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गुरुवार, 20 अप्रैल 2017

643.....चुटकी बजा पर्यावरण पढ़ा

सादर अभिवादन
भाई कुलदीप जी अपनी भतीजी की शादी में व्यस्त हैं
सो वे परसों मुखातिब होंगे आपसे..
तब तक आप टाईमपास कीजिए...

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पोहे के कुरकुरे बनाने के लिए न ही पोहे को पिसना पडता है और न हीं इन्हें गैस पर पकाना पडता है। तो आइए...आज हम बनाते है... बिल्कुल कम मेहनत में बनने वाले...पोहे के कुरकुरे..

तुम चाँद तारों की अब कोई,बात नहीं हो करते ,
ये दिन बोरियत भरे अब तो,मुझसे नहीं हैं कटते ,
सो ! आज तो प्रिय मेरा तुमसे,रूठने का मन है ,
बस अपना वजूद ढूंढना है,और नहीं कोई गम है।

तपा अम्बर
झुलस रही क्यारी
प्यासी है दूब।

आसान कहाँ हटा देना
तस्वीर दीवार से
पुराने कैलेंडर की तरह,
टांग देते नयी तस्वीर
पुरानी ज़गह पर,
लेकिन रह जाती
खाली जगह तस्वीर के पीछे
दिलाने याद उम्र भर।


हमेशा की तरह, है किसी दिवास्वप्न सा उभरता,
ख्यालों मे फिर वही, नूर सा इक रुमानी चेहरा,
कुछ रंग हल्का, कुछ वो नूर गहरा-गहरा.......
हमेशा की तरह, फिर दिखते कुछ ख्वाब सुनहरे,

बरसों से जमे हिमखंड
शब्दों की आँच में पिघलकर,
हृदय की सूखी नदी की जलधारा बन
किनारों पर फैलै बंजर धरा पर
बूँद बूँद बिखरकर नवप्राण से भर देती है,

बात हवा-पानी की..........डॉ. सुशील जोशी

एक छोटी सी 
आपदा आने 
से कुछ नहीं 
होता है इतना 
सब कुछ जब 
पर्यावरण पर
पर्यावरणविद
रोज का रोज
कुछ ना कुछ 
चुटकियों में 
कह देता है ।
आज्ञा दें यशोदा को
सादर












7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर उपयोगी ज्ञानवर्द्धक लिंकों का चयन
    मेरी रचना को मान देने के आभार यशोदा दी।

    जवाब देंहटाएं
  2. विविधतापूर्ण वैचारिक विमर्श को आमंत्रित करते प्रासंगिक लिंकों के संयोजन के लिए यशोदा जी को बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  3. सुन्दर सूत्रों के साथ बढ़िया प्रस्तुति। आभार यशोदा जी 'उलूक' के सूत्र को शीर्षक पर जगह देने के लिये।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुन्दर लिंकों के साथ बहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं
  5. उम्दा लिंक्स। मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, यशोदा जी।

    जवाब देंहटाएं

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