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शुक्रवार, 9 फ़रवरी 2018

938....कुछ ऐसा ही है जीवन

|| सादर नमस्कार ||

"प्रेम" 
इस शब्द में 
छुपे व्यापक और 
गूढ़ अर्थ को शब्दों में 
परिभाषित करना आसान 
हो सकता है परंतु इसकी अनुभूति 
का लौकिक आनंद अभिव्यक्त कर पाना 
संभव नहीं। आज के युग में प्रेम एक वस्तु 
की तरह हो गया है जिसे लोग अपनी सुविधाके 
अनुसार इस्तेमाल करते हैं। स्मार्टफोन संस्कृति 
के दायरे में सिमटते विचार, डिजिटल होते 
रिश्तों के दौर में प्रेम उस फैशन की तरह 
है जिसकी गारंटी देना आपके पुरानपंथी, 
रुढ़िवादी और सड़ी-गली वैचारिक 
पिछड़ेपन की निशानी मानी 
जाती है।प्रेम का आकर्षक 
बाजारवाद युवाओं 
को आकर्षित 
करने में
पूर्णतः
सफल रहा है। तभी तो किसी भी अनुभूति और भावनाओं से बढ़कर प्रेम का प्रदर्शन ही प्रेम का पैमाना बन गया है।

आइये अब चलते है हमारे आज के रचनाकारों की दुनिया में

अद्भुत भाव और सुंदर शब्दों से श्रृंगारित बहुत सुंदर रचना पढ़िये आदरणीया मीना जी की कलम से प्रसवित
प्राणों की वर्तिका,
बुझी-बुझी अनंत काल से !
श्वासों के अब सुमन
लगे थे, टूटने ही डाल से !
यूँ लगा था, आत्मा
बिछड़ गई हो देह से !
◆◆◆◆◆◆◆◆
जीवन के रंगों को शाब्दिक मोती में पिरोना
आदरणीय पुरुषोत्तम जी की ख़ासियत है पढ़िये उनकी लेखनी से

यूँ अनाहूत ही आ जाना,
बिन कुछ कहे यूँ ही चल देना,
भीगी पलकों से बस यूँ रो लेना,
यूँ एकटक क्षितिज देखना,
मनमाना बेगाना सा ये जीवन,
कुछ ऐसा ही है जीवन.....
◆◆◆◆◆◆◆
हृदय के महीन मनोभावों की संवेदनापूर्ण सुंदर अभिव्यक्ति 
आदरणीया रेणु जी की कलम से
सब  कुछ  था पास  हमारे --
फिर भी कुछ ख्वाब  अधूरे थे ,
 तुम बिन  ना सुन पाता कोई -
 वो   मन के संवाद अधूरे थे  ;
 जीवन  से ओझल    साथी -
ये उमंगों के  सिलसिले थे
जब हम तुमसे ना मिले थे !!!!!!
◆◆◆◆◆◆◆
हिंदी और उर्दू शब्दों के मिश्रण से भावों की अनोखी छटा बिखेरती  सुंदर रचना आदरणीया पम्मी जी कलम से

ताब है कई रंगों की 

हुनर है ,संगतराशी की तो..

तुम एक इन्द्रधनुषी ख्वाब तो देखों,

ज़हन के कैनवास पे फिर

इक नई कलेवर  में निखर  ,

आज वो उम्मीद फिर मुस्कराता है ..

◆◆◆◆◆◆◆◆◆

बेहद गहन भाव और शानदार शब्द संयोजन से गढ़ी गयी 
आदरणीया वंदना जी की लाज़वाब अभिव्यक्ति

मैं विस्तारित अनंत का वो राग
जिस पर न गुनगुनाया कोई गीत
मैं किसी छोर का कोई अछोर
जिसे पकड पाया न कोई मीत
◆◆◆◆◆◆◆
गज़लों के माध्यम से नायाब़ लफ़्ज़ो के शानदार भाव उकेरते 
आदरणीय लोकेश जी की कलम से
थी ज़िंदगी की कश्मकश कि होश गुम गए
कहते हैं लोग उसको कि वो सिरफिरा हुआ

है मेरा अपना हौसला परवाज़ भी मेरी
मैं एक परिन्दा हूँ मगर पर कटा हुआ
◆◆◆◆◆◆◆
गुलाब की ख़ुशबू बिखेरती 
आदरणीय प्रियम् जी की दिलक़श रचना 
शायर की गज़ल,खिलता कमल
तू जाम छलकता बेहिसाब है।
हर हुस्न के लबों का खिताब है
हर रूप तेरा बस लाजवाब है।
◆◆◆◆◆◆◆◆
हम-क़दम  
सभी पाठकों के लिए एक खुला मंच है 

हमारा नया कार्यक्रम 

हम-क़दम 
आपका हम-क़दम अब पाँचवें क़दम की ओर..... 
इस सप्ताह का विषय है...

...यह चित्र

:::: पहाड़ी नदी  ::::



परिलक्षित हो रहे दृष्यों को आधार मानकर

आपको एक कविता लिखनी है-

उदाहरणः
बनाती राह ख़ुद अपनी सँवारे ज़िन्दगी सबकी,
पाले गोद में सबको करे ना बात वो मजहब की।
करे शीतल मरुस्थल को वनों को भी दे जीवन,
सींचकर फसलों को वो खेतों को दे नव यौवन।

करे निःस्वार्थ वो सेवा न थकती है न रुकती है॥
नदी जब चीरकर छाती पहाड़ों की निकलती है॥

आप अपनी रचना शनिवार 10 फरवरी 2018  
शाम 5 बजे तक भेज सकते हैं। चुनी गयी श्रेष्ठ रचनाऐं 
आगामी सोमवारीय अंक 12 फरवरी 2018  को प्रकाशित की जायेंगीं। इस विषय पर सम्पूर्ण जानकारी हेतु हमारे पिछले गुरुवारीय अंक 
◆◆◆◆◆◆◆◆
आप सबके सुझावों की प्रतीक्षा में


20 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात
    सटीक व्याख्या
    प्रेम ही तो है....और
    ये सृष्टि भी...
    उसी का सृजन है
    कहने को तो
    अक्षर ढाई ही हैं
    पर है तो..अब तक
    अपरिभाषित...
    उत्कृष्ठ रचनाएँ
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत खूबसूरत प्रस्तुतिकरण
    उम्दा संकलन।
    मेरी रचना को शामिल करने के लिए बहुत धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  3. हमेशा की तरह एक बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं
  4. शानदार प्रस्तुति।
    प्रेम को परिभाषित करने की कभी कोशिश न करना ये हर व्यक्ति के मनोभावों का निर्जीव आइना है,
    आइने कहां सच होते हैं बस जो सामने हो वही दिखाते हैं
    बहुत सुंदर प्रस्तुति सभी रचनाऐं बहुत सार गर्भित है सभी रचनाकारों को बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  5. अतिसुन्दर प्रस्तुति श्वेता जी

    जवाब देंहटाएं
  6. आदरणीय श्वेता जी,बहुत सुंदर रचनाओं को खोज कर लायी हैं आप। प्रेम की सररंगी छटा बिखेरती रचनाएं।
    शानदार भूमिका। वर्तमान में प्रेम का स्वरुप बदल रहा है और एहसासों की उम्र कम हो रही है। फिर भी जब तक रहेंगी संवेदनाएं प्रेम जिंदा रहेगा । सभी चयनित रचनाकारों को बहुत बहुत शुभकामनाएं ।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  7. कल 08.02.2018 को मेरी माता जी के अवसान से आहत हूँ, मेरी रचना शायद " जीवन- किन कौछ कहे चल देना" मुझे ज्यादा दुख दे गई।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हम आपके इस दारुण दुःख में सहभागी हैं...
      ईश्वर उन्हें अपने चरणों में स्थान दे....
      अश्रुपूरित श्रद्धांजली....
      सादर....

      हटाएं
  8. विचारणीय भूमिका के साथ आयी सारगर्भित प्रस्तुति. प्रेम पर वर्तमान संदर्भों में चर्चा ख़ास मायने रखती. बेहतरीन रचनाओं का चयन. बधाई श्वेता जी सुंदर प्रस्तुति के लिये.
    इस अंक में चयनित सभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनायें.
    आदरणीय पुरुषोत्तम जी की माताश्री के निधन का दुखद समाचार उनकी टिप्पणी से मिला. हमारी विनम्र श्रद्धांजलि स्वर्गीया माताश्री को. ईश्वर उनकी आत्मा को शान्ति प्रदान करे एवं परिवार को दुख सहन करने की शक्ति प्रदान करे.

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत सुंंदर संकलन के साथ विचारणीय भूमिका..
    प्रेम शब्द अक्षुण्ण है.मेरी रचना को स्थान देने के लिए धन्यवाद। सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवम् शुभकामनाएँ।
    हमारी विनम्र श्रद्धांजलि पुरुषोत्तम जी के माता श्री को।

    जवाब देंहटाएं
  10. लाजवाब प्रस्तुतिकरण उम्दा लिंंक संकलन
    पुरुषोत्तम जी की माताजी को सादर श्रद्धांजलि...

    जवाब देंहटाएं
  11. शानदार प्रस्तुति।
    सभी चयनित रचनाकारों को बहुत बहुत शुभकामनाएं ।

    जवाब देंहटाएं
  12. प्रस्तुति बड़ा लाजवाब है
    बहुत शुक्रिया आपका
    आपकी बगिया में जो
    खिला मेरा भी गुलाब है।

    जवाब देंहटाएं
  13. खूबसूरत रचनाओं की खूबसूरत प्रस्तुति.... सादर आभार मेरी प्यारी श्वेता बहन का !

    जवाब देंहटाएं
  14. प्रिय श्वेता बहन -- प्रेम जैसे आकर्षक चिंतन के साथ आदरणीय पुरुशोत्तन जी की टिपण्णी से माँ के देहावसान से उनकी माँ प्रति उनकी वेदना का आभास हुआ | मेरी संवेदनाएं आदरणीय पुरुषोत्तम जी के प्रति और माँ की पुण्य स्मृति को सादर नमन |मेरी रचना को स्थान देने के लिए सस्नेह आभार और साथ ही सभी रचनाकार साथियों को हार्दिक बधाई और शुभकामनाये | आपको मेरा प्यार |

    जवाब देंहटाएं

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