हे मां भवानी...
भारतीय जवानों को शकती दो...
पाकिस्तान को सदबुद्धि दो...
हर तरफ अमन हो...
यही मांगता हूं...
इस नवरात्रों में...
अब पेश है आज की चुनी हुई रचनाएं...
हिन्दी का अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य (रूस के सन्दर्भ में ) : ल्युदमीला ख़ख़लोवा
आजकल रूस में हिन्दी शिक्षण के मुख्य केन्द्र मास्को, सेण्ट पीटर्सबर्ग तथा व्लदीवस्तोक में स्थित हैं। मास्को में तीन मुख्य केन्द्र हैं जहाँ हिन्दी बी०ए० और एम०ए० के स्तर तक पढ़ाई जाती है। ये केन्द्र हैं -- मास्को विश्वविद्यालय, मानविकी राजकीय विश्वविद्यालय तथा मास्को अन्तरराष्टीय सम्बन्ध विश्वविद्यालय। तीनों जगह छात्रों को अलग-अलग विषयों में बी०ए० और एम०ए० की डिग्रियाँ मिलती हैं। उदाहरण के लिये मास्को विश्वविद्यालय में भारतीय इतिहास, भारतीय भाषाशास्त्र और साहित्य, भारतीय अर्थव्यवस्था तथा भारतीय राजनीति में डिग्री मिल सकती है। इन सब विषयों में डिग्री प्राप्त करने के लिये हिन्दी सीखना अनिवार्य है। हिन्दी के साथ दूसरे विषय भी पढ़ने अनिवार्य हैं। जो विद्यार्थी इतिहास चुनते हैं, उनके पाठ्यक्रम में दुनिया का इतिहास, भारतीय इतिहास इत्यादि विषय शामिल होते हैं। भारतीय भाषाशास्त्र सीखनेवालों को आधुनिकतम भाषा-विज्ञान के सिद्धान्त विस्तार से पढ़ने पड़ते हैं। साहित्यिक आलोचना में दिलचस्पी लेनेवाले छात्रों को आलोचना के प्रमुख सिद्धान्त और दुनिया भर के साहित्य का इतिहास पढ़ाया जाता है आदि-आदि। भारतीय इतिहास, भारतीय भाषाशास्त्र और साहित्यिक आलोचना के छात्रों के लिये संस्कृत सीखना आवश्यक समझा जाता है। सभी छात्रों के लिये – चाहे वे भारतीय समाजशास्त्र पढ़ रहे हों या भारतीय अर्थशास्त्र या भारतीय भाषाशास्त्र – पश्चिमी भाषाओं के साथ-साथ (जिनमें अँग्रेज़ी मुख्य है) कम से कम दो भारतीय भाषाएँ सीखना ज़रूरी है। हिन्दी के साथ-साथ दूसरी भारतीय भाषा के रूप में तमिल, उर्दू, बांग्ला, मराठी, पंजाबी आदि भाषाएँ चुनी जा सकती हैं।
सूरज ने कभी...-
सूरज ने कभी जद्दोज़हद नहीं की चाँद से
बस हौले से बोल दिया,
संत रविदास और इस्लाम-
चर्ममारी राजवंश का उल्लेख महाभारत जैसे प्राचीन भारतीय वांग्मय में मिलता है। प्रसिद्ध विद्वान डॉ विजय सोनकर शास्त्राी ने इस विषय पर गहन शोध कर चर्ममारी राजवंश के इतिहास पर पुस्तक लिखा है। इसी तरह चमार शब्द से मिलते-जुलते शब्द चंवर वंश के क्षत्रियों के बारे में कर्नल टाड ने अपनी पुस्तक ‘राजस्थान का इतिहास’ में लिखा है। चंवर राजवंश का शासन पश्चिमी भारत पर रहा है। इसकी शाखाएं मेवाड़ के प्रतापी सम्राट महाराज बाप्पा रावल के वंश से मिलती हैं। संत रविदास जी महाराज लम्बे समय तक चित्तौड़ के दुर्ग में महाराणा सांगा के गुरू के रूप में रहे हैं। संत रविदास जी महाराज के महान, प्रभावी व्यक्तित्व के कारण बड़ी संख्या में लोग इनके शिष्य बने। आज भी इस क्षेत्रा में बड़ी संख्या में रविदासी पाये जाते हैं।
वेद धर्म सबसे बड़ा, अनुपम सच्चा ज्ञान
फिर मैं क्यों छोड़ूँ इसे पढ़ लूँ झूट क़ुरान
वेद धर्म छोड़ूँ नहीं कोसिस करो हजार
तिल-तिल काटो चाही गोदो अंग कटार
मातृभूमि के वीर जवानों से
वीर तुम्हारी प्रिया विकल हो पथ हेरे जब पल-पल ,
युद्धभूमि में उद्धत बनी जवानी तोड़े रिपुबल
आज हिसाब चुका लेने का मिला प्रतीक्षित अवसर .
हर संकट में व्याकुल हो धरती ने तुम्हें पुकारा ,
व्रती,तुरत आगे बढ़ तुमने हर-विधि हमें उबारा .
कष्टों भरा विषम जीवन जी बने रहे तुम प्रहरी ,
मातृभूमि के लिये हृदय में धारे निष्ठा गहरी .
ब्रह्म की आशिकी...
ब्रह्म की रास लीला (रहस्य लीला) अद्भुत् है, वह अपनी ही रचनाओं से रति करता है । रति उसकी विवशता है, सृष्टि की अपरिहार्य आवश्यकता है । प्रोटोन्स बड़े रसिक हैं, उनका सेल्फ़ ग्रेविटेशनल फ़ोर्स इलेक्ट्रॉन्स को दीवाना बना देता है । वे उन्मत्त भाव से प्रोटोन्स के चारो ओर चिर लास्यनृत्य में प्रवृत्त होते हैं गोया
कृष्ण को घेर कर नृत्य में लीन हों गोपियाँ । ब्रह्म का प्रथम् भौतिक अस्तित्व परम अणु के रूप में प्रकट हुआ । प्रारम्भ में परमाणु उदास थे, वे बड़ी व्यग्रता से ब्रह्माण्ड में इतस्ततः भ्रमण करने लगे । ब्रह्म ने अपने विवेक से इसका समाधान पूछा तो उत्तर मिला कि परम अणु अन्य परम अणुओं से रति के अभिलाषी हैं । ब्रह्म
ने स्मित हास्य से परमाणुओं को रति की अनुमति दी, परमाणुओं ने परस्पर विवाह किये । विवाह के पश्चात् एक परमाणु के इलेक्ट्रॉन्स को दूसरे परमाणु के अन्य इलेक्ट्रॉन्स से समझौता करना पड़ा । मानव समाज में यह प्रथा आज भी चल रही है, पटरानियों को आपस में समझौता करना ही पड़ता है ।
धड़कनें खामोश हैं
जो नजरें मिली कदम रुक सा गया
हठ बचपनों सा अब तो छोड़िए
मन का संबंध मन से जोड़िए
वक्त काफी हो गया ख़ामोशी तो तोड़िए
व्रत मौन का खिलखिलाकर तोड़िए
मंजिल
आज उसने निश्चय कर ही लिया अब ये करते और करने के बाद उसका दिल कितने ज़ोर से धड़क रहा है ये तो सिर्फ वही जानती है। वैसे वह चाहती भी नहीं है कि कोई और इस बात को जाने। ये तो सपनों की श्रृंखला की पहली कड़ी है और ऐसा भी नहीं है जाने कितनी छोटी मोटी ख्वाहिशें तो आये दिन पूरी होती रहती थी लेकिन उनके पूरे होने में कोई अड़चन नहीं थी किसी के न मानने का डर नहीं था और खुद का हौसला जुटाने की मशक्कत नहीं थी। खैर नियत दिन , नियत समय जरूरी हिदायतों और तैयारियों के साथ वह निकल पड़ी अपना सपना पूरा करने। हवा पानी पेट्रोल सब चेक कर लिया एक छोटा बेग , जरूरी कपडे, पानी की बॉटल भी रख ली। निकलने के पहले भगवान से कृपा बनाये रखने का आशीर्वाद भी मांग लिया। शहर से बाहर निकल कर बायपास पर आते ही वह रोमांचित हो गई विश्वास हो गया कि उसका सपना पूरा होगा वह सपना पूरा करने की डगर पर नहीं - नहीं हाइवे पर चल पड़ी है।
धन्यवाद।
शुभ प्रभात...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया...
आभार
राष्ट्र-गौरव की भावना जगाता आपका यह बुलेटिन बिना बिकराव के सीमित कलेवर में अपना प्रभाव डाल गया .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
बहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति कुलदीप जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति.मुझे भी शामिल करने के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति ..
जवाब देंहटाएंजय जवान
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
सादर