इकट्ठा हो गया. चाबी वाले मैनेजर साब तो गए पर हैड केशियर नदारद! वो तो घर के लिए निकल चुका था. तभी किसी ने बताया की वो अक्सर सड़क के दूसरी तरफ बस लेता है शायद अभी भी खड़ा हो?

 

एक रेलवे स्टेशन, जो ग्रामीणों के चंदे से चलता है....गगन शर्मा

 

पर ना ही रेलवे के निजीकरण को ले कर विलाप करने वाले मतलबपरस्त, ना हीं मानवाधिकार का रोना रोने वाले मौकापरस्त और ना हीं सबको समानाधिकार देने को मुद्दा बनाने वाले सुविधा भोगी कोई भी तो इधर ध्यान नहीं दे रहा ! शायद उनके वोटों को ढोने वाली रेल गाडी इस स्टेशन तक नहीं आती 

आज बस यहीं तक 

फिर मिलेंगे अगली प्रस्तुति में। 

रवीन्द्र सिंह यादव

6 टिप्‍पणियां:

  1. सदा स्वस्थ्य रहें
    उम्दा लिंक्स चयन हेतु साधुवाद

    जवाब देंहटाएं
  2. पठनीय रचनाओं से सजी हलचल, आभार मेरी रचना को भी शामिल करने हेतु, शुभकामनाएं !

    जवाब देंहटाएं
  3. विकल मन की तृषा को तृप्त करती प्रस्तुति के लिए बधाइयाँ एवं आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  4. 'लॉकर में बंद' शामिल करने के लिए धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं

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