सादर अभिवादन
सफर की तैय्यारी कर रही हूँ..
सो सीधे चलिए रचनाओं की ओर....
प्राकृतिक अभियंता....आशा सक्सेना
तिनके चुन चुन
घरोंदा बनाया
आने जाने के लिए
एक द्वार लगाया
मनोयोग से
घर को सजाया
दरवाजे पर खड़े खड़े
अपना घर निहार रही
अपने नज़रिये से
जो "प्रेम" लगता है
वह "प्रेम"
हमेशा "प्रेम" नहीं होता
एकांत लम्हों का
सहयात्री होता है !
सहयात्री सुपात्र हो
ज़रूरी नहीं
कुपात्र भी हो सकता है
खामोशियों में भी
दूरियों में भी
कुछ तड़पता है
कुछ कसकता है
वो न हो कही भी
फिर भी
हर साँस के साथ उनको
महसूस करते है
मेरे मसीहा...
मेरे अज़ीज़, मेरे मसीहा
सोचती हूं
तुम्हें किस किस तरह पुकारूं
कितनी प्यारी थीं वो बचपन की बात पुरानी
जब दादी सुनाया करती हमको एक कहानी
बारिश के पानी में हम थे नाव चलाया करते
गुड्डे-गुड़िया की शादी में खूब मजे करते
तब माँ ने किया तकनीकी इस्तेमाल
फेसबुक पर स्टेटस ठेला और मंगवाया लिंकित ज्ञान
अब दोनों बैठे टकटकी लगाए
टिपण्णी ताकते,कि कोई कविता-
कविता में हास्य लेकर आए
बहुत सुंदर संकलन है।👌👌 मेरी रचना को मान देने के लिए हृदय से आभार आपका🙏
जवाब देंहटाएंतार्किक संकलन, सुंदर !
जवाब देंहटाएंयात्रा शुभ हो । सुन्दर सोमवारीय अंक। आभार 'उलूक' का उसके चेहरे को जगह देने के लिये।
जवाब देंहटाएंशुभप्रभात...
जवाब देंहटाएंसुंदर संकलन...
आभार आप का....
बहुत बढ़िया हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुंदर संकलन ,मेरी कविता शामिल करने के लिए आभार|
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