सादर अभिवादन
इस माह की मेरी ये अंतिम प्रस्तुति है....
देखती हूँ नव लेखकों की ओर...
हिन्दी में मात्राओं की गलतियां नजर आती है
मैं समझती हूँ..वे ध्यान भी देंगे..उनकी अगली रचना मुझे
सुथरी व सुलझी मिलेगी...
चलिए चलते हैं आज की रचनाओं की ओर..
शायरी हो ना मेरी खूब तो पानी लिख दे
या तो फिर अहल-ऐ-कलम मुझको ज्ञानी लिख दे
शेर उला मैं कहे देती हूँ ले अहले फ़न
तू है फ़नकार तो फिर मिसरा-ऐ-सानी लिख दे
तुमसे बिछड़े तो इक ज़माना हो गया,
जख्म दिल का कुछ पुराना हो गया।
टीसती है रह रहकर यादें बेमुरव्वत,
तन्हाई का खंज़र कातिलाना हो गया।
झरता पत्ता-
क़ब्रों के बीच में मैं
कोई आहट पर भरमाए है ये मन क्यूँ,
बिन कारण के इतराए है ये मन क्यूँ,
कोई समझाए इस मन को, इतना ये इठलाए है क्यूँ,
बिन बांधे पायल अब नाचे है ये पग क्यूँ,
छुन-छुन रुन-झुन की धुन क्यूँ गाए हैं ये घुंघरू.....
ना जाने कब मुझे समझ आने लगी,
वो कुछ ना कह कर तुम्हारा मुस्करा देना,
ये अंदाज़ तुम्हारे....
ना जाने कब मेरी धड़कनो को बढ़ाने लगे..
बहुत कुछ
बहुत जगह पर
बहुत सारे लोग
अपनी
अपनी खुजली
सबको
खुजलानी
होती है
तू भी
अपनी
खुजला
अपना काम
कर ना
अनमोल संकलन के लिए शुभकामनाएँ, आभार मेरी रचना शामिल करने के लिए🍁
जवाब देंहटाएंढ़ेरों आशीष संग शुभ प्रभात छोटी बहना
जवाब देंहटाएंमेरा लिखा आपको पसंद आता है तो ख़ुशी होती है
आभार
सुंदर व रोचक संकलन !आभार
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति हमेशा की तरह। आभार यशोदा जी 'उलूक' के सूत्र 'चल शुरु होजा'को जगह देने के लिये।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया संकलन। धन्यवाद यशोदा जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया हलचल प्रस्तुति हेतु धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर संकलन.....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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