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सोमवार, 3 अक्तूबर 2016

444...कचरा सड़के से भी हटे, मगर दिमाग से ज्यादा जल्दी हटे और सतत हटता रहे...

सादर अभिवादन स्वीकारें
कल गाँधी जी की जयन्ती मना ली गई
पर तआज़्ज़ुब है कि
लाल बहादुर को किसी ने याद तक नहीं किया

...चलिए चलते हैं आज की पढ़ी रचनाओं की ओर......

जी गई कहानियों की पांडुलिपि
हर किसी के मन में होती है
कोई सुना देता है
कोई छुपा लेता है
कोई बीच के पन्ने फाड़ देता है  ..

अँधेरे में दुआ करूँ, ऐ ख़ुदा परछाई दे
बेख़्याली में निकले, जो नाम सुनाई दे

श्यामलाल की बातों ने रामलाल की आँखें खोल दीं। 
उसने अब मन ही मन प्रतिज्ञा कर ली थी कि अब कभी भी अपने को आहत नहीं करेगा।
वह सुबह उठ बैठता। झाड़ू उठाता और आसपास फ़ैले कचरे को इकठ्ठा कर आग के हवाले कर देता। फिर कुदाल उठाता और ज़मीन समतल करने लग जाता। एक दिन नर्सरी जाकर वह कुछ पौधे खरीद लाया। उन्हें बागीचे में लगाकर सिंचाई करता और एक दिन ऐसा भी आया कि 
वहाँ देखते ही देखते एक अच्छे ख़ासा बागीचा तैयार हो गया था


कितना नमक उचित
ज्यादातर स्वास्थ्य संगठन एक वयस्क व्यक्ति को 1500 से 2300 मिलीग्राम सोडियम प्रतिदिन लेने की सलाह देते हैं। 1500 मिलीग्राम सोडियम पाने के लिए 3.75 ग्राम या 75 फीसदी भरी छोटी चम्मच नमक लेना उचित रहेगा। इसी तरह 2300 मिलीग्राम सोडियम पाने के लिए 6 ग्राम नमक की जरूरत होती है।
0-12 माह के लिए 1 ग्राम से कम (400 मिलीग्राम सोडियम),
1-3 साल के लिए 2 ग्राम (800 मि.ग्रा.सोडियम),
4-6 साल के लिए 3 ग्राम (1200 मि.ग्रा. सोडियम),
7-10 साल के लिए 5 ग्राम (2000 मि.ग्रा. सोडियम) एवं
11 से ऊपर के लिए 3.75  -6 ग्राम (1500-2400 मि.ग्रा. सोडियम) की मात्रा उचित है।


वह भारतीय खूब जोर जोर से हंसने लगा । आप भारत में पुनर्जन्म की परिकल्पना को त्याग दीजिये । वहां आपकी लाश को जिंदा रखने वाले लोग , आपको नये रूप में स्वीकार नहीं करेंगे । आप खुश मत होइए कि आप जिंदा हैं वहां । लोगों की मजबूरी है आपको जिंदा रखना । क्योंकि दूसरा गांधी आकर जीने का तरीका फिर न बदल दे इसलिए लोगों ने आपको जिंदा रखा है । वहां गांधी अब केवल मरने के लिए पैदा होता है , कुछ कर दिखाने के लिये नहीं । गांधी पैदा होने के बाद बहुत दिनों तक उसका जी पाना सम्भव नहीं है अब । हां कुछ लोग , गांधी नाम बनने का प्रयास जरूर करते रहे हैं यहां , पर ये तक वहां आपको आने नहीं देंगे । क्योंकि आपका नाम इनमें से , किसी को नोटों से भर रहा है , किसी को वोटों से ।


'यो मां जयति संग्रामे, यो मे दर्प व्यपोहति । 
यो मे प्रति-बलो लोके, स मे भर्त्ता भविष्यति ।।' 
पीछे से कोई खिलखिला कर हँस पड़ा. सब ने पीछे मुड़कर उधर ही देखने लगे, 
त्र्यैलोक्य विचरण करने वाले नारद जाने कब से आ कर वहाँ खड़े हो गए थे
बस यहीं नारी हार मान लेती है
लेकिन ये गौरा की हार नहीं, शंकर की विवशता का इज़हार है


और अंत में आज की शीर्षक रचना..

कचरा भले ही सड़कों से साफ हो रहा है। इसे साफ होते-होते 2 साल भी हो गए, दरअसल यह कभी हो ही नहीं सकता, चूंकि हमारे-आपके दिमाग में कचरा भरा है। फिलहाल 2 अक्टूबर को कम से कम हम इस बात क्रेडिट जरूर दे सकते हैं कि स्वच्छता पर खर्च भले ही करोड़ों पहले से हो रहा था,

इज़ाज़त दें दिग्विजय को
एक गीत सुनिए मेरे जन्म से पहले फिल्माया गया
ऐसा लगता है यै गीत आज के लिए ही था...




4 टिप्‍पणियां:

  1. जिंदा हो तभी तो रखेगा जिंदा सोच को बापू को नहीं
    जो मर चुके हैं उनसे किसे है उम्मीद अब बाकी यहाँ ।

    सुन्दर प्रस्तुति दिग्विजय जी ।

    जवाब देंहटाएं
  2. आभार मेरी पोस्ट शामिल करने हेतु
    बच्चे का स्वास्थ्य ठीक नहीं होने से १ सप्ताह से हॉस्पिटल में थी ..

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. परिवार और पड़ोसी तो प्रथमिकता है ही
      अब स्वास्थ्य़ कैसा है
      सादर

      हटाएं

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