आज के सरदार विरम सिंह जी छुट्टी पर हैं
आज मेरी पसंद की रचनाएँ.....
काव्य....जो 2012 को बाद से बन्द है
ज़िन्दगी मुहब्बत के लिए कम है लोग नफरत में बिता देते हैं
शय ए दोस्ती को आखिर कैसे यूँ आसानी से भुला देते हैं
बहुत मुश्किल से बनती है रिश्तों में बेबाकियाँ यारों
दोस्ती को भी आजकल कितनी बेबाकी से सज़ा देते हैं
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हरेक चहरे को ज़ख़्मों का आइना न कहो
ये ज़िंदगी तो है रहमत इसे सज़ा न कहो
न जाने कौन सी मजबूरियों का क़ैदी हो
वो साथ छोड़ गया है तो बेवफ़ा न कहो
हारती रही हर युग में सीता...साधना वैद
राम जानकी
सतयुगी आदर्श
आज भी पूज्य
न पाया सुख
सम्पूर्ण जीवन में
राजा राम न
एक चिड़िया मरी पड़ी थी...एम.वर्मा
बलखाती थी
वह हर सुबह
धूप से बतियाती थी
फिर कुमुदिनी-सी
खिल जाती थी
परिंदों का जहाँ शोर हुआ करता था.....मालती मिश्रा
अशांत और भागदौड़ भरा जीवन है नगरों का,
पहले हँसता-मुस्कुराता शांत गाँव हुआ करता था।
मुर्गे की बाँग और कोकिल के मधुर गीत संग,
सूर्योदय के स्वागत में चहल-पहल हुआ करता था।
मन साफ करे........कंचन प्रिया
करते हैं लोग साफ रेत-ईंटों की मकाँ
रखते हैं गंदगी अंदर संभाल के
जला आतें रावण बुराईयों के नाम
ले आते हैं बुराईयाँ दिल में डाल के
आज का ताजा शीर्षक..
आज्ञा दे
यशोदा
कल फिर मिलेंगे
जाते-जाते थोड़ा हँस लीजिए..
Charlie Chaplin - The Lion's Cage
सुन्दर रविवारीय हलचल यशोदा जी। आभारी है 'उलूक' सूत्र 'कैसे नहीं हुआ जा सकता है अर्जुन बिना
जवाब देंहटाएंधनुष तीर और निशाने के' को आज की हलचल में जगह देने के लिये ।
बहुत सुंदर प्रस्तुति, मेरी रचना का सम्मिलित करने हेतु बहुत-बहुत आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर हलचल आज की यशोदा जी ! मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से धन्यवाद एवं आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चयन
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चयन
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