शोर शुरू हो गया है फटाकों का
बच्चे भूल जाते हैं पढ़ाई
स्कूल से आने के बाद
रम जाते हैं फोड़ने
फटाखे..
अभी-अभी गरम और ताजा..
‘उलूक’
मन ही मन
मुस्कुराया था
हजारों में
एक ही सही
पर था कहीं
जो अपने
गुस्से का
इजहार
कर पाया था
असली मतदान
कर उस अकेले ने
सारे निकाय को
आईना एक
दिखाया था ।
नाक ‘ए’ की नाक के नीचे की नाव छात्रसंघ चुनाव
पर जिद्दी था शहर, कि वो रामफल को शहर लाकर ही दम लेगा
ये कथा है लूट की मार की टकरार की
सारथी जिसके रहे
शिवापाल, रामगोपाल,अमर चाटुकार की
सत्य दिग्घोषित हुआ,
प्रजापति जी सार्थक सर्वदा
निरन्तर लुटी गोमती और नर्मदा
अथ श्री सैफई कथा ....विक्रम प्रताप सिंह
अब अंत में शीर्षक कथा
दूध देख
कर आता
है तो थोड़ा
जामुन भी
मिला
लिया कर
दही बना
कर चीनी
के संग भी
कभी किसी
को खिला
दिया कर
खाली खाली
दूध यहाँ
मत लाया कर
अभी तक अचर्चित
......................
आज्ञा दें यशोदा को
सब छुट्टियों के मूड में हैं
पर लिक्खाड़ की कहाँ छुट्टी होती है
लिखते रहता है...
यहाँ-वहाँ....
सादर
सुन्दर हलचल । आभार यशोदा जी 'उलूक' के सूत्रों को आज की हलचल में स्थान देने के लिये ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंउलूक की ओर से हमारी मांग - मतदाता को प्रत्याशियों को वोट देने या न देने के अलावा उनकी पिछली हरक़तों के आधार पर उन्हें चपतियाने या शाबाशी देने का अधिकार भी मिलना चाहिए. 'अथ श्री सैफ़ई कथा अच्छी लगी.
हटाएंKhayalrakhe ke link ko shamil karne ke liye bahut bahut dhanyawad Yashoda ji.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत-बहुत आभार
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
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