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शुक्रवार, 23 फ़रवरी 2018

952 ईंजीनियर श्री दिनेश चन्द्र गुप्त 'रविकर'

सादर अभिवादन....
देवी श्वेता अवकाश पर
आज हम एक विशेष प्रस्तुति लेकर....
आज हम बात करेंगे 
आदरणीय श्री दिनेश चन्द्र गुप्त 'रविकर' जी की....
आप बहुत सारे ब्लॉग के संचालक हैं..मसलन..
"कुछ कहना है", शांता : श्री राम की बहन
"लिंक-लिक्खाड़", नीम निम्बौरी, रविकर-पुंज
रविकर की कुण्डलियाँ, सृजन मंच ऑनलाईन....
इनमें आपकी छवि साफ नज़र आती है...
उच्चशिक्षित इंजीनियर
(Indian School of Mines, Dhanbad) और साहित्य
रिश्ता अलग...रास्ता अलग
फिर भी जुड़ गए साथ दोनों

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उनका स्वयं का कथन अपने ही बारे में
वर्णों का आंटा गूँथ-गूँथ, शब्दों की टिकिया गढ़ता हूँ| 
समय-अग्नि में दहकाकर, मद्धिम-मद्धिम तलता हूँ|| 
चढ़ा चासनी भावों की, ये शब्द डुबाता जाता हूँ | 
गरी-चिरोंजी अलंकार से, फिर क्रम वार सजाता हूँ ||
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पंजे ने पंजर किया, ठोकी दो-दो मेख-
तू ही लक्ष्मी शारदा, माँ दुर्गा का रूप |
जीव-मातृका मातु तू, प्यारा रूप अनूप ||
जीव-मातृका=माता के सामान समस्त जीवों का
पालन करने वाली सात-माताएं-
धनदा  नन्दा   मंगला,   मातु   कुमारी  रूप |
बिमला पद्मा वला सी, महिमा अमिट-अनूप ||
आध्यात्म ...

अदालत में गवाही हित निवेदन दोस्त ठुकराया।
रहे चौबीस घण्टे जो, हमेशा साथ हमसाया।

सुबह जो रोज मिलता था, अदालत तक गया लेकिन
वहीं वह द्वार से लौटा, समोसा फाफड़ा खाया।

बहुत कम भेंट होती थी, रहा इक दोस्त अलबेला
अदालत तक वही पहुंचा, हकीकत तथ्य बतलाया।

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मगर मंज़िल नही मिलती, बिना मेहनत किए डटकर-
किसी की राय से राही पकड़ ले पथ सही अक्सर।
मगर मंज़िल नही मिलती, बिना मेहनत किए डटकर।
तुम्हें पहचानते होंगे प्रशंसक, तो कई बेशक
मगर शुभचिंतकों की खुद, करो पहचान तुम रविकर।।

दिया कहाँ परिचय दिया, परिचय दिया उजास-
रखे व्यर्थ ही भींच के, मुट्ठी भाग्य लकीर।
कर ले दो दो हाथ तो, बदल जाय तकदीर।।

प्रेम परम उपहार है, प्रेम परम सम्मान।
रविकर खुश्बू सा बिखर, निखरो फूल समान।।

फेहरिस्त तकलीफ की, जग में जहाँ असीम।
गिनती की जो दो मिली, व्याकुल राम-रहीम।।
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काव्य पाठ 28 जनवरी

सोते सोते भी सतत्, रहो हिलाते पैर।
दफना देंगे अन्यथा, क्या अपने क्या गैर।।

दौड़ लगाती जिन्दगी, सचमुच तू बेजोड़ 
यद्यपि मंजिल मौत है, फिर भी करती होड़  
                                                            
रस्सी जैसी जिंदगी, तने-तने हालात. 
एक सिरे पर ख्वाहिशें, दूजे पे औकात .

हनुमत रविकर ईष्ट, उन्हें क्यों नही पुकारा
पंडित का सिक्का गिरा, देने लगा अजान।
गहरा नाला क्यूं खुदा, खुदा करो अहसान ।
खुदा करो अहसान, सन्न हो दर्शक सारा
हनुमत रविकर ईष्ट, उन्हें क्यों नही पुकारा ।
इक सिक्के के लिए, करूं क्यों भक्ति विखंडित।
क्यूं कूदें हनुमान, प्रत्युत्तर देता पंडित।।


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शांता : श्री राम की बहन
पञ्च-रत्न 
शादी होती सोम से, शांता का आभार |
कौला दालिम खुश हुए, पाती रूपा प्यार ||

चाहत की कीमत मिली, अहा हाय हतभाग ।
इक चितवन देती चुका, तड़पूं अब दिन रात । 

परम बटुक को मिल रहा, राजवैद्य का नेह |
साधक आयुर्वेद का, करता अर्पित देह ||
  
कौशल्या उत्सुक बड़ी, कन्याशाला घूम |
मन को हर्षित कर गई, बालाओं की धूम || 

श्रृंगेश्वर महादेव
भगिनी विश्वामित्र की, सत्यवती था नाम |
षोडश सुन्दर रूपसी, हुई रिचिक की बाम || 

दुनिया का पहला हुआ, यह बेमेल विवाह | 
बुड्ढा खूसट ना करे, पत्नी की परवाह ||  

वाणी अति वाचाल थी, हुआ शीघ्र बेकाम | 
दो वर्षों में चल बसा, बची अकेली बाम || 

सत्यवती पीछे गई, स्वर्ग-लोक के द्वार | 
कोसी बन क्रोधित हुई, होवे हाहाकार || 

उच्च हिमालय से निकल, त्रिविष्टक को पार | 
अंगदेश की भूमि तक, है इसका विस्तार || 

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रविकर-पुंज
कुछ हास्य-कुछ व्यंग (विधाता छंद) 
चुनावी हो अगर मौसम, बड़े वादे किये जाते।
कई पूरे हुवे लेकिन, कई बिसरा दिए जाते।
किया था भेड़ से वादा मिलेगा मुफ्त में कम्बल
कतर के ऊन भेड़ो का, अभी नेता लिये जाते।।
(२)
फटे बादल चढ़ी नदियाँ बहे पुल जलजला आया।
बटे राहत डटे अफसर मगर आधा स्वयं खाया | 
अमीरों की रसोई में पकौड़े फिर तले नौकर।
शिविर में तब गरीबों ने कहीं गम, विष कहीं खाया ।।

रविकर की कुण्डलियाँ
बानी सुनना देखना, खुश्बू स्वाद समेत।
पाँचो पांडव बच गये, सौ सौ कौरव खेत।
सौ सौ कौरव खेत, पाप दोषों की छाया।
भीष्म द्रोण नि:शेष, अन्न पापी का खाया ।
लसा लालसा कर्ण, मरा दानी वरदानी।
अन्तर्मन श्री कृष्ण, बोलती रविकर बानी ||1||

देना हठ दरबान को, अहंकार कर पार्क |
छोड़ व्यस्तता कार में, फुरसत पे टिक-मार्क |
फुरसत पर टिक-मार्क, उलझने छोड़ो नीचे |
लिफ्ट करो उत्साह, भरोसा रिश्ते सींचे |
करो गैलरी पार, साँस लंबी भर लेना |
प्रिया खौलती द्वार, प्यार से झप्पी देना ||2||

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दिनेश भाई के बारे में
थोड़ा और जानिए....
पवनपुत्र केसरी नन्दन श्री हनुमान जी इनके ईष्ट हैं
रामायण इनका प्रिय ग्रंथ है

इनका प्रिय संगीत है...
नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे
त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोऽहम्।
महामंगले पुण्यभूमे त्वदर्थे
पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते॥१॥

ध्वज प्रार्थना
नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे
त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोऽहम्।
महामंगले पुण्यभूमे त्वदर्थे

पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते॥१॥

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अथाह सागर में गोते लगाने के बाद
ये मोती चुने हैं मैंने...
आज्ञा देंं दिग्विजय को

चलते-चलते ये प्रार्थना 



9 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात.... सस्नेहाशीष
    आदरणीय श्री दिनेश चन्द्र गुप्त 'रविकर' जी की रचनाएँ पढ़ना सुखद रहा

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह...
    अच्छा शोध..
    गलतियाँ हो जाती है
    आप विषय बताना भूल गए...
    चलिए हम बताए देते हैं
    इस वार का विषय है
    प्रश्न..
    विवरण मंगलवार की प्रस्तुति में
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह दिगविजय जी क्या प्रस्तुति दी है। आभार। रविकर जी की अदभुद लेखनी से परिचय कराने के लिये।

    जवाब देंहटाएं
  4. आदरणीय बहुत सुंदर प्रस्तुति
    एक रचनाकार के इतने सारे रंग
    एक साथ देखकर अच्छा लगा
    और उनके बारे में अच्छी जानकारी भी मिली

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत ही सुंदर..... हिंदी ब्लौग के रविकर से परिचय कराने के लिये आभार....

    आभार आप का......

    जवाब देंहटाएं
  6. सुंंदर संकलन
    हिंदी ब्लौग के रविकर जी, से परिचय कराने के लिये धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत ही सुंदर संकलन रविकर जी की इतनी प्रभावशाली लेखनी को देखकर बहुत हर्ष हुआ

    जवाब देंहटाएं

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