मन तो करता है कि, सारा ताम-झाम छोड़ कर
शिमला में बस जाऊँ 31 जून तक
जून के महीनें में एक दिन और जुड़वा लूँ..
पिटारा खोलती हूँ आज का....
तुम ही तुम हो....श्वेता सिन्हा
मुस्कुराते हुये ख्वाब है आँखों में
महकते हुये गुलाब है आँखों में
बूँद बूँद उतर रहा है मन आँगन
एक कतरा माहताब है आँखों में
मृगया.....रश्मि शर्मा
कलियां चटखती हैं
दिवस जैसे मधुमास
मैं मृगनयनी
तुम कस्तूरी
जीवन में तुमसे ही
है सारा सुवास
''कीर्ति स्तम्भ''...एकलव्य
शक्ति बन !जो तू उड़ेगा
मारुति के रूप में,
पुष्प की वृष्टि करेंगे
बन उपासक,देव भी
दीप्तिमान ब्रह्माण्ड होगा
तेरे 'कीर्ति स्तम्भ' से ....
बात समझने की.....डॉ. सुशील कुमार जोशी
‘उलूक’
रोक लेता है
थूक अपना
अपने गले के
बीच में ही कहीं
सारे मुखौटे
पीठ के पीछे
से निकल कर
गधों के चेहरों
पर वापस
फिर से चिपके
हुऐ नजर आते हैं
आज्ञा दीजिए यशोदा को
कल फिर मिलेंगे
सादर
सस्नेहाशीष संग शुभ प्रभात छोटी बहना
जवाब देंहटाएंआदरणीय,धन्यवाद मेरे 'कीर्ति स्तम्भ' को स्थान देने के लिए। "एकलव्य"
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति। आभार यशोदा जी 'उलूक' के सूत्र को भी जगह देने के लिये।
जवाब देंहटाएंबढ़िया हलचल ... आभार मुझे भी शामिल करने का आन की हलचल में ...
जवाब देंहटाएंसुंदर लिंकों का सार्थक चयन मेरी रचना को मान देने के आभार यशोदा दी।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर हलचल प्रस्तुति
बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
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