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शुक्रवार, 7 अप्रैल 2017

630...........हमेशा होता है जैसा उससे कुछ अनोखा नहीं होगा

सादर अभिवादन
आज आसान नहीं था प्रस्तुति बनाना
काफी से अधिक जोर लगाना पड़ा घुटने को
थोड़ी तबियत खराब थी घुटने की..
पहले आज्ञा दें यशोदा को...

पहली बार राजेश जी यहां पर
हमेशा ज़ुल्म  से   लड़ता रहा जो
वही क़ातिल का खंज़र धो रहा है

बदलते   दौर में इंसाँ की फितरत
मसल कर   फूल काँटे  बो रहा है

अनमोल मोती.....रेवा टिबड़ेवाल
सीपों मे बंद 
मोती 
जैसे आँसू 
आज ढुलक कर 
बिखर गए हैं 
हमारे चारों तरफ , 




जो भी वजह मान लो
मैं सिमटकर नदी हो गयी हूँ
जो अब अदृश्य हो गयी है
...
लुप्त है वो
जिसे मैं ढूंढना भी नहीं चाहती !

बिन तेरे जिंदगी में’ पहरेदार भी नहीं 
दुनिया में’ अब किसी से’ मुझे प्यार भी नहीं | 

बेइश्क जिंदगी नहीं’ आसान है यहाँ 
इस मर्ज़ की दवा मिले’ आसार भी नहीं |

“हाँ री निमली, देख ना उनकी पीठ पर भी बोझा है ! 
कैसे हैरान परेशान से दिखते हैं दोनों !”
“चल पागल, उनकी पीठ पर जो बोझा है वह है किताबों का और 
हमारी पीठ पर जो बोझा है वो है कूड़ कबाड़ का !”


उसके 
आने जाने
का रास्ता 
इस बार भी
पिछली बार 
की तरह ही
उनहीं गिने चुने 
निशानेबाजों के
निशाने पर होगा

ऐसे में 
मत सोच लेना 
गलती से भी
कोई तुम पर 
या फिर उस पर 
लिख रहा होगा 
.....
मारे गर्मी के हाल बुरा है रायपुर का
मार्च के महीनें में तालाब दम तोड़ रहे हैं
ऐसे में पानी में बनी एक भंवर सारी चीजों को निगल रही है
सिर्फ सात मिनट....






12 टिप्‍पणियां:

  1. वाहह सुंदर लिंको का चयन बहुत अच्छी रचनाएँ 👌👌

    जवाब देंहटाएं
  2. सुंदर लिंक संयोजन ! बहुत खूब !

    जवाब देंहटाएं
  3. बढ़िया प्रस्तुति। आभार 'उलूक' के एक सूत्र को जगह देने के लिये।

    जवाब देंहटाएं
  4. शुभप्रभात.
    रायपुर में इतनी गर्मी...
    यहां तो 3 दिन की तेज बारिश केबाद आज धूप खिली है....
    धूप में बैठने का मन था...
    पर व्यस्त हूं...
    सुंदर प्रस्तुति....

    आभार आप का...

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुन्दर लिंक्स ! मेरी लघु कथा - बोझ - को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार यशोदा जी !

    जवाब देंहटाएं
  6. वाह!सुंदर संकलन बेहतरीन रचनाओं का

    जवाब देंहटाएं

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