सादर नमस्कार
एक बार फिर से सालाना हिसाब-किताब के पन्ने पर जनमानस के
कुछ ख़्वाबों के जोड़-घटाव को शब्दों में लिख दिया गया।
हम सभी जेब को भींचे टकटकी बाँधे एक दूसरे की थालियों में ताक रहे हैं, किसके हिस्से में कितनी रोटी आयी या जो रोटी मेरी थाली में है
उसमें से कितनी निकाल ली गयी।
संतुष्टि-असंतुष्टि की चादर की खींचा-तानी से जूझते अपने जीविकोपार्जन के गणित से ताल-मेल करते, उम्मीद का दामन पकड़े, हम देश के आम नागरिक लोकतंत्र के इस खेल से पीड़ित बुद्धिजीवी तमाशबीन हैं। वैसे बज़ट के आँकड़े आधा से ज्यादा आबादी के
समझ से बाहर होती है यह भी सच है।
चलिए अब आज की रचनाएँ पढ़ते हैं
अंतर में धीरे-धीरे जमा लावा एक दिन अवश्य ज्वालामुखी के रुप में फूटता है आदरणीय ज्योति खरे जी की लेखनी से
इंसानियत मरने लगी है
कीटनाशक गोलियों से
छाप रहा झूठी खबर
बिक हुआ अखबार
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समाजिक व्यवस्था के आडंबरों से खिन्न मन से उत्पन्न तीखे प्रश्न आदरणीय ध्रुव जी की ओजपूर्ण अभिव्यक्ति
विमुख नहीं, मैं आज भी हूँ
कट्टर पुजारी धर्म का।
एक 'अनुत्तरित' प्रश्न भी है
मुझको बता दो !
धर्म क्या ?
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कुछ भूली-बिसरी यादें जेहन से नहीं मिटती है
आदरणीय रश्मि जी की मख़मली लेखनी से
नहीं देखा
बहुत दिनों से
नाज़ुक कोंपलों पर
ऊँगलियाँ फिराते
कबूतरों के झुंड को
धप्प से कूदकर डराते
रात को
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बसंत कवियों का प्रिय विषय रहा है
आदरणीय रवींद्र जी की कलम से एक खूबसूरत रचना
मस्त फ़ज़ाऐं
गुनगुनी धूप है
हरे शजर
ढाक-पलाश
सुर्ख़ हुआ जंगल
महके फूल
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जंगल शायद एक दिन तस्वीरों में ही नज़र आयेगे
आदरणीया प्रीति "अज्ञात" जी की एक विचारणीय रचना
अतिक्रमण, किसने किया है किस पर?
आह! देखती हूँ जब भी गगनचुम्बी इमारतें
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मानवीय संबंधों के महीन धागों को बुनना
आदरणीया साधना दी बख़ूबी जानती है उनकी कलम से
उलझन
रुग्ण पंखों वाला असहाय पंछी
दूर आसमान में अन्य पंछियों की तरह
क्या कभी वांछित ऊँचाई पर उड़ पाता है ?
मेरा यह पागल मन
ना जाने क्यूँ
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जीवन का सार बताती, सद्कर्मों के लिए प्रेरित करती
आदरणीया सुधा जी की कलम से
माटी ही तेरी है सब कुछ,
माटी पर रहना सीख ले!
यह माटी सब कुछ देती है,
पर वापस भी ले लेती है!
मुस्कुराहट तुम्हारी तरह
न ही आती है
आंखों को नीचेकर
शरमाने की कला
मेरी संवेदनाएं तो यहीं से
झाकतीं हैं
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डॉ, सुशील सर के अखबार की पुरानी कतरन
समझ ले
अच्छी तरह ‘उलूक’
अपने ही सिर के
बाल नोचता हुआ
खींसें निपोरता हुआ
एक अलबर्ट पिंटो
हो जाता है
और किसी को
पता नहीं होता है
उसको गुस्सा
क्यों आता है ।
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आज के लिए इतना ही
आप सभी के बहुमूल्य सुझावों की प्रतीक्षा में
श्वेता
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पाठकों के लिए खुला मंच है हमारा नया कार्यक्रम
"हम-क़दम"
इसकी नवीनतम कड़ी में हमने आपको सृजन के लिए दिया है शब्द
"इंद्रधनुष"
उदाहरणः
इंद्रधनुष,
आज रुक जाओ जरा,
दम तोड़ती, बेजान सी
इस तूलिका को,
मैं रंगीले प्राण दे दूँ,
रंगभरे कुछ श्वास दे दूँ !
पूर्ण कर लूँ चित्र सारे,
रह गए थे जो अधूरे !
इस कार्यक्रम में भागीदारी के लिए
आपका ब्लॉगर होना ज़रूरी नहीं है।
इस बिषय पर आप अपनी रचनाऐं हमें आगामी
शनिवार 3 फरवरी 2018 शाम 5 बजे
तक भेज सकते हैं।
चुनी गयी रचनाऐं
आगामी सोमवारीय अंक 5 फरवरी 2018 में प्रकाशित होंगीं।
इस विषय पर सम्पूर्ण जानकारी हेतु हमारा पिछला गुरुवारीय अंक
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शुभ प्रभात सखी
जवाब देंहटाएंबजट भाषण जबरदस्त है
सही व सटीक
उत्तम रचनाएँ
सादर
सबके हित का तो सोचा नहीं जा सकता तो उसका सोच लेते हैं जिससे कोई फायदा मिले
जवाब देंहटाएंया तो नोट मिले या तो वोट मिले
बज टन टना टन जिन्हें फायदा नहीं दिखे
आपके चयनित सुंदर लिंक्स लगे
सुप्रभात दी..उनकी.बजट भुमिका समझ से परे है..हां.पर आपने कम शब्दों में बजट की अच्छी व्याख्या कर दी...!
जवाब देंहटाएंसभी चयनित लिंक्स शानदार हे...प्रीती जी को पढ़ना अच्छा लगा, मुझे भी शामिल करने के लिए ह्रादिक आभार आपका..!
शुभ प्रभात।
जवाब देंहटाएंबज़ट पर चर्चा के लिए प्रेरित करती धारदार भूमिका। सरकारी लेखा-जोखा जांचने-परखने की समझ कुछ ही लोगों को होती है बाकियों का जीवन तो यों ही चलता रहता है। देश की जनता का बड़ा हिस्सा जानता भी नहीं बज़ट क्या होता है।
बज़ट को लेकर सर्वाधिक उत्सुकता होती है मध्यमवर्ग में जो कि यह जानना चाहता है कि इस बार टैक्स में किस प्रकार की छूट मिलेगी।
महंगाई लगातार बढ़ रही है लेकिन सरकार की नज़र में नहीं बढ़ रही तभी तो आयकर के स्लैब को नहीं बदला गया।
बहरहाल आज का अंक एक से एक बेहतरीन रचनाओं का संकलन है। इस अंक के लिए चयनित सभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं।
मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार।
स्वीट सखी
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति
काश हम भी बना पाते ऐसा
पर अब समय नहीं है
सादर
सभी लिंक्स बहुत अच्छे है , सभी रचनाकारों को बधाई ...
जवाब देंहटाएंआज की प्रस्तुति हर व्यक्ति का अंतर भाव है प्रश्न अनुत्तरित प्रश्न, लाजवाब परिपक्वता से भरा। कल के पुरे दिन का महीनों से इंतजार परिणाम टांय टांय फिस।
जवाब देंहटाएंकुछ पंक्तियाँ मेरी और से बजट के नाम...
देश के हालात .....
सांझ की लाली होने लगी काली
बगीया मे सिर्फ फूल ,रहा न कोई माली
रोटी की चिंता सबसे मोटी
हो कमाई खरी या खोटी
भुखे का ईमान है पैसा
भरे हुवे की शान है पैसा
सियासत का खैल है भैया
नाचे सब कोई ताता थैया ।
कुसुम कोठरी ।
सभी रचनाऐं बहुत सुंदर, सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
सालाना हिसाब किताब यानी अपनी चादर और अपने पैर पुरानी कहानी। आज की सुन्दर प्रस्तुति में 'उलूक' की पुरानी कतरन को जगह देने के लिये आभार श्वेता जी।
जवाब देंहटाएंप्रभावपूर्ण भूमिका के साथ सुंदर संकलन..
जवाब देंहटाएंसभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवम् शुभकामनाएँ
बेहतरीन सटीक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई
बिलकुल सच कहा आपने आधी से ज्यादह आबादी तटस्थ भाव से निस्पृह हो सालाना बजट के इस तमाशे को देखती है ! कुछ तथाकथित बुद्धिजीवी चाय की प्याली में एक तूफ़ान की तरह अपने रोष आक्रोश को अभिव्यक्ति ज़रूर देते हैं लेकिन यह भी जानते हैं कि इस उफान के बाद भी बजट की रूपरेखा में तिल भर भी कोई बदलाव नहीं आने वाला है ! कहीं गाज गिरती है कहीं जश्न मनता है ! कोई खुश होता है तो कोई मायूस होता है ! जीवन की धूप छाँह सा ही यह सालाना बजट भी कुछ दिनों के लिए हमारी चेतना को सक्रिय कर जाता है फिर सब सामान्य रूप से स्वीकार कर लिया जाता है ! बजट एक तरफ चलते हैं आज की हलचल की ओर ! आज के सभी सूत्र आज के बहुत सुन्दर ! मेरी रचना को आज की हलचल में सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से बहुत-बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएं2018 का दूसरा झटका
जवाब देंहटाएंआम बजट
पिट गया मंझला फिर....
फिर भी शुभकामनाएँ तो दे ही दें
दाता बने...
अच्छी प्रस्तुति बनाई आज...
साधुवाद
सादर........
सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचनाओं का संकलन। अच्छी भूमिका । सभी चयनित रचनाकारों को बधाई । सादर ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन भूमिका के साथ सुंदर रचनाओं का संगम ! यथार्थ के कठोर धरातल से जोड़े रखते हुए कल्पनालोक की सैर कराती हलचल प्रस्तुति । सादर धन्यवाद एवं बधाई ।
जवाब देंहटाएंप्रिय श्वेता जी -- सार्थक , विचारणीय भूमिका के साथ बहुत सुंदर भूमिका और रचनाकारों की अप्रितम लेखन से भरी रचनाएँ सब बहुत ही मनमोहक है | आदरणीय रविन्द्र जी की भूमिका को विस्तार देती टिपण्णी और आदरणीय कुसम जी बजट पर रचना बहुत अच्छी लगी | सभी रचनाकारों को बधाई और आपको आज के सफल लिंक संयोजन पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंलाजवाब प्रस्तुतिकरण उम्दा लिंक संकलन....
जवाब देंहटाएंबेहतरीन चयन।
जवाब देंहटाएंसार्थक भूमिका के साथ प्रभावी और सुंदर लिंक संयोजन
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई
मुझे सम्मलित करने का आभार
सादर