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शनिवार, 8 अप्रैल 2017

631 .. मतलबी




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सभी को यथायोग्य
प्रणामाशीष


क्यूँ ?
ग्वैंयाँ
जनियाँ
ढ़ोंगी तार
कोरी गप्पियाँ
धारे क्या ओढें क्या
स्वार्थी जेबें के यार


मतलबी


गौरव की प्राप्ति में प्रतिष्ठा दाव पर लगा
ख़ौफ़नाक असत्य के पीछे बेपरवाह भागता
असत् घृणित कृत्यों में लीन लापरवाह
महिमामई गौरवशाली पदवी की तालाश सदा


मतलबी



"डॉक्टर यही चाहता है के आप बीमार पड़ो,
कफ़न बेचने वाला आपके यहाँ किसी के मरने की राह देखता है।
एक  वक़ील  हर वक़्त आपके घर में कलेश होने की दुवा करता है.…
सिर्फ एक चोर है जो आपके सुख चेन की नींद भगवान से मांगता है"



मतलबी



एक बार उसकी झलक देख ली , जन्नतकी हूरो को आदाब कहना छोड़ दिया,
दूरियों में उम्र गई,वो आये मैयत से पहले,हम पलके कब्रसे उठाना भूल गये .

जिसकी कृपासे सब मिलता है, उसको अपनी मोह माया तले भूल चले
मतलबी दुनियाको मंज़िल बना बैठे, राम रहिम को दिया जलाना का भूल गये



कई बार



कई बार झुठलाया सब कुछ
कई बार जतलाया भी
कई बार सब नाता छोड़ा
कई बार निभाया भी
कई बार गुब्बारा छीना


मतलब अपने हिसाब से


किचन में
काम कर रही पत्नी के पास
जाकर
बोला - " मैंने
अपनी जिंदगी के सबसे अच्छे
बरस उस औरत के
बाहों मे गुजारे
जो मेरी पत्नी नहीं थी....।"


><><


फिर मिलेंगे

विभा रानी श्रीवास्तव







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