जय मां हाटेशवरी.....
सोचता हूं.....
एक आम आदमी को बैंक से कर्ज लेने के लिये.....बैंक के कई चक्कर लगाने के बाद भी कर्ज नहीं मिलता.....
एक खास आदमी को.....बैंक कई हजार करोड़ कर्ज देदेता है......
एक के बाद दूसरा खास आदमी......बैंक का खजाना खाली करके आनंद का जीवन बिताने कहीं दूर चला जाता है.....
इन खास आदमियों पर बैंक कैसे विश्वास कर लेता है.....
पहले माल्या.....अब नीरव मोदी.......
अभी न जाने कौन कौन खास आदमी.... जाने की तैयारी कर रहे होंगे......
देखिये आज के लिये मेरी पसंद....
मौन' बस बढ़ता चला जाता हूँ......अमित मिश्र 'मौन'
मिलेगा मौका हंसने का सोच के गम भुलाता हूँ
मुठ्ठी भर खुशियों को मैं फिर भी तरस जाता हूँ
हर दर पे हूँ भटकता तलाश तो पूरी हूँ करता
पर ढूंढ़ने क्या निकला ये समझ नही पाता हूँ
दिया जीवन खुदा ने तो कुछ मकसद होगा
ये सोच के यारों मैं मर भी नही पाता हूँ
इतिहास हमेशा ख़ुद को दोहराता है
अपना अंग्रेज़ी गानों के साथ ठीक वही नाता है जो इस देश में सरकार और न्याय-व्यवस्था का रहा है। भैया, कोशिश तो बहुत करते हैं पर हो नहीं पाता!
ये गाने जरा कम समझ आते हैं, सो जिसे महसूस ही न कर सको तो सुनने का क्या फ़ायदा! पूरे समय दिमाग़ गूगल की तरह घटिया ट्रांसलेट करके देता है. सच, गूगल जी, बुरा मत मानियो पर आपके अजीबोग़रीब अनुवाद हमें अत्यधिक दुःख देते हैं. भय है, कहीं इस वज़ह से हम तीव्र मस्तिष्क विस्फ़ोट के शिकार न हो जाएँ! इसलिए ऐसा करो, हमको तत्काल जॉब पे रख लो.
अग्निपुराण के अर्चना क्रम में वार
[इस लेख के अन्त तक आप को स्पष्ट हो जायेगा कि संस्कृत की सम्पदा तथा शक्ति जानने के लिये क्यों मूल को पढ़ना आवश्यक है तथा क्यों अङ्ग्रेजी या कोई भी अनुवाद संस्कृत के शब्दों की अर्थ समृद्धि तथा प्रयोग उद्देश्य की ऐसी तैसी कर देते हैं!]
वक्त
घिसटते-घिसटते ..
हम, थोड़ा-थोड़ा छिलते जा रहे हैं
इक दिन ..
हम, पूरी तरह छिल जायेंगें
प्रलय.......डॉ. जेन्नी शबनम
धधकती धरती और दहकता सूरज
बौखलाई नदी और चीखता मौसम
बाट जोह रहा है
मेरे पिघलने का
मेरे बिखरने का
मैं ढहूँ तो एक बात हो
फागुन में उस साल-- कविता |
अधखिली कलियाँ और आवारा बादल ;
जैसे चिड़ियाँ जान जाती हैं -
धूप में भी आने वाली -
बारिश का पता
और नहाने लग जाती हैं
सूखी रेत में--------- !!!!!!!!!!!
क्षणिकाएं
हे विष्णु प्रिया धन वर्षा करो
मंहगाई की मार से
कुछ तो रक्षा करो |
धन्यवाद।
शुभ प्रभात भाई कुलदीप जी
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुति
आभार आपका
सादर
आदरणीय कुलदीप जी
जवाब देंहटाएंसुप्रभातम्।
विचारणीय समसामयिक भूमिका के साथ बहुत अच्छी रचनाओं का संयोजन आज के अंक की।
आभार आपका आदरणीय।
आदरणीय कुलदीप जी | सार्थक भूमिका है और सुंदर लिंक | आधी रचनाएँ पढ़ चुकी हूँ और आदी बाद में जरुर पढूंगी | आपने पहली बार मेरी रचना को अपने लिंकों में शामिल किया मुझे बहुत ख़ुशी हुई | शुभकामनाएं और बधाई देते हुए इस लिक संयोजन की सराहना करती हूँ | आशा है सहयोग बना रहेगा | सदर आभार सहित --
जवाब देंहटाएंसुन्दर सूत्र संयोजन कुलदीप जी।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचनाओं का संयोजन
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुतिकरण उम्दा लिंक संकलन...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लिंक्स। बहुत सुंदर प्रस्तुति । सभी रचनाकारों को बधाई।
जवाब देंहटाएंसादर