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शुक्रवार, 10 अप्रैल 2020

1729...आंखों का अधिकार समझ लो

शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का 
हार्दिक अभिनंदन।
-------
आज के इस दौर में
जब हमें एकजुट होकर
मानव जाति पर आये संकट का
सामना करना है,
परंतु एक-दूसरे पर दोषारोपण
करते हम नागरिक न होकर
राजनीतिज्ञ बन गये हो मानो...,
वैचारिकी मतभेद के कारण
सामाजिक दूरियों से ज्यादा
दिलों की खाई गहरी होना
चिंतनीय है।
मानव जाति के जीवन के
तारनहार बने सेवाकर्मियों के
कर्ज़दार हैं हमसभी 
जिन विपरीत परिस्थितियों में
वो अपना बहुमूल्य योगदान कर रहे
हैं
यह कभी नहीं
भूलना चाहिए।
★★★★★

मृत्यु की बर्बर आँधी से
उजड़ती सभ्यताओं की 
बस्ती में,
सुरक्षा घेरा बनाते
साँसों को बाँधने का यत्न करते,
मानवता के
जीवन पुंजों के सजग प्रहरियों को
कुछ और न सही
स्नेह,सम्मान और सहयोग देकर
इन चिकित्सक योद्धाओं का
मनोबल दृढ़ करना
प्रत्येक नागरिक का
दायित्व होना चाहिए।


#श्वेता

 आइये आज की रचनाओं का आनंद लेते है-



 पहला परिचय
चिट्ठा जगत में स्वागत है
 एक प्रतिभासंपन्न लेखिका 
संगीता श्रीवास्तव जी का


ख़ून पसीना बहाने वालों 
क़िस्मत का इज़हार समझ लो !

इक औ इक ग्यारह होते हैं 
दो और दो तुम चार समझ लो  !

लुत्फ़ यहां लो खट्टा मिठ्ठा  
अनुभव को आचार समझ लो !

ख़्वाब सजाना तेरे मेरे,
आंखों का अधिकार समझ लो !



सुधा देवरानी जी

कल पिता आधीन थी वह
अब पति आश्रित बनी
चाहे जैसा वैसा करती,
अपने मन की कब सुनी
मन नैया सा फंसा भंवर में,
ढूँढ़ता कोई किनारा,
कल्पना के गाँव में भी,
कब बना है घर  हमारा ।



जेन्नी शबनम जी

काश कि अतीत विस्मृत हो जाए  
ज़ेहन में तस्वीर कुछ ताज़ी आ जाए  
दर्द की ढ़ेरों तहरीर और रिसते ज़ख़्मों के धब्बे हैं  
रिश्तों की ग़ुलामी और अनजीए पहलू की सरगोशी है  
सब बिसरा कर नई तस्वीर बसाना चाहती हूँ  
कुछ नए फूल खिलाना चाहती हूँ  
एक नई ज़िन्दगी जीना चाहती हूँ।


कुसुम कोठारी जी

कब तक राह निहारे किसकी,
सूरज डूबा जाता।
काया झँझर मन झंझावात,
हाथ कभी क्या आता।
अंतर दहकन दिखा न पाए
कृशानु तन की अरणी।।

और चलते-चलते
प्रीति अज्ञात जी

"जी, लेकिन आपके ठसके और नख़रे देख ऐसा बिल्कुल नहीं लगता! 
आप आस्तीन के साँप हैं जो कुछ दिन बाद समझ में आते हैं. 
लेकिन आपको हमारी विशाल संस्कृति की शक्ति का रत्ती भर भी 
अनुमान नहीं! हम अकेले नहीं, करोड़ों एक साथ हैं. आपको टॉर्च 
देकर थोड़ा आगे का रास्ता तो समझा ही दिया है. अब आप 
सीधा निकल्लो जी!जाइये और अपने होम टाउन में वानप्रस्थ 
गुजारिये. तब तक आपको ट्रीट देने के लिए हम भी वैक्सीन की 
तैयारी करते हैं और देश को इस वार्ता की झलक सूत्रों के हवाले से 
देकर आते हैं." कहकर हम अदब से उठ खड़े हुए.

★★★★★

आज का यह अंक उम्मीद है आपको
अच्छा लगा होगा।
आपकी प्रतिक्रिया उत्साह बढ़ाती है।

हमक़दम के लिए

यहाँँ देखिये

कल का विशेष अंक लेकर आ रही हैं
विभा दी।

#श्वेता

10 टिप्‍पणियां:

  1. वैचारिकी मतभेद के कारण
    सामाजिक दूरियों से ज्यादा
    दिलों की खाई गहरी होना
    चिंतनीय है।

    मतभेद मनभेद होना ही नहीं चाहिए... लेकिन 'मैं सर्वश्रेष्ठ' ग्रसित नहीं समझ सकते...

    सराहनीय प्रस्तुतीकरण
    साधुवाद

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत बहुत सुंदर संकलन एवं प्रस्तुति | आपको आभार एवं बधाई

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुंदर प्रस्तुति श्वेता ।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुतै सुन्दर
    शुभ कामनाएँ
    स्वस्थ रहिए, मस्त रहिए
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  5. अच्छी रचनाओं का संकलन।
    घर पर रहे
    स्वस्थ रहें
    खुद से खुद तक का सफ़र तय करें।

    जवाब देंहटाएं
  6. सुंदर अभिव्यक्ति .. सारे अच्छे हैं ..

    जवाब देंहटाएं
  7. सुन्दर समसामयिक संदेशपरक भूमिका के साथ लाजवाब प्रस्तुतीकरण उम्दा लिंक संकलन
    मेरी रचना को यहाँ स्थान देने हेतु हृदयतल सेधन्यवाद एवं आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  8. शानदार प्रस्तुती | |मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार सहित धन्यवाद |उम्दा लिंक संकलन

    जवाब देंहटाएं
  9. सार्थक समयोपयोगी भूमिका के साथ शानदार प्रस्तुति।
    सुंदर लिंक चयन।
    सभी रचनाएं बहुत सुंदर, आकर्षक ।
    सभी रचनाकारों को बधाई।
    मेरी रचना को शामिल करने केलिए हृदय तल से आभार।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं

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