सादर अभिवादन स्वीकार करें,
वैशाख मास चालू हो गया है.....
कमाल है..खाते क्या हैं ये बैशाख नन्दन
दिन-पर-दिन मोटे होते जा रहे हैं ..
ये तो राम जी ही जाने....
देखिए आज की पढ़ी रचनाओं की एक झलक...
साहित्य ढूढतें पन्नों में
जबकि साहित्य नेटमय हुआ
साहित्यकारों की कलम छूट गयी
कलम विहीन साहित्यकार हुआ
कवियत्री के मुख में अब कलम नहीं
कलम और पन्ना नेट हुआ
गुज़र रही है ज़िंदगी
कुछ इस तरह कि
जैसे इसे किसी की
कोई चाहत ही नहीं
कभी दिल है तो
कभी दिमाग है ज़िंदगी
ओ मेरे परदेसी बेटे
बतलाओ कब घर आओगे
दिन- रात नहीं कटते तुम
कब तक यूँ ही तरसाओगे
जब से तुम परदेस गए हो
घर लगता है वीराना
केवल संस्कार दो...कुलदीप सिंह ठाकुर
अपनी खुशियाँ ही मांग रही है...
वो माएं सब से
यही कह रही है
बच्चों के लिये
न मांगो लंबी आयु की दुआ
न धन दौलत
...केवल संस्कार दो...
ज़िन्दगी में ये कैसा मोड़ आया,
जो सबसे प्यारा था उसे छोड़ आया.
वो प्यारा था, ये तब मैंने जाना,
जब उसे उस मोड़ पर छोड़ आया.
सुनाये सिर्फ मोहब्बत के गीत दुनिया को
हम अपने सीने में ऐसा सितार रखते हैं !
तुम्हारा प्यार न ले जाए कहीं जान मेरी
तुम्हीं से मिलने का बस इंतज़ार रखते हैं !
भीगी आँखों से सुधा सोच रही थी
लड़की बधाई की जननी हो सकती है
पर उसका अपना जन्म?
जीभ से अपने ही
होंठों को खुद ही
तर करता
शराफत की मेज
में खुली विदेशी
सोचता ‘उलूक’
चार स्तम्भों को
एक दूसरे को
नोचता हुआ
आजकल सपने
में देखता ‘उलूक’
फिर मिलेंगे यहीं इसी दिन
सादर
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंसादर नमन
उत्कृष्ट चयन
आभार
सादर
बहुत सुन्दर सूत्र ! मेरी पस्तुति को शामिल करने के लिए आपका हृदय से धन्यवाद दिग्विजय जी ! बहुत-बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति दिग्विजय जी । आभार 'उलूक' के सूत्र को शीर्षक पर स्थान देने के लिये।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति , मेरी रचना को लिंक में शामिल करने के लिए हार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंसुन्दर संकलन, मेरी कविता सम्मलित करने के लिए आभार |
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जवाब देंहटाएंशुक्रिया दिग्विजय जी, आपने "पांच लिंकों का आनन्द में" चर्चा में सुन्दर लिंकों को शामिल किया है।
सुन्दर हलचल प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति।
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