क्या किसी ने देखा है....
कभी किसी पशु को....
अपने रक्षक को मारते हुए.....
...मैंने तो नहीं देखा...
अपने रक्षक पर विपत्ती आते देख....
पशुओं को भी मुकाबला करते अवश्य देखा है....
सोचिये फिर...
सैना पर पथराव करने वाले...
ये पशु तो हो नहीं सकते....
ये मानव कतई नहीं है...
...फिर कौन हैं ये?...
अब पेश है...
मेरी पसंद...
ग़ज़ल-
चाहा’ था मैं तेरी संगत ही मिले
तेरी’ संगत नहीं, फुरकत ही’ सही |
इश्क तुमसे किया’, गफलत हो’ गई
छोड़ सब ख्याति, हकारत ही’ सही |
जाने क्यों अब........कवि अनमोल तिवारी कान्हा-
और सुना रहा था अपनी,
उस करूण गाथा को
जो रची थी उसके अपनों ने।
जिन्हें सदा चाहा था उसने।
और जागता रहा दिन रात ,
उनके सपनों को पूरा करने।।
मगर जाने क्यों अब?
वो ही सपनों के सौदागर
इस कदर ज़ालिम बन,
दे रहे थे ठोकरें।
बड़े बेचैन हैं वे लोग , जो सब याद रखते हैं - सतीश सक्सेना
वे अब सरदार हैं बस्ती के,मैं हैरत में हूँ जबसे,
हमारे संत सन्यासी , महल आबाद रखते हैं !
ये चोटें याद रखने की, हमें आदत नहीं यारों !
बड़े बेचैन हैं वे लोग , जो सब याद रखते हैं !
ओ गौरैया !
बदल गया है इंसान
प्रकृति प्रेमी हो गया है
आकर देखो तो ज़रा
इसके कमरे की दीवारें
भरी पड़ी है तुम्हारे चित्र से
ऐसे चित्र
जिनमें तुम हो,
तुम्हारा नीड़ है,
तुम्हारे बच्चे है
सीख ली है इसने
तुम्हारी नाराज़गी से
सर आँखों पर बिठाएगा
तिनका- तिनका संभालेगा
एक किताब की तलाश
वैसे तो यह बची अभिलाषाओं का तीन गुना ज्यादा होना किसी भी उम्र के किसी भी व्यक्ति का सत्य है. इसका बची हुई उम्र से कुछ लेना देना नहीं होता.
अतः इस विषय पर लेखन उस समय तक के लिए टाल दिया जब तक की वाकई वाले बूढ़े न हो जायें.
वाकई वाले बूढ़े कौन होते हैं? यह किसी आयु में होते हैं? यह किन हालातों में होते हैं?
कोई यूं भी सोच सकता है कि ८०- ८५ बरस की उम्र में आदमी बूढ़ा हो जाता है..मगर जब शोध का चश्मा धारण करके देखा तो पाया कि आदमी अपनी नजरों में तो कभी बूढ़ा होता
ही नहीं है.
धन्यवाद.
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति
आभार
सादर
मेहनत को नमन
जवाब देंहटाएंअतिसुन्दर संकलन !
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति कुलदीप जी।
जवाब देंहटाएंसुन्दर हलचल प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंसुंदर लिंको का चयन सराहनीय रचनाएँ👌👌
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत लिंक संयोजन । बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया हलचल प्रस्तुति हेतु धन्यवाद !
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