सादर अभिवादन
कल की छः सौंवी प्रस्तुति में
भाई सुशील जी की पसंदीदा रचनाएँ आप लोगों
पसंद आई है..एक सिलसिला चल पड़ा है
अब इस ब्लॉग में अतिथि चर्चाकार आते रहेंगे
.......
मुझे आज की प्रस्तुति बनाने का आदेश हुआ है
प्राकृतिक विपदाओं से बचा जा सकता है
पर नेट में यदि क्षणिक भी व्यवधान आया तो...
भाई कुलदीप जी का फोन आया कि बारिस बहुत हो रही है
तो चलिए..आज की मेरी पसंद की रचनाएँ...
और मैं निःशब्द सी
शब्द ढूढ़ती रही
हर पल के अंतराल में
हर सुर और ताल में
लकीरें खींचती रही
रंग उड़ेलती रही
क्यों ना आने-जाने वालों को हम
आज अपनी पिचकारी से नहलाऐं
भांग की ठंडाई इतनी पिलाए कि
वो झूमता दिन भर ही जाये
भावनाओं में सिमटी ;
भावनाओं से लिपटी ;
भावनाओं की गीली मिट्टी से
गुँधी हुई हूँ
अपने बारे में
आज सोचने
बैठी तो....
कुछ समझ ही नहीं आया
मुझे क्या पसंद
क्या नापसंद
कुछ याद ही नहीं ???
एक अभियान नारी आधारित गालियों के विरुद्ध भी चले....कविता रावत
जहाँ एक ओर हमारा समाज औरत को सम्मान देने की बात करता है, वहीँ दूसरी ओर उसके लिए माँ-बहिन जैसी गालियों को बौछार सरेआम होते देख ऐसा मौन धारण किये रहता है,जैसे कुछ हुआ ही न हो। कितनी बिडम्बना है यह! आज अधिकांश लोगों ने गालियों को इतनी सहजता से अपने स्वभाव में ढाल लिया है कि उन्हें यह समझ नहीं आता कि वे खुद की माँ, बहिन को गाली दे रहे हैं या दूसरे की?
जब जब जल बरसता
सड़क नदी बन जाती
चाहे जो बहने लगता
तैरने डूबने लगता
पर मैं अदना सा तिनका
बहाव के संग बहने लगता
हाँ मुझे फ़क्र है
खुद के आस्तित्व पे
गुरूर है...
खुद के वज़ूद पे
घमंड है उस जननी पे
जिसने इस दुनिया में
लाने का हौंसला दिखाया
नहीं समझ पाती, जीजी,
रक्ताश्रु तो मैंने भी
चौदह वर्ष तक तुमसे
कम नहीं बहाए हैं
फिर मेरे दुःख को कम कर
क्यों आँका जाता है ,
अध खिली धूप में अँगड़ाई लें
पैर पसारें आओ चलकर आँगन में
पौष माघ की सर्दी से थे बेहाल
फागुन की मीठी धूप आई है आज...
जमाना
कहाँ से कहाँ
देखो
पहुँचता जा
रहा है
इस पागल
को अब भी
बिल्ली
को देखकर
आँख बंद
करने वाला
कबूतर याद
आ रहा है
आज्ञा दें दिग्विजय को
बहुत सुन्दर सजी है आज की पाँच लिंकों के आनन्द की चर्चा। आभार दिग्विजय जी 'उलूक' के एक पुराने कबूतर 'कबूतर कबूतर' को आज के पन्ने का शीर्षक देने के लिये।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति में मुझे शामिल करने हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंमेरी कविता को यहाँ तक पहुँचाने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया !!
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद में मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर सूत्रों से सुसज्जित आज की हलचल ! मेरी रचना 'सुमित्रा का संताप' को सम्मिलित करने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार दिग्विजय जी !
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