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गुरुवार, 27 अक्टूबर 2016

468...सोशल मीडिया के बहादुरों जमीन पर आओ


जय मां हाटेशवरी...

कल से...
पांच दिवसीय जगमगाते त्योहारों के महा पर्व...
 दिवाली का प्रारंभ हो रहा है...
कल कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी है...
इसे 'धनतेरस' कहा जाता है। इस दिन चिकित्सक भगवान धन्वंतरी की भी पूजा करते हैं। पुराणों में कथा है कि समुद्र मंथन के समय धन्वंतरी सफेद अमृत कलश लेकर अवतरित हुए थे। धनतेरस को सायंकाल यमराज के लिए दीपदान करना चाहिए। इससे अकाल मृत्यु का नाश होता है। लोग धनतेरस को नए बर्तन भी खरीदते हैं और धन की पूजा भी करते हैं।

परसो कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी   होगी...
इसे 'नरक चतुर्दशी' या 'रूप चौदस' भी कहा जाता है। इस दिन नरक से डरने वाले मनुष्यों को चंद्रोदय के समय स्नान करना चाहिए व शुद्ध वस्त्र धारण करना चाहिए। जो चतुर्दशी को प्रातःकाल तेल मालिश कर स्नान करता है और रूप सँवारता है, उसे यमलोक के दर्शन नहीं करने पड़ते हैं। नरकासुर की स्मृति में चार  दीपक  भी जलाना चाहिए। तीसरे दिन कार्तिक कृष्ण अमावस्या यानी दिवाली मनाई जाती है...
इसे दीपावली भी  कहा   जाता है। इस दिन महालक्ष्मी की पूजा की जाती है। साथ ही कुबेर की पूजा भी की जाती है। शुभ मुहूर्त में लक्ष्मीजी का पाना, सिक्का, तस्वीर अथवा श्रीयंत्र, धानी, बताशे, दीपक, पुतली, गन्ने, साल की धानी, कमल पुष्प, ऋतु फल आदि पूजन की सामग्री खरीदी जाती है। घरों में लक्ष्मी के नैवेद्य हेतु पकवान बनाए जाते हैं। शुभ मुहूर्त, गोधूलि बेला अथवा सिंह लग्न में लक्ष्मी का वैदिक या पौराणिक मंत्रों से पूजन किया जाता है।

प्रारंभ में गणेश, अंबिका, कलश, मातृका, नवग्रह, पूजन के साथ ही लक्ष्मी पूजा का विधान होता है। लक्ष्मी के साथ ही अष्टसिद्धियां- अणिमा महिला गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्रकाम्या, ईशिता और बसिता तथा अष्टलक्ष्मी आदि, विद्या, सौभाग्य, अमृत, काम, सत्य भोग और योग की पूजा भी करना चाहिए। इसके पश्चात महाकाली स्वरूप दवात तथा महासरस्वती स्वरूप कलम व लेखनी की पूजा होती है। बही, बसना, धनपेटी,लॉकर, तुला, मान आदि में स्वास्तिक बनाकर पूजन करना चाहिए। पूजा के पश्चात दीपकों को देवस्थान, गृह देवता, तुलसी, जलाशय, पर आंगन, आसपास सुरक्षित स्थानों, गौशाला आदि मंगल स्थानों पर लगाकर दीपावली करें। फिर घर आंगन में आतिशबाजी कर लक्ष्मीजी को प्रसन्न करना चाहिए।

दिवाली के अगले दिन कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा  को गोवर्धन पूजा या अन्नकूट महोत्सव     मनाया जाता है।
दिन गाय-बछड़ों एवं बैलों की पूजा की जाती है। गाय-बछड़ादि को तरह-तरह से श्रृंगारित किया जाता है। सायंकाल उन्हें सामूहिक रूप से गली-मोहल्लों में घुमाया जाता है और ग्वाल-बाल, विरह गान भी करते हैं। इस तिथि को बलि प्रतिपदा, वीर प्रतिपदा और द्युत प्रतिपदा भी कहा जाता है।
गोवर्धन पूजा के दिन महिलाएं शुभ मुहूर्त में घर आंगन में गोबर से गोवर्धन बनाकर कृष्ण सहित उनकी पूजा करती हैं। इस महोत्सव में देवस्थानों पर चातुर्मास में वर्जित सब्जियों की संयुक्त विशेष सब्जी बनाई जाती है और छप्पन प्रकार के भोग तैयार कर भगवान को नैवेद्य लगाया जाता है। उसके पश्चात देवस्थलों से भक्त, साधु, ब्राह्मण आदि को सामूहिक रूप से प्रसाद के रूप में वितरण किया जाता है।

अंत में कार्तिक शुक्ल द्वितीया   को... भाई दूज    मनाया जाता है...
कहते हैं... इस दिन राजा राम का राज्य अभिशेक भी हुआ था... इसी    दिन यमुना ने यम को अपने घर भोजन करने बुलाया था, इसीलिए इसे यम द्वितीया कहा जाता है। इस दिन भाइयों को घर पर भोजन नहीं करना चाहिए। उन्हें अपनी बहन, चाचा या मौसी की पुत्री, मित्र की बहन के यहां स्नेहवत भोजन करना चाहिए। इससे कल्याण की प्राप्ति होती है। भाई को वस्त्र, द्रव्य आदि से बहन का सत्कार करना चाहिए। सायंकाल दीपदान करने का भी पुराणों में विधान है।

आप सभी को मेरी ओर से...
दिवाली की अग्रिम शुभकामनाएं...

अब चलते हैं....
आज की रचनाओं की ओर...
पर सब से पहले...

हृदय रोग से आपको, बचना है श्रीमान!
सुरा, चाय या कोल्ड्रिंक, का मत करिए पान!!
अगर नहावें गरम जल, तन-मन हो कमजोर!
नयन ज्योति कमजोर हो, शक्ति घटे चहुंओर!!
तुलसी का पत्ता करें, यदि हरदम उपयोग!
मिट जाते हर उम्र में,तन में सारे रोग।

सोशल मीडिया के बहादुरों जमीन पर आओ
आज ही (25/10/16) मिट्टी के दिये बनाते कुम्हारों से मिला। सोंचा जब सोशल मीडिया पे चायनीज सामान के बहिष्कार का हंगामा है तो खुशहाली की लक्षमी कुम्हारों के घर पहुँच गयी होगी। पर नहीं, कुम्हारों पे इसका कोई असर नहीं। पिछले साल भी 30 से 40 रूपये प्रति सैंकड़ा दीया था, इस साल भी है। खरीददार अभी तक उनके पास नहीं पहुंचे है सो स्टॉक भी पिछले साल के अनुसार ही है। खरीददार रहते तो शायद स्टॉक बढ़ता।

क्यूँ नहीं दिल पर मेरे डाका पड़ा
देख उसको, क्या हुआ इक चश्म ख़म
क्या कहें किस दर्ज़े का चाटा पड़ा
भूत का मैंने लिया जैसे ही नाम
वह मुआ सूरत में उसकी आ पड़ा

हम भी किसी हसीन की आहों में आ गए ...
कुछ यूँ फिसल के वो मेरी बाहों में आ गए
ना चाहते हुए भी निगाहों में आ गए
सच की तलाश थी में अकेला निकल पड़ा
जुड़ते रहे थे लोग जो राहों में आ गए
हम भीगने को प्रेम की बरसात में सनम
कुछ देर बादलों की पनाहों में आ गए

कहतें दीपक जलता है
मिली दौलत मिली शोहरत मिला है यार सब कुछ क्यों
जैसा मौका बैसी बातें , जो पल पल बात बदलता है
छोड़ गया जो पत्थर दिल ,जिसने दिल को दर्द दिया है
दिल भी कितना पागल है ये उसके लिए मचलता है

रमेशराज के 'नव कुंडलिया 'राज' छंद' में 5 बालगीत
" जल-संकट हो, अगर कटे वन
अगर कटे वन, सूखे सावन
सूखे सावन, सूखे भादों
सूखे भादों, खिले न सरसों
खिले न सरसों, रेत प्रकट हो
रेत प्रकट हो, जल-संकट हो | "     




अब चलते-चलते...
हमको तो दीवाली की सफाई मार गई ---
वैसे तो हम मोदी जी के भक्त बड़े थे ,
स्वच्छता अभियान के भी पीछे पड़े थे।
पॉलिटिकली 'आप' के ना साथ कड़े थे,
लेकिन लेकर हाथ में हम झाडू खड़े थे।
लेकिन लेकर हाथ में हम झाडू खड़े थे।----
डर के करते लाइट्स की सफाई मार गई,
गमलों में सूखे पौधों की छंटाई मार गई।
घर भर के साफ पर्दों की धुलाई मार गई ,
अफसर को बनाके नौकर लुगाई मार गई।
अफसर को बनाके नौकर लुगाई मार गई।

फिर मिलेंगे...
धन्यवाद।












4 टिप्‍पणियां:

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