क्या खूब लिखा है...
ऐसे भी लोग थे जो रास्ते पर बैठ के पहुँच गए
वरना सड़कों पर दौड़ते तो रहे बहुत से लोग
तारीख जब भी करवट ले रही थी इतिहास में
इंकलाबियों को कोसते तो रहे बहुत से लोग
बावजूद तकलीफों के लोग कहाँ पहुँच गए
परेशानियों को सोचते तो रहे बहुत से लोग
...आज की प्रस्तुति में...
ब्लॉगों के दबे खजाने से कुछ रचनाएं...
शिवम् सुन्दरम् गाती है
मासों में मधुमास अकेला अनुराग मिलन के रंग भरे
भरता मधुर विरह पीड़ा जो सहज ह्रदय उग आती है
शिशिर गयी, पतझड़ बीता, तरु किसलय जब लाते "श्री"
फूली सरसों देख, कृषक जन मन में मस्ती छाती है
दुख
कुछ दुख हमसे बात भी करते हैं
उनकी पनीली आंखें
हमारे कातर चेहरों पर टिकी होती हैं
उनके भुरभुरे हाथ हमारे अनमने कंधों पर पड़े होते हैं।
वे बंधाते हैं धीरज,
भरोसा दिलाते हुए कि वे देर तक नहीं रहेंगे
चले जाएंगे जल्दी।
कुछ दुख हो जाते हैं इतने आत्मीय
कि उनके बिना अपना भी वजूद लगता है आधा-अधूरा।
स्वप्न न बुनूँ ....तो क्या करूँ ....??
गुनगुनी सी धूप और ये कोमल शब्द-
सुरभित अंतर
कल्पना दिगंतर
भाव झरते निरंतर
स्वप्न न बुनूँ ....तो क्या करूँ ....??
फ़िलवक़्त .......!
जिस दिन ये।
खो जाऊँगी जंगल में …
फ़िलवक़्त
बस, बह रहे हो
नदी में
समंदर से ……… !!
मैं यहाँ तू वहाँ [ गजल ]
सुलगती रोज है, आग दिल में पिया
यादें मिटती नहीं ,चाहे जाओ यहाँ |
अश्कों में रात दिन,बहते जज्बात हैं
ख्यालों में तुम मिले, मिट गई दूरियाँ |
आ गए पास तुम, जी उठी धड़कनें
कन्धे तेरे पे सर,रख करूँ मैं बयाँ |
अहिल्या - ना शबरी..
तुम्हारी आधी सांस में पूरी आस हूं
आधा तुम्हारे मन का पूरा संकल्प हूं,
संकल्प हूं जीवन का - स्व को सहेजने का
तुम्हारे कर्तव्य पर आधा अधिकार हूं
सपनों का समय नहीं बचा अब,
संग चलकर साथ कुछ बोना है,
बोनी हैं अस्तित्व की माटी में,
अपनी हकीकतें भी मुझको...
आज बस इतना ही...
चलते-चलते ये रचना भी अवश्य पढ़े...
अज्ञान तिमिर
धन्यवाद।
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंअच्छी रचनाएं चुनी आपने आज
सारी अनपढी
सब पढ़ी जाएगी आज
सादर
बड़िया प्रस्तुति कुलदीप जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति
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