ख़लल में ख़लल
डालने का कोई इरादा नहीं है पर
कुछ बातें जब मन को कोंचे तो कहना आवश्यक है।
घोटालेबाज और बैंककर्मियों की मिलीभगत से देश
को लूटने वाली नीतियों पर।
अब तो सवाल यही है कि आम आदमी किस भरोसे पर
इन बैंकों में अपनी गाढ़ी कमाई जमा करे।
आम जनता और एक साधारण किसान के कुछ हजार रुपयों के लोन पर सौ तरह की कागज़ी कारवाई की जाती है ब्याज की दरों का न समझ आनेवाला ब्योरा, नियम-कानून का हवाला,पचासों तरह के चोंचले होते है, और नीरव मोदी जैसे लुटेरे को एक सुनियोजित
प्रक्रिया के तहत बैंक में जमा सारा रुपया ही सौंप दिया जाता है।
कितनी हास्यास्पद बात है घोटालों के लुटेरों से रुपयों को वापस पाने की उम्मीद की जा रही है। सच बात तो यही है कि आम जनता के गाढ़े पसीने की कमाई नीरव मोदी जैसे लोग तब तक खाते रहेगे, जब तक बैंकों के लूट में उसी बैंक के लालची कर्मचारियों की संलिप्तता रहेगी।
बैंककर्मियों की ईमानदारी अब कटघरे में है।
क्या बिडंबना है न जहाँ देश का एक गरीब बैंक के कुछ हज़ार के
कर्ज़ न चुका पाये तो कुर्क़ी-ज़ब्ती तक कर दी जाती है और
एक अमीर करोड़ो हज़ार लेकर विदेश में आसानी से
ऐशो-आराम की ज़िंदगी बसर करता है।
बेचारी, लाचार और भोली जनता जबतक इस घोटाले को समझेगी
कोई और नया प्रकरण तैयार मिलेगा।
चलते है आज के मुख्य बिषय पर
ख़लल का अर्थ होता है बाधा, रुकावट,अड़चन।
बेहद ख़ुशी का समाचार है कि हमारे प्रिय रचनाकारों ने अपनी सृजनशीलता के मार्ग में कोई ख़लल नहीं आने दिया। एक से बढ़कर एक रचनाओं के माध्यम से अपनी अद्भुत प्रतिभा का परिचय दिया है। नमन आप सभी की प्रतिभा संपन्न लेखनी को,आप सभी की चिंतनशीलता को जो सच में सराहनीय है।
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आदरणीय साधना दीदी
ऐसे में उसकी तपस्या में
‘खलल’ डालने के लिए
किसने उसके द्वार की साँकल
इतनी अधीरता से खटखटाई है ?
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आदरणीया अपर्णा जी द्वारा
ज़िंदगी से जूझ कर
मौत से युद्ध कर
ऐ दुनिया!
इंसान को इंसान से मिला,
खलल पैदा कर
इस अनवरत चक्र में,
वक्त के पाटों में पिसती इंसानियत
तड़पती है,
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आदरणीय पुरुषोत्तम जी
भीगे से ये सपने .....
खलल डालते तुम्हारे ख्याल,
एहसास की ये राहें,
कहीं सूनी सी है दिखती,
कहीं दिल में,
बस, एक कसक सी है रहती !
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आदरणीया शुभा जी
जी हाँ ,पड़ती है खलल
जीवन में मेरे जब
आकर कोई कर जाता
है सपनों को ध्वस्त मेरे
देता है झकझोर मेरे
समूचे अस्तित्व को,
कितनी आसानी से
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आदरणीया कुसुम जी
रात भर रोई नरगिस सिसक कर बेनूरी पर अपने
निकल के ऐ आफताब ना अश्कों मे खलल डालो
डूबती कश्तियां कैसे साहिल पे आ ठहरी धीरे से
भूल भी जाओ ये सब ना तूफानों मे खलल डालो
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आदरणीया पल्लवी जी
और आज जब आँखें खोल
भूलना चाहती हूँ तुझको
तेरी यादों के ठहर जाने से
खलल पड़ता है।
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आदरणीय पंकज प्रियम् जी
आज फिर आके ख्वाबों में तूने
मेरे सपनों में खलल डाला है।
दिल तड़प उठा कितना! तूने
मेरे जख्मो को मसल डाला है।
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आदरणीया पम्मी जी
जिक्र करते हैं ..
इन हवाओं से जब
एक बूंद ख्यालों के
पलकों को नमी कर
फिर खलल डाल जाता है
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आदरणीया रेणु जी
खलल ना डालना इनमे -
ये भाईचारे वतन के हैं ;
है सबका गिरिराज हिमालय -
सांझे धारे गंग -जमन के हैं ;
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आदरणीया नीतू जी
अब नहीं चुभते तेरे शब्दों के तीर
जो ज़िंदगी में खलल मचाते थे
मुझसे मेरा सब कुछ छीन कर
मुझे ही मुजरिम बनाते थे
अब नहीं चुभते तेरे शब्दों के तीर
क्यों की मर चुकी है वो आत्मा
जो तुझ पर अपनी जान कुर्बान कर दे
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आदरणीया सुधा सिंह जी
न डालना कोई खलल,न किसी से बैर रखना
हर राग, द्वेष, ईर्ष्या से, दिल को मुक्त रखना
हर मार्ग है कंटीला, ये मत भूलना तुम
बस राह पकड़ सत्य की, चलते ही जाना तुम
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हमक़दम की राह में आप सभी प्रतिभा संपन्न रचनाकारों
का साथ अवश्य नवीन और विविधापूर्ण साहित्यिक
रचनाओं आस्वादन करवायेगा।
कल नये विषय के साथ फिर से एक नये सफ़र की तैयारी करेंगे हम।
तब तक के लिए आप सभी के समीक्षात्मक सुझावों की प्रतीक्षा में
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआम जनता का जमा पैसा
खाने के लिए ही होता है
पर उसे जनता स्वयं नहीं खा सकती
और लोग खा लेते है
सोचनीय विषय
आशातीत प्रविष्टियाँ
नामुराद ख़लल भी न
अपनी हैसियत का
अहसास करवा ही दिया
साधुवाद
सादर
आज की ये "खलल" प्रस्तुति, विचारों को उद्वेलित कर गई। मैं भी एक सरकारी बैंक का executive हूं तथा इस घटना से उतना ही आहत हू जितना की अन्य। सन 2006 से 2010 के बीच अपने मुम्बई पदस्थापना के दौरान "गीतांजली" ग्रुप को ॠण संबंधी बैंकिंग सेवाएं प्रदान करने का अवसर मुझे मिला था और मुझे ऐसा कुछ भी प्रतीत नहीं हुआ था। संभावनाओं के परे क्या-क्या घटित हो सकता है, यह सोच कर भी मैं विस्मित और आहत हूं। आज की इस प्रस्तुति हेतु हलचल से जुड़े समस्तजन का अभिवादन ....
जवाब देंहटाएंशुभप्रभात......
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा.....
आभार आदरणीय आप का.....
बहुत उम्दा रचनायें
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत प्रस्तुतिकरण
बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत प्रस्तुतिकरण
जवाब देंहटाएंसभी चयनित रचनाकारों को बधाई
बहुत बढ़िया हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंवाह!!बहुत सुंंदर प्रस्तुति । सभी रचनाएँ एक से बढकर एक...मेरी रचना को स्थान देने हेतु ह्रदयतल से आभार ...भूमिका का विषय वाकई सोचनीय है ,आम जनता का पैसा ,खून पसीने की कमाई...कितनी आसानी से खाना .....यही विडम्बना है हमारे देश की ।
जवाब देंहटाएंवाह!बहुत बढिया..भूमिका सारगर्भित है।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएं अनुपम..मेरी रचना को स्थान देने के लिए धन्यवाद।
हम सब नीरव मोदी पर चिल्ला रहे हैं पर जिन्होंने उसे यह करने का रास्ता दिखाया, सहायता की, अपना घर भरा उन पर कब जेल का ताला लगेगा ? पंजाब नेशनल बैंक का एम डी सुनील मेहता बिना किसी तनाव के ब्यान देता है किसी को नुक्सान नहीं होगा, बैंक सक्षम है ! मेहता जी, बैंक को सक्षम हम हीं ने तो बनाया है, भरोसा कर के, पैसे लौटाने भी हुए तो ठीकरा हमारे ही सर फूटेगा ! तुम तो कुछ देने से रहे। हर बार मध्यम वर्ग ही "काम" आता है ! पता नहीं यह गरीब की जोरू कब तक सबकी भाभी बनती रहेगी !!
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह हलचल का यह अंक भी बेमिसाल ! साहित्य सृजन के इस पथ पर अपना हमकदम बना कर आपने मुझे एक कदम और अपने साथ चलने का अवसर दिया हृदय से आभारी हूँ ! सभी रचनाएं अनुपम ! सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई !
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जवाब देंहटाएंप्रस्तुति की पूर्व की चर्चा वर्तमान प्रसंग के संदर्भ में बहुत सार्थक है। जहाँ नाम तो एक व्यक्ति का प्रकाश में आता है परन्तु दोष उससे जुड़े भ्रष्टाचारी राजतंत्र का है। चारित्रिक पतन से देश का इतनी बार पतन होने के बावज़ूद कुछ लोग व्यक्तिगत स्वार्थ से बाज नहीं आते।प्रगति में 'ख़लल ' डालते ही रहते हैं।
निर्वेद ,प्रेम ,देशभक्ति,रिश्ते ,प्रकृति ,सपने जैसे विषयों में 'ख़लल ' शब्द को स्थान देकर रचनाकारों ने शब्द की शक्ति का अहसास करा दिया। सभी रचनाकारों की भावपूर्ण अभिव्यक्ति के लिए अभिनंदन। मेरी रचना को स्थान देने के लिए सादर आभार।
देश की समृद्धि में खलल डालने की हरसंभव कोशिश कर रहे हैं चतुर लुटेरे।
जवाब देंहटाएंसमसामयिक भूमिका के साथ आज के विषय पर एक से बढ़कर एक रचनाएं पढ़ने के लिए प्रकाशित हुई है।
सभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं।
अगला विषय कल के अंक में जरूर देखिएगा।
प्रिय श्वेता जी -सार्थक चिंतन से भरी भूमिका और ' खलल ' पर समर्थ रचनाकारों का अद्भुत नजरिया !! बहुत खूब !!मेरी रचना को लेने के हार्दिक आभार आपका | सभी साथी रचनाकारों को हार्दिक बधाई |
जवाब देंहटाएंसमसामयिक भूमिका के साथ लाजवाब प्रस्तुति करण...
जवाब देंहटाएंखलल पर एक से बढ़कर एक बहुत ही उम्दा रचनाओं का सृजन ....
सभी रचनाकारों को बधाई....
बेहतरीन प्रस्तुति जो साबित करती है कि एक ही विषय पर, वो भी 'खलल' जैसे नीरस शब्द को लेकर भी विविध रसों का सृजन किया जा सकता है.... मेरी ओर से हार्दिक शुभकामनाएँ सभी को ! खलल और तितली वाले चित्र पर मैंने गद्य रचनाएँ तैयार की थीं किंतु समयाभाव के कारण उन्हें भेज नहीं पाई इसका मलाल तो है किंतु साथियों की अभिव्यक्तियों को पढ़ना एक बेहतरीन अनुभव भी है।
जवाब देंहटाएंसामायिक भूमिका। बेहतरीन रचनाएं। मुझे भी शामिल करने के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंसादर